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Sunday, December 30, 2018
Monday, December 24, 2018
Saturday, December 1, 2018
Friday, November 30, 2018
Friday, November 9, 2018
धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन की
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट तरीका
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते वास देवगण
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य बहुत हो जाते संचित
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ सुनिश्चित
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पकड़ा देती थी हमारे हाथ में माँ, झुनझुना
ये हमारे लिए कुतुहल ,एक होता था बड़ा ,
हम हिलाते हाथ थे और बजने लगता झुनझुना
हो बड़े ,स्कूल ,कालेज में जो पढ़ने को गए ,
तो पिताजी ने थमाया ,किताबों का झुनझुना
बोले अच्छे नंबरों से पास जो हो जायेंगे ,
जिंदगी भर बजायेंगे ,केरियर का झुनझुना
फिर हुई शादी हमारी ,और जब बीबी मिली ,
पायलों की छनक ,चूड़ी का खनकता झुनझुना
ऐसा कैसा झुनझुना देती है पकड़ा बीबियाँ,
गिले शिकवे भूल शौहर ,बजते बन के झुनझुना
जिंदगी भर लीडरों ने ,बहुत बहकाया हमें ,
दिया पकड़ा हाथ में ,आश्वासनों का झुनझुना
और होती बुढ़ापे में ,तन की हालत इस तरह ,
होती हमको झुनझुनी है,बदन जाता झुनझुना
लड़ाई और प्यार
चम्मच से चम्मच टकराते,जब खाने की टेबल पर ,
तो निश्चित ये बात समझ लो,खाना है स्वादिष्ट बना
नज़रों से नज़रें टकराती,तब ही प्यार पनपता है ,
लडे नयन ,तब ही तो कोई ,राँझा कोई हीर बना
एक दूजे को गाली देते ,नेता जब चुनाव लड़ते ,
मतलब पड़ने पर मिल जाते ,लेते है सरकार बना
मियां बीबी भी लड़ते है,लेकिन बाद लड़ाई के,
होता है जब उनका मिलना,देता प्यार मज़ा दुगुना
घोटू
रिश्ते-मधुर और चटपटे
रिश्तों का दूध,थोड़े से खटास से,
जब जाता है फट
तो बस छेना बन कर जाता है सिमट
जो प्यार की चाशनी में उबाले जाने पर
बन जाता है रसगुल्ला,
स्वादिष्ट,रसीला और मनहर
सूजी की छोटी छोटी पूड़ियाँ,
प्यार की स्निघ्ता में धीरे धीरे तली जाए,
तो बन जाती है फुलकियाँ
जिनको अगर खाया जाए,
आपसी रिश्तों का,चटपटा पानी भर
तो वो गोलगप्पे,स्वाद की घूंटो से,
देते है खुशियाँ भर
धनिया और पुदीने के,
पत्तों सा सादा जीवन,
प्यार के मसालों के साथ पिस कर ,
बन जाता है चटपटी चटनी
जीवन की राहें ,जलेबी की तरह,
कितनी ही टेडी हो,
प्यार के रस में डूब कर,
बन जाती है स्वादिष्ट और रस भीनी
सिर्फ प्यार की शर्करा में ही एसा मिठास है,
जो बिना डायबिटीज के दर से,
जीवन में मधुरता भरता है
रिश्तों में अपनापन,
चाट का वो मसाला है,
जो जीवन को चटपटा और स्वादिष्ट करता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
लक्ष्मी माता और आज की राजनीति
——————————————–
जब भी मै देखता हूँ,
कमालासीन,चार हाथों वाली ,
लक्ष्मी माता का स्वरुप
मुझे नज़र आता है,
भारत की आज की राजनीति का,
साक्षात् रूप
उनके है चार हाथ
जैसे कोंग्रेस का हाथ,
लक्ष्मी जी के साथ
एक हाथ से 'मनरेगा'जैसी ,
कई स्कीमो की तरह ,
रुपियों की बरसात कर रही है
और कितने ही भ्रष्ट नेताओं और,
अफसरों की थाली भर रही है
दूसरे हाथ में स्वर्ण कलश शोभित है
ऐसा लगता है जैसे,
स्विस बेंक में धन संचित है
पर एक बात आज के परिपेक्ष्य के प्रतिकूल है
की लक्ष्मी जी के बाकी दो हाथों में,
भारतीय जनता पार्टी का कमल का फूल है
और वो खुद कमल के फूल पर आसन लगाती है
और आस पास सूंड उठाये खड़े,
मायावती की बी. एस. पी. के दो हाथी है
मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी की,
सायकिल के चक्र की तरह,
उनका आभा मंडल चमकता है
गठबंधन की राजनीती में कुछ भी हो सकता है
तृणमूल की पत्तियां ,फूलों के साथ,
देवी जी के चरणों में चढ़ी हुई है
एसा लगता है,
भारत की गठबंधन की राजनीति,
साक्षात खड़ी हुई है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, November 8, 2018
Saturday, November 3, 2018
Friday, November 2, 2018
Wednesday, October 31, 2018
Tuesday, October 23, 2018
नारी जीवन
कितना मुश्किल नारी जीवन
उसे बना कर रखना पड़ता,जीवन भर ,हर तरफ संतुलन
कितना मुश्किल नारी जीवन
जिनने जन्म दिया और पाला ,जिनके साथ बिताया बचपन
उन्हें त्यागना पड़ता एक दिन,जब परिणय का बंधता बंधन
माता,पिता,भाई बहनो की , यादें आकर बहुत सताए
एक पराया , बनता अपना , अपने बनते ,सभी पराये
नयी जगह में,नए लोग संग,करना पड़ता ,जीवन व्यापन
