Sunday, October 30, 2011

चंदा

चंदा
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किसी अच्छे कार्य के लिए,
या किसी आयोजन के लिए
किसी पूजा के लिए,
या किसी की सहायतार्थ,
जब कोई धनराशी,
विभिन्न लोगों से मांग मांग कर,
एकत्रित की जाती है,
उसे चन्दा कहते है
पर क्या आपने कभी ये सोचा है,
इसे चंदा ही क्यों कहते है?
सूरज ,सागर,सरिता या बादल क्यों नहीं कहते?
चन्दा,
सूरज से रौशनी उधर मांग,
दुनिया भर को शीतल उजाला देता है
और  इसी परोपकार में,लगा ही रहता है
इसी तरह ,लोगों से मांग मांग,जो राशी ,
परोपकार की आयोजन में लगाई जाती है ,
चन्दा कहलाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'












हड्डियाँ और दांत

(मेडिकल कविता)
हड्डियाँ और दांत 
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डाक्टर बताते है
बच्चा जब पैदा होता है,
उसके शरीर में 350  हड्डियाँ होती है,
पर जैसे जैसे उमर बढती है
हड्डियाँ जुडती है
आदमी में बदलाव आता है
हड्डिय मजबूत होती है,
और उनमे जुडाव आता है
हड्डियाँ और आदमी ,
दोनों हो जाते है सख्त
और बचपन की 350 हड्डियाँ,
बड़े होने पर,206 ही रह जाती है फ़क्त
और इसी तरह बचपन में,
आदमी के जबड़े में,
छुपे होते है बावन दांत
इनमे से बीस,जो हड़बड़ी में होते है,
जल्दी निकल जाते है
पर पांच सात बरस में टूट कर  गिर जाते है
ये दूध के दांत कहलाते है
पर बाकि के बत्तीस दांत,
जो धीरज रखते है
धीरे धीरे निकलते है
और पूरी उमर चलते है
हमारे शरीर के ये अंग,
हमें बहुत कुछ सिखाते है
हड्डियाँ जुडाव की ताकत बताती है,
और दांत धीरज की महत्ता बताते है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

 

Friday, October 28, 2011

इस दीपावली पर

इस दीपावली पर
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कोई  के घर आये लक्ष्मी पद्मासन में,
कोई के घर अपने प्रिय वाहन उल्लू पर
मेरे घर पर लेकिन आई लक्ष्मी मैया,
एक नहीं,दो नहीं,तीन इक्कों पर चढ़ कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उल्लू बीसा

उल्लू बीसा
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श्री लक्ष्मी वहां प्रभो,महिमा धन्य अपार
सोना,चाँदी और तुम,जगती के  आधार
करे रात के समय जो,कोई भी व्यापार
श्री उल्लू की कृपा से,भरे रहे भंडार
नमो नमो उल्लू महाराजा
प्रभो आप रजनी के राजा  
निशा दूत अति सुन्दर रूपा
वास आपका कोटर ,कूपा
सूखे तरु पर आप विराजे
राज सिंहासन पर नृप साजे
कौशिकनाथ,लक्ष्मी भक्ता
धन्य धन्य रजनी अनुरक्ता
प्रभो आपकी महिमा न्यारी
लक्ष्मी जी की आप सवारी
भक्त,तपस्वी,साधू,संता
पक्षीराज निशा के कंता
चाँद,उलूक ,दोई एक जाती
रात पड़े निकले ये साथी
सूरज छिपे,होय अंधियारा
दर्शन होए प्रभु तुम्हारा
दिन का हल्ला,हुल्लड़ बाजी
हुई प्रभु को लख नाराजी
दुनिया की भगदड़ से ऊबे
क्षीण चक्षु भक्तिरस डूबे
शांति रूप को भक्ति जागी
सब कुछ त्याग बने बैरागी
करे रात को लक्ष्मी सेवा
धन्य निशाचर उल्लू देवा
धनी सेठ और जग की माया
सब पर प्रभू आपका साया
घूक,तिजोरी,पैसेवाले
तीनो लक्ष्मी के रखवाले
तीनो एक सरीखे के ग्यानी
एक घाट का पीते पानी
कीर्ति आपकी वेद बखाने
गुण महिमा मूरख भी जाने
सुन कर मधुर आपकी वाणी
विव्हल होते जग के प्राणी
करे रात को जो व्यापारा
धन और पैसा आय अपारा
जो भी ध्यावे उल्लू बीसा
बने कीमती देशी घी  सा
उसका दुःख दारिद मिट जाए
पैसा औ लक्ष्मी को पाए
उल्लू बीसा तुम पढो,बन लक्ष्मी के दास
भर जायेगी तिजोरी,मिट जायेगे त्रास
(इति श्री उल्लू बीसा संपन्न)
(लक्ष्मी जी की कृपा के लिए उनके प्रिय वाहन
उल्लू  का आराधन धन प्रदायक होता है )

