झगड़ने का बहाना
बहुत दिन हुए ,जंग ना छिड़ा
हम मे तू तू मैं मैं का
आओ चले ढूंढते हैं
हम कोई बहाना लड़ने का
मैं कुछ बोलूं,, तुम झट मानो
तुम कुछ बोलो मैं मानू
सदा मिलाते हो हां में हां
किस पर भृकुटी मैं तानू
डांट लगाओ मेहरी को तो
काम छोड़ बैठेगी घर
अपने अंदर दबा हुआ सब
रौब निकालूं मैं किसी पर
हंसकर मिले पड़ोसन,
ना दे मौका बात बिगड़ने का
आओ चलो ढूंढते हैं हम
कोई बहाना लड़ने का
जो भी तुम्हें पका कर देती
खाते हो तारीफ कर कर
तेज नमक या ज्यादा मिर्ची
कभी ना आई तुम्हें नजर
मैं जैसा भी जो भी पहनू
तुमको सभी सुहाता है
ढलता यौवन चढ़ा बुढ़ापा
तुमको ना दिखलाता है
गलती से झट कहते सॉरी
दोष न हम पर मढ़ने का
आओ ढूंढे कोई बहाना
हम आपस में लड़ने का
कितने बरस हुए शादी को
याद तुम्हें ना आई क्या
मेरी मैरिज एनिवर्सरी
तुमने कभी मनाई क्या
किया स्वयं की वर्षगांठ पर
गोवा या कश्मीर भ्रमण
लेकिन मेरे विवाह दिवस पर
किया न कोई आयोजन
अबकी बार बनेगा उत्सव
मेरा डोली चढ़ने का
आओ ढूंढते कोई बहाना
हम आपस में लड़ने का
मदन मोहन बाहेती घोटू
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