Tuesday, June 14, 2011

मज़ा बुढ़ापे का

मज़ा बुढ़ापे का
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सीनियर सिटिज़न हैं,हुए रिटायर हम हैं,
                  मस्ती का आलम है,मौज हम मनाते हैं
नहीं कोई काम धाम,अब तो बस है आराम,
                   तीरथ और ग्राम ग्राम ,घूमते घुमाते हैं
आजकल निठल्ले हैं,एकदम अकेल्ले हैं,
                   पैसा जो पल्ले है,खरचते,उड़ाते है
कैसा भी हो मौसम,नहीं कोई चिंता गम,
                     मज़ा बुढ़ापे का हम,जम कर उठाते है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

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