Tuesday, October 25, 2011

आत्मदीप

लो फिर से आ गए दिवाली
मेरे मन के आत्मद्वीप पर
उस प्रदीप पर
काम क्रोध के
पर्तिशोध के
वे बेढंगे
कए पतेंगे
शठ रिपु जैसे थे मंडराए
मुझ पर छाए
पर मैंने तो
उनको सबको
बाल दिया रे
अपने मन से
इस जीवन से
मैंने उन्हें
निकाल दिया रे
मगन में जला
लगन से जला
और मैंने
शांति की दुनिया बसा ली
लो फिर से आ गए दिवाली

सूनी सूनी है दीवाली

सूनी सूनी है दिवाली
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जब से मइके गयी,पड़ी है मेरे दिल की बस्ती खाली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                             सूनी सूनी है दिवाली
थी आवाज़ पटाखे सी पर फिर भी लगती भली बड़ी थी
हंसती थी तो फूल खिलाती,मेरे दिल की फूलझड़ी थी
छोड़ा करती थी अनार सा,हंस कर खुशियों का फंव्वारा
जिसकी पायल की रुनझुन से ,गूंजा करता था घर सारा
जिसके  हर एक इशारे पर,मै,चकरी सा खाता था चक्कर
वह चूल्हे चौके की रौनक,चली गयी है अब पीहर
महीने पहले चली गयी,मेरे घर की खुशियों की ताली
दीपावल आ गयी पर ना ,अब तक घर आई घरवाली
                              सूनी सूनी है दीवाली
कौन मुझे पकवान खिलाये,घेवर,फीनी,बर्फी,गुंझा
गृहलक्ष्मी ही पास नहीं फिर आज करूं मै किसकी पूजा
श्रीमती जी ,आ जाओ ना,दीप जला दो,मेरे दिल का
कुछ तो ख्याल  करो रानीजी,अपने राजा की मुश्किल का
तुम मइके में मना रही होगी दीवाली खुश हो हो कर
मेरी  आँखे,नीर भरी है,बाट तुम्हारी ,बस जो जो कर
देखो तुम्हारे विछोह में,मैंने कैसी दशा बना ली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                                सूनी सूनी है दीवाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

Sunday, October 23, 2011

कोहरा छाने लगा है

कोहरा छाने लगा है
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चमकती उजली ऋतू का ,रूप धुंधलाने लगा है
                               कोहरा     छाने  लगा     है
बीच अवनी और अम्बर ,आ गया है  आवरण सा
गयी सूरज की प्रखरता,छा  गया कुछ चांदपन सा
मौन भीगे,तरु खड़े है,व्याप्त  मन में दुःख बहुत है
बहाते है,पात आंसू, रश्मियां उनसे विमुख है
कभी बहते थे उछालें मार कर, जब संग थे सब
हुए कण कण,नीर के कण,हवाओं में भटकते अब
 कभी सहलाती बदन,वो हवाएं चुभने लगी  है
स्निग्ध थी तन की लुनाई,खुरदुरी होने लगी है
पंछियों की चहचाहट ,हो गयी अब गुमशुदा है
बड़ी बदली सी फिजा है,रंग मौसम का जुदा है
लुप्त तारे,हुए सारे,चाँद  शरमाने   लगा है
                          कोहरा  छाने लगा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, October 22, 2011

कौन हो तुम, ये बताओ?

कौन हो तुम, ये बताओ?
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देख तुमको मै चमत्कृत
हुए दिल के तार  झंकृत
देख कर सौन्दर्य प्यारा
हुआ पागल दिल हमारा
रूप का हो तुम खजाना
ह्रदय चाहे तुम्हे पाना
चन्द्र सा मुख,तुम सजीली
तुम्हारी चितवन  नशीली
भंगिमायें मन लुभाती
तुम सुरा सी मद मदाती
मोहिनी सुन्दर बड़ी हो
स्वर्ण की जैसे छड़ी  हो
खोल सारे  द्वार मन के
तुम्हारे संग मधु मिलन के
सपन प्यारे सजाता मै
क्योंकि लगता विधाता ने
तुम्हे फुर्सत से गढ़ा है
निखर कर यौवन चढ़ा है
रूप सुन्दर परी सा धर
आयी अम्बर से उतर कर
और ना अब तुम सताओ
कौन हो तुम, ये बताओ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