कितना मुश्किल नारी जीवन
कुछ ससुराल और कुछ पीहर ,आधी आधी वो बंट जाती
नयी तरह से जीवन जीने में कितनी ही दिक्कत आती
कभी पतिजी बात न माने , कभी सास देती है ताने
कुछ न सिखाया तेरी माँ ने ,तरह तरह के मिले उलाहने
कभी प्रफुल्लित होता है मन, और कभी करता है क्रंदन
कितना मुश्किल नारी जीवन
इसी तरह की उहापोह में ,थोड़े दिन पड़ता है तपना
फिर जब बच्चे हो जाते तो,सब कुछ लगने लगता अपना
बन कर फिर ममता की मूरत,करती है बच्चों का पालन
कभी उर्वशी ,रम्भा बन कर,रखना पड़ता पति का भी मन
किस की सुने,ना सुने किसकी ,बढ़ती ही जाती है उलझन
कितना मुश्किल नारी जीवन
बेटा ब्याह, बहू जब आती ,पड़े सास का फर्ज निभाना
तो फिर, बेटी और बहू में ,मुश्किल बड़ा ,संतुलन लाना
बेटा अगर ख्याल रखता तो, जाली कटी है बहू सुनाती
पोता ,पोती में मन उलझा ,चुप रहती है और गम खाती
यूं ही बुढ़ापा काट जाता है ,पढ़ते गीता और रामायण
कितना मुश्किल नारी जीवन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम
(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )
एक दिन लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी
और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी
बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,
रह रहे हो अपने ससुराल में
कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,
साला साली है किस हाल में
प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले
मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले
तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट
बाकी बचे चार बहने और भाई आठ
तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है
और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है
'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है
और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है
तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है
और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है
दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी
यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी
हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना
पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना
जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत
और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत
और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे
उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे
'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है
और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है
बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी
तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी
और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना
तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना
और यदि लोकसभा का सत्र रहा हो चल
तो वहां,सत्ता और विपक्ष,
एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'
अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर
और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर
और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी
पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी
और चाइना वालों का भरोसा नहीं,
वीसा देंगे या ना देंगे
फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे
तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना
फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
द्रौपदी
पत्नी जी,दिन भर,घर के काम काज करती
एक रात ,बोली,डरती डरती
मै सोचती हूँ जब तब
एक पति में ही जब हो जाती ऐसी हालत
पांच पति के बीच द्रौपदी एक बिचारी
होगी किस आफत की मारी
जाने क्या क्या सहती होगी
कितनी मुश्किल रहती होगी
एक पति का 'इगो'झेलना कितना मुश्किल,
पांच पति का 'इगो ' झेलती रहती होगी
उसके बारे में जितना भी सोचा जाए
सचमुच बड़ी दया है आये
उसकी जगह आज की कोई,
जागृत नारी,यदि जो होती
ऐसे में चुप नहीं बैठती
पांच मिनिट में पाँचों को तलाक दे देती
या फिर आत्मघात कर लेती
किन्तु द्रौपदी हाय बिचारी
कितनी ज्यादा सहनशील थी,
पांच पुरुष के बीच बंटी एक अबला नारी
सच बतलाना,
क्या तुमको नहीं चुभती है ये बात
कि द्रौपदी के साथ
उसकी सास का ये व्यवहार
नहीं था अत्याचार?