लक्ष्मी माता और आज की राजनीति

 लक्ष्मी माता और आज की राजनीति
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जब भी मै देखता हूँ,
कमालासीन,चार हाथों वाली ,
लक्ष्मी माता का स्वरुप
मुझे नज़र आता है,
भारत की आज की राजनीति का,
साक्षात् रूप
उनके है चार हाथ
जैसे कोंग्रेस का हाथ,
लक्ष्मी जी के साथ
एक हाथ से 'मनरेगा'जैसी ,
कई स्कीमो की तरह ,
रुपियों की बरसात कर रही है
और कितने ही भ्रष्ट नेताओं और,
अफसरों की थाली भर रही है
दूसरे हाथ में स्वर्ण कलश शोभित है
ऐसा लगता है जैसे,
स्विस  बेंक  में धन संचित है
पर एक बात आज के परिपेक्ष्य के प्रतिकूल है
की लक्ष्मी जी के बाकी दो हाथों में,
भारतीय जनता पार्टी का कमल का फूल है
और वो खुद कमल के फूल पर आसन लगाती है
और आस पास सूंड उठाये खड़े,
मायावती की बी. एस.  पी. के दो हाथी है
मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी की,
सायकिल के चक्र की तरह,
उनका आभा मंडल चमकता है
गठबंधन की राजनीती में कुछ भी हो सकता है
तृणमूल की पत्तियां ,फूलों के साथ,
देवी जी के चरणों में चढ़ी हुई है
एसा लगता है,
भारत की गठबंधन की राजनीति,
साक्षात खड़ी हुई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, October 19, 2011

ऊष्मा

ऊष्मा
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माँ की गोद,पिता की बाहें,या पति पत्नी का आलिंगन
इनकी ऊष्मा सुखप्रदायिनी ,जिसमे भरा हुआ अपनापन
भुवन भास्कर,दिन भर तप कर,देता सबको ऊष्मा से भर
टिम टिम करता,दीपक जल कर,दे प्रकाश,लेता है तम हर
पंचतत्व में ,अगन तत्व है,जो देता इस तन को सुषमा
इससे ही जीवन चलता है ,जग में बहुत  जरूरी  ऊष्मा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

मौसम बदला

मौसम बदला
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धूप कुनकुनी,नरम नरम दिन,और सौंधी सौंधी सी राते
साँझ चरपरी,भोर रसभरी,और खट्टी मीठी सी बातें
गरम जलेबी,गाजर हलवा,स्वाद भरा मतवाला  मौसम
छत पर धूप,तेल की मालिश,चुस्ती फुर्ती वाला मौसम
है स्वादिष्ट,चटपटा, मनहर,प्यारा मौसम मादकता का
और उस पर से छोंक लगा है, मधुर तुम्हारी सुन्दरता का
ये मौसम जम कर खाने का,छकने और  छकाने का है
नरम रजाई,कोमल कम्बल,तपने और तपाने का है
प्यारा प्यारा ठंडा मौसम,पर इसकी तासीर गरम है
सिहरन सी पैदा कर देती,तेरे तन की गरम छुवन है
तन की ऊष्मा,मन की ऊष्मा और फिर अपनेपन की ऊष्मा
मादक नयन ,गुलाबी डोरे,बढ़ जाती प्रियतम की सुषमा
सर्दी के आने की आहट,सुबह शाम है ठण्ड गुलाबी
गौरी के गोरे गालों की,रंगत होने लगी   गुलाबी
दिन छोटा,लम्बी है रातें,है ये मौसम मधुर मिलन का
सूरज भी जल्दी घर जाता,पल्ला छोड़ ,ठिठुरते दिन का
इस मतवाली,प्यारी ऋतू में,आओ हम सब मौज मनाएं
त्योंहारों का मौसम आया,आओ हम मिल दीप जलाएं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



Sunday, October 16, 2011

अपहरण

अपहरण
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जो अपनी बहन के अपहरण का
 बदला लेने के लिये,
पृथ्वीराज को हरवा दे,
उसे जयचंद कहते है
और जो खुद अपने मित्र अर्जुन के साथ,
अपनी बहन सुभद्रा को   भगवा दे,
उसे श्रीकृष्ण कहते है
लोगों की सोच में,
या अपहरण अपहरण में कितना अंतर है

मदन मोहन बहेती 'घोटू;

चंदा मामा और करवाचौथ

चंदा मामा और करवाचौथ
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जब भी कभी होती है पूनम की रात
मेरे मन में उठती रह रह यह बात
चाँद और सूरज  दोनों चमकते है
राहू और केतु दोनों को डसते  है
पर सूरज  हर दिन चमकता ही रहता
और  चाँद पंद्रह दिन बढ़ता फिर घटता
अमावस  की रात को चाँद कहाँ है जाता
और चंदा बच्चों का मामा क्यों कहलाता
औरते करवा चौथ को,क्यों पूजती है चाँद को
सामने छलनी रख,क्यों देखती  है चाँद को
मनन करने पर आया कुछ ज्ञान मन में
सभी प्रश्नों का किया समाधान हमने
चाँद की शीतलता जानी पहचानी है
चन्द्रमा दुनिया का सबसे बड़ा दानी है
सूरज से रौशनी वो लेता उधर है
बांटता दुनिया को,करता उपकार है
इसी दान वीरता और परोपकार के कारण
बढ़ता ही रहता है ,जब तक कि हो पूनम
और पूर्ण होने पर,अहंकार है  आता
इसी लिए रोज़ रोज़ फिर घटता ही जाता
चाँद को केरेक्टर थोडा सा ढीला है
वैसे भी तबियत का थोडा  रंगीला है
अहिल्या के किस्से से,औरतें घबरायी
चाँद को बना लिया उनने अपना भाई
कहने लगी बच्चों से,ये चंदा मामा है
भाई का फ़र्ज़ बहन कि इज्जत बचाना है
 फिर भी कर्वाचोथ का व्रत वो करती है
चाँद और अपने बीच,चलनी रख लेती है
जिससे बस धुंधली सी शकल ही नज़र आये
रूप देख चंदा की नीयत ना ललचाये
दुखी हो पड़ा रहता ,धुत्त ,सोमरस पीकर
इसीलिए अमावास को नहीं आता धरती पर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, October 15, 2011

सूरज पसर गया

सूरज पसर गया
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दूर दूर तक बिखरे हुए घर
और घरों की छतों से,
आसमान की और झांकते हुए एंटीना
और  पानी से भरी, लदी,
काली काली काया वाली,
ढेरों टंकियां
कहीं कहीं  सर उठाते हुए,
मोबाईल के टॉवर
सड़क के किनारे,
नन्हे से कन्धों पर,
भविष्य का भारी बोझा लादे
बस्ते लिये हुए ,
बस का इंतजार करते हुए बच्चे
मसहरी छोड़,
अंगडाई लेती हुई ललनायें
पुरब के कोने से,
सूरज ने झाँका और,
खाली सी छतों पर,
पग फैला कर पसर गया
और सुबह हो गयी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, October 14, 2011

काम ही पूजा है

काम  ही पूजा है
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निष्काम भाव से काम नहीं है होता
क्योंकि काम में काम बसा है होता
और काम ही पूजन है आराधन
आराधन के मन में भी रहता धन
आराधन  के बाद आरती   होती
बसी आरती में भी रति है होती
और आरती बाद भोग है चढ़ता
और भोग सम्भोग शब्द में बसता
काम ,रति,सम्भोग,सृजन क्रियाएं
करें आरती ,पूजन ,भोग चढ़ाएं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

पानी ही पानी

पानी ही पानी
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जब किसी सुन्दर सी लड़की की जवानी,
और चेहरे का पानी देख
किसी लड़के के मुंह में पानी आता है
तो वह उसे पटाने के लिए ,
पैसा पानी की तरह बहाता है
और जब प्यार परवान चढ़ता है
तो वह उससे पाणिग्रहण  करता है
 अपना घर बसाता है
गृहस्थी का बोझ,जब कंधो पर पड़ता है
साड़ी मौज मस्ती पर पानी फिर जाता है
और फिर वह घर चलाने के लिए
पसीना पानी की तरह बहाता है
कभी प्यार में,कभी मनुहार में
पानी पानी होता रहता है
बहुत कुछ  सहता है
और जब पानी सर के ऊपर से
गुजरने लगता है
उसकी आँखों से पानी बहता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रावण का पुनर्जन्म