सुन पत्नी कि बात,जरा सा हम मुस्काये
बोले अगर दुसरे ढंग से सोचा जाए
दया द्रौपदी से भी ज्यादा,
हमें पांडवों पर आती है,जो बेचारे
शादीशुदा सभी कहलाते,फिर भी रहते,
एक बरस में साड़े नौ महीने तक क्वांरे
वो कितना दुःख सहते होंगे
रातों जगते रहते होंगे
तारे चाहे गिने ना गिने,
दिन गिनते ही रहते होंगे
कब आएगी अपनी बारी
जब कि द्रौपदी बने हमारी
और उनकी बारी आने पर ढाई महीने,
ढाई महीने क्यों,दो महीने और तेरह दिन,
मिनिटों में कट जाते होंगे
पंख लगा उड़ जाते होंगे
और एक दिन सुबह,
द्वार खटकाता होगा कोई पांडव ,
भैया अब है मेरी बारी
आज द्रौपदी हुई हमारी
और शुरू होता होगा फिर,वही सिलसिला,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार का
और द्रौपदी चालू करती,
एक दूसरे पांडव के संग,
वही सिलसिला नए प्यार का
तुम्ही बताओ
पत्नी जब महीने भर मैके रह कर आती,
तो उसके वापस आने पर,
पति कितना प्रमुदित होता है
उसके नाज़ और नखरे सहता
लल्लू चप्पू करता रहता
तो उस पांडव पति की सोचो,
जिसकी पत्नी,उसको मिलती,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार में
पागल सा हो जाता होगा
उस पर बलि बलि जाता होगा
जब तक उसका प्यार जरा सा बासी होता,
तब तक एक दूसरे पांडव ,
का नंबर आ जाता होगा
निश्चित ही ये पांच पांच पतियों का चक्कर,
स्वयं द्रोपदी को भी लगता होगा सुख कर,
वर्ना वह भी त्रिया चरित्र दिखला सकती थी
आपस में पांडव को लड़ा भिड़ा सकती थी
यदि उसको ये नहीं सुहाता,
तो वह रख सकती थी केवल,
अर्जुन से ही अपना नाता
लेकिन उसने,हर पांडव का साथ निभाया
जब भी जिसका नंबर आया
पति प्यार में रह कर डूबी
निज पतियों से कभी न ऊबी
उसका जीवन रहा प्यार से सदा लबालब
जब कि विरह वेदना में तडफा हर पांडव
तुम्ही सोचो,
तुम्हारी पत्नी तुम्हारे ही घर में हो,
पर महीनो तक तुम उसको छू भी ना पाओ
इस हालत में,
क्या गुजरा करती होगी पांडव के दिल पर,
तुम्ही बताओ?
पात्र दया का कौन?
एक बरस में ,
साड़े साड़े नौ नौ महीने,
विरह वेदना सहने वाले 'पूअर'पांडव
या फिर हर ढाई महीने में,
नए प्यार से भरा लबालब,
पति का प्यार पगाती पत्नी,
सबल द्रौपदी!
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मुसीबत ही मुसीबत
———————–
मौलवी ने कहा था खैरात कर,
रास्ता है ये ही जन्नत के लिये
वहां जन्नत में रहेंगी हमेशा,
हूरें हाज़िर तेरी खिदमत के लिये
ललक मन में हूर की ऐसी लगी,
आ गये हम मौलवी की बात में
सोच कर जन्नत में हूरें मिलेगी,
लुटा दी दौलत सभी खैरात में
और आखिर वो घडी भी आ गयी,
एक दिन इस जहाँ से रुखसत हुए
पहुंचे जन्नत ,वेलकम को थी खड़ी,
बीबी बन कर हूर,खिदमत के लिये
हमने बोला यहाँ भी तुम आ गयी,
हो गयी क्या खुदा से कुछ गड़बड़ी
अरे जन्नत में तो मुझ को बक्श दो,
इस तरह क्यों हो मेरे पीछे पड़ी
बोली बीबी मौलवी का शुक्र है,
दिया जन्नत का पता मुझको बता
कहा था उसने की तू खैरात कर,
पांच टाईम नमाज़ें करके अता
बताया था होगी जब जन्नत नशीं,
हूर बन कर फरिश्तों से खेलना
मुझको क्या मालूम था जन्नत में भी,
पडेगा मुझको ,तुम्ही को झेलना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गृह लक्ष्मी
गृह लक्ष्मी
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Sunday, October 21, 2018
Friday, October 19, 2018
Wednesday, October 17, 2018
Sunday, October 14, 2018
चौहत्तरवें जन्मदिन पर -जीवन संगिनी से
उमर बढ़ रही ,पलपल,झटझट