रावण का पुनर्जन्म
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रामायण की कथा ,मुझे अच्छी लगती है
राम से बेटे,
सीता सी पत्नी,
और लक्ष्मण से भाई
आज के सन्दर्भ में,ये बातें,
अविश्वसनीय तो है,
मगर एक बात आज भी सच्ची लगती है
की रावण नाभि में,अमृत कुंड था,
ये तथ्य आज भी नज़र आता है
  हम हर साल दशहरे पर रावण को मारते है
पर हर अगले दशहरे पर, 
उसका पुनर्जन्म हो जाता है
कोई कितनी ही कोशिश करे,
उसका कुछ नहीं बिगड़ सकता
ये भ्रष्टाचार का रावण है
कभी मर नहीं सकता

मदन मोहन बहेती]घोटू'

 

एक चिठ्ठी -मनमोहन सिंह जी के नाम

एक चिठ्ठी -मनमोहन सिंह जी के नाम
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आदरणीय मनमोहन सिंह जी,
सादर प्रणाम
(राम राम नहीं करूँगा ,
वर्ना आप मुझे बी जे पी का समझ लेंगे
और ये चिठ्ठी दिग्विजय सिंह को दे देंगे)
दशहरे के दिन आपको टी वी पर देखा,
रामलीला मैदान में
हाँ,उसी राम लीला मैदान में,
जहाँ आपकी सेना ने,
युद्ध के सारे नियमो का अवलंघन कर,
रात के दो बजे,
लाठी चार्ज किया था,
सोती हुई महिलाओं और साधू संतो पर
आपने मंचासीन होकर,
सोनिया जी के साथ में
धनुष बाण लेकर हाथ में
कागज के पुतले रावण पर तीर चलाया
हर साल की प्रक्रिया को दोहराया
जैसे हर साल आप पंद्रह अगस्त पर,
लाल किले पर भाषण देते हुए,
अपनी मृदुल वाणी में बतलाते है
की मंहगाई घटा देंगे
भ्रष्टाचार मिटा देंगे
पर ये दोनों बढ़ते ही जाते है
आप कुछ नहीं कर पाते है
और इसे गठबंधन की मजबूरी बताते है
वैसे ही दशहरे के दिन तीर चलाने से,
भ्रष्टाचार का रावण नहीं मर पायेगा
आपका तीर खाने को बार बार,
हर साल दशहरे को आएगा
क्योंकि उसकी महिमा प्रचंड है
आप लोगों की कृपा से,
उसकी नाभि में ,अमृत कुंड है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सानिध्य सुख

सानिध्य सुख
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मुझे मत ऐसे निहारो,मचल जाए मन न मेरा
इन नज़र की बिजलियों से,जल न जाये बदन मेरा
कौन सी उर्जा छुपी है,तुम्हारे तन की छुवन में
फैलती विद्युत तरंगें, शिराओं में और बदन में
तुम्हारे आगोश में आ ,जोश भरता  है उछाले
होश ही रहता कहाँ है,पास में आकर  तुम्हारे
प्यार की उष्मा तुम्हारे ,इस तरह तन को तपाती
मोम सा मन पिघल जाता,जब मिलन बाती जलाती
उस मिलन की वारुणी से,मचलता मदहोश मन है
तैर कर आनंद उदधि में,बदन में आती थकन है
डूब तुम में समा कर मन,दूर हो जाता जहाँ से
इस तरह मुझको सताना,बताओ सीखा कहाँ से
रसीला,मादक बहुत है,मिलन रस का मधुर प्याला
तुम्हारे सानिध्य का सुख,बड़ा ही अद्भुत  निराला

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रोटी मिलेगी

रोटी मिलेगी
--------------
राहुल गांधीजी ,
आप किसी गरीब के घर जाते हो
दरवाजा खटखटाते हो
और मांगते हो ,रोटी मिलेगी
और वो गरीब परिवार
खुश होकर अपार
आपको  आलू की सब्जी पूरी खिलाता है
और धन्य हो जाता है
अगर वो ही गरीब परिवार
भूख से बेहाल
आपके घर आये
और गुहार लगाये
रोटी मिलेगी
तो सबसे पहले,
उसे आपकी सिक्युरिटी मिलेगी
फिर पोलिस वालों के  डंडे, तलाशी
थाने में इन्क्वायरी अच्छी खासी
 सुनने को बहुत खरी खोटी मिलेगी
हाँ,लोकअप में शायद,
खाने को जेल की रोटी मिलेगी

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

Thursday, October 13, 2011

छोटी दुनिया-बड़ा नजरिया

छोटी  दुनिया-बड़ा नजरिया
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मैंने पूछा लिफ्ट  मेन से
ऊपर नीचे, नीचे ऊपर
बार बार आते जाते हो
लोगों को अपनी मंजिल तक,
रोज़ रोज़ तुम पंहुचाते हो
छोटे से इस कोठियारे में,
दिन भर टप्पा खाते रहते,
तुमको घुटन नहीं होती है?
लिफ्ट मेन बोला  मुस्का  कर
सर,ये तो अपनी ड्यूटी है
इससे ही रोटी मिलती है
लिफ्ट भले ही ये छोटी है,
पर इसमें दुनिया दिख जाती
हरेक सफ़र में नूतन चेहरा,
हर फेरे में नयी  खुशबूये
बार बार मेरे साथ
लिफ्ट में ऊपर नीचे जाकर
झूला झूलने का सुख पाकर
खुश होते हुए बच्चे
अचानक एक दूसरे से मिल जाने पर,
हाय, हल्लो करते हुए पडोसी
बच्चों के भरी स्कूली बेग थामती हुई
अस्त व्यस्त मातायें,
कोलेज जाने के नाम पर,
पिक्चर का प्रोग्राम बनाते हुए,
युवक युवतियां
अपने मालिक मालकिन की ,
बुराइयाँ करते हुए,
नौकर नौकरानियां
सुबह सुबह अख़बारों का बण्डल उठाकर,
दुनिया जहाँ की खबर बाँटने वाले,
न्यूज़ पेपर वेंडर
बहुओं की बुराई करती हुई सासें,
और सासों की आलोचना करती हुई बहुए
अपने पालतू कुत्ते को
पति से ज्यादा प्यार करती महिलाएं
बसों की भीड़ से उतर
पसीने में तर बतर
कुछ थके हारे पस्त चेहरे
अपनी बीबी के आगे भीगी बिल्ली बनते,
बड़े बड़े रोबीले साहेब
शोपिंग कर ढेरों बैगों का ,बोझ उठाये
थकी हुई पर प्रसन्न  महिलायें
हर बार
आती है एक नयी खुशबू की फुहार
नए नए परिधानों में
नए पुराने लोग
विभिन्न वेशभूषाएं
भिन्न भिन्न भाषाएँ
मुझको इस छोटे से घर में
हिंदुस्तान नज़र आ जाता
कभी बिछड़ों को मिलाता हूँ
कभी जुदाई के दृश्य देखता हूँ
ऊपर नीचे करते करते
मै रोज़ दुनिया के कई रंग देखता हूँ
और आप सोचते है की मुझे घुटन होती होगी
क्योंकि मै एक छोटे से डिब्बे में सिमटा हूँ
मै तो इस छोटे से डब्बे में भी,
खुश रहता हूँ, चेन से


मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रचायें महारास ,हम तुम

आज छिटकी चांदनी है
मिलन की मधु यामिनी है
पूर्ण विकसा चन्द्रमा है
यह शरद की पूर्णिमा है
आओ आकर  पास हम तुम
रचायें महारास ,हम तुम
राधिका सी सजो सुन्दर
मै तुम्हारा कृष्ण बन कर
बांसुरी पर तान छेड़ूं
मिलन का मधुगान छेड़ूं
रूपसी तुम मदभरी सी
व्योम से उतरी परी सी
थिरकती सी पास आओ
बांह में मेरी समाओ
प्यार में खुद को भिगो कर
दीवाने मदहोश होकर
रात भर हों साथ हम तुम
रचायें महारास  हम तुम
चाँद सा आनन तुम्हारा
और नभ में चाँद प्यारा
मंद शीतल सा पवन हो
चमकता नीला गगन हो
हम दीवाने मस्त नाचें
लगे चलने गर्म साँसें
भले सब श्रिंगार बिखरे
मोतियों का  हार बिखरे
जाय कुम्हला ,फूल ,गजरा
आँख से बह चले  कजरा
तन भरे उन्माद हम तुम
रचायें महारास हम तुम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, October 6, 2011

दशानन

दशानन
----------
लंकाधिपति रावण के,
दस सर थे ,पर,
पेट एक ही था
झुग्गीवाली गरीबी के रावण के  भी,
दस सर होते हैं,
मगर पेट भी दस होते है
इसीलिये,
एक राज करता था,
दूसरे रोते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, October 4, 2011

दशहरे के दिन

दशहरे के दिन
----------------
दशहरे के दिन,वो हमारे घर आये
बोले बच्चे रावण देखने गए हैं,
हमने सोचा,चलो हम आपको ही देख आयें
हमने कहा  सच ,होता बड़ा तमाशा है
रावण को देखने सब जाते हैं,
राम को देखने कोई नहीं जाता है
आप तो हमेशा से रूढ़ियाँ तोड़ते आये है
अच्छा हुआ,आप रावण देखने नहीं गये,
हमारे यहाँ आये है
पर वहां बच्चों को क्या मज़ा आएगा
आप तो यहाँ है,
बच्चों को रावण  कैसे  नज़र आएगा?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, October 3, 2011

हम नूतन घर में आयें है

हम नूतन घर में आये है
------------------------------
नए पडोसी,नयी पड़ोसन
नया चमकता सुन्दर आँगन
नूतन कमरे और वातायन
      ये  सब मन को अति भाये है
       हम नूतन घर में आये है
कोठी में थे,बड़ी शान में
थे जमीन पर ,उस मकान में
आज सातवें आसमान में
        हमने निज पर फैलायें है
        हम नूतन घर में आये है
प्यारा दिखता उगता सूरज
सुदर लगता ढलता सूरज
धूप,रोशनी,दिन भर जगमग
        नवप्रकाश में मुस्काये है
        हम नूतन घर में आये है
तरणताल में नर और नारी
गूंजे बच्चों की किलकारी
 क्लब,मंदिर,सुख सुविधा सारी
          पाकर के हम हर्शायें है
          हम नूतन घर में आये है

झरने,फव्वारे खुशियों के

शीतल,तेज हवा के झोंक

ताक झांक करने के मौके
        इस ऊंचे घर में पायें है
     
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
(यह  कविता मेरे ओरंज काउंटी में
 आने के उपरान्त लिखी गयी है)

उस सर्दी की सुबह

उस सर्दी की सुबह
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सर्दी की देर सुबह,
जवान होती हुई कुनकुनी धूप'
अपने विकसते यौवन की ऊष्मा की,
 प्रखरता बिखरा रही थी
और सामनेवाली छत पर,
एक सद्यस्नाना सुमुखी,
अपने गीले बालों को
धूप में
सुखा रही थी
उसके श्यामल श्यामल केश,
उसके चन्द्र मुख पर,
कभी बादल से छाते थे,
कभी हट जाते थे
और रह रह कर'
उस छत पर,
पूनम के चाँद की छवि'
नज़र आ रही थी
पास की एक छत पर,
एक किशोर लड़का,
हाथों में लिए हुए किताब,
इधर उधर झांक रहा था
और दूसरी छत पर खड़ी,
जवान होती हुई लड़की को,
कनखियों से ताक रहा था
दूसरी छत पर,
रस्सी की तनी हुई तनी पर,
एक महिला,तनी तनी सी,
धुले हुए कपडे सुखा रही थी
हवा के प्रवाह से,
उसकी धुली हुई छोटी सी अंगिया,
बार बार उड़ कर गिर जाती थी,
और वह उसे,
सूखती साड़ी के नीचे दबा  रही थी
मै इन अद्भुत नजारों को,
देखने में मस्त था,
मगर घर के चौके से,
मक्की की रोटी और सरसों के साग की ,
सोंधी सोंधी खुशबू आ रही थी
मैंने आँखों का स्वाद छोड़ा,
और जिव्हा का स्वाद पाने के लिए,
रसोईघर की ओर दौड़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, October 2, 2011

हसरत और हकीकत

हसरत और हकीकत
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झांक कर के देखना या देख कर के झांकना
कुछ दिखे, इस ताक में,बस हर तरफ ही ताकना
तितलियों सी नज़र उडती,फूल कितने ही खिले,
एक पर जा कर कभी भी ,मगर टिकती आँख ना
चाहतों के पंख लम्बे,हैं उड़ाने दूर की ,
सभी चाहे चाँद पाना, मगर मिलता चाँद ना
सभी का मन लुभाती है,खुशबुएँ  पकवान की,
पेट घर की रोटियों  से ही पड़ेगा  पाटना
उनके घर के झाड़ फानूस ,देख कर ललचाओ मत,
लायेगा घर का दिया ही, झोंपड़ी में चांदना
आपकी की जूही कली ही, जिंदगी महकाएगी,
मिल सकेगा,दूसरों के बाग़ का गुलाब ना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, October 1, 2011

ये उन्नत उन्नत युग्म शिखर

सागर की लहरों का योवन,सरिता का कल कल स्पंदन
ये उन्नत उन्नत युग्म शिखर,जिनमे हर पल हर क्षण कम्पन
जैसे पुष्पों में बिकसे फल,फल में भी पुष्पों का सौरभ
योवन के उपवन की बहार, माता की ममता के गौरव
इन  में   अपरिमित वात्सल्य ,ममता से भी ज्यादा ममत्व,
है घनीभूत इन पुंजों में,सुन्दरता का सारा रहस्य
ये मादकता से भी मादक,ये कोमलता भी कोमल
कितने सुंदर चंचल मनहर ,ये स्नेहिल ममता के निर्झर
जैसे की क्षीर सरोवर में ,हो खिले हुए दो श्वेत कमल
या एक साथ हो चमक रहे,ज्यों भुवनभास्कर ,रजनीकर
या सुधा भरे ये युगल कलश,ममता मादकता का संगम
कितना स्निग्ध कितना कोमल,ये गंगा जमुना का उदगम
इनके स्पंदन कम्पन में,मुखरित होते जीवन के स्वर
ये ज्योतिर्पुंज कर रहे है ,आलोकित प्रणय विभा सुंदर
जब खुद अपना ही ह्रदय भेद,कर प्रकटे है ये युग्म शिखर
तो औरों के उर भेदन में,इनको लगता केवल पल भर
मन को चुभ चुभसा जाता है,स्वछंद मचलता सा योवन
पर आलिंगन के बंधन में बढता है इनका तीखापन
सुन्दरता का रस छिपा हुआ है,इन्ही वक्र रेखाओ में
 नारी तन का सारा सोश्तव, सिमटा है इनकी बाँहों में
कटी कंचन कट विधि ने जब,ममता की माटी में घोला
अपनी सम्पूर्ण कलाओं को ,पहनाया यह जीवित चोला
गढ़ डाले ये स्तूप युगल, तो अमर हो गयी सुन्दरता
रह गया देखता खुद अपनी ,रचना को वह सृष्टिकर्ता
लख मूर्त रूप सुन्दरता का,यदि दोल गया आराधक मन
कोमल कगार पर फिसल गयी,चंचल दृग की चंचल चितवन
ये दोष नहीं है चितवन का,ये मौन निमंत्रण देते है
ये दो उभरे नवनीत शिखर ,जब खुद आमंत्रण देते है
पुष्पों का सौरभ पाने को,सबका ही मन ललचाता है
इनका आलिंगन पाने को,जी किसका नहीं चाहता है
वह नजर  नजर ही नहीं अगर,इनको देखे और न फिसले
वह जिगर जिगर ही नहीं अगर,इनको देखे और न मचले
वह रूप रूप ही नहीं अगर,उसमे कोई आव्हान न हो
सौन्दर्य सार्थक न तब तक,जब तक उसका रसपान न हो

These two hillocks (breasts)

Like tidal waves of oscean
And gentle flowing of river
These two beautiful hillocks
Are vibrant always, ever
Like fruits have grown on flowers
And having the fragrance of flowers
Blooming in the garden of youth
And proud possession of mother
They are full of love for child
And are symbols of motherhood’s pride
All the secrets of women’s beauty
Are concentrated on this hill site
They are more exciting then excitement
And are softer than softness
These fountains of love for child
Are beautiful and full of goodness
Like two lotus are blooming
In a poand that is milky white
Or sun and moon are shining
Both together in the night
Or these two pots full of nectar
Combination of excitement and motherhood
These origins of river ganga jamuna
Are so soft lovely and good
The vibrations of these hillocks
Are singing the song of life
These two objects of light
Are brightening lovers night
These two hillocks have come out
By piercing their own heart
It hardly takes a moment
To pierce any body’s heart
These bubbling symbols of youth
Pricks hearts of all with grace
But their sharpness increases
Manifold when you embrace
All the secrets of women’s beauty
Is hidden in these beautiful curves
The built up of women’s body
Is concentrated in these hemispheres
After cutting gold from body’s waist
God mixed it with motherhood’s charm
With all His artistic talents
Gave the mixture this beautiful form
He made these two lovely hillocks
And immortal beauty blazed
So beautiful was His creation
That He gazed and gazed and gazed
By seeing these symbols of beauty
If your heart get perplexed
On the peaks of these beautiful mountains
Your eyes remain stayed
This is not the fault of eyes
They silently call for attention
These two lovely hills of butter
Are giving you an invitation
Who will not like to enjoy
The soothing fragrance of flowers
Who will not like to embrace
These two beautiful towers
That eye is not an eye
Which does not look when they are sited
That heart is not a heart
Who sees them and is not excited
That beauty is not a beauty
If does not have attraction
The real meaning fullness of beauty
Is when it is enjoyed with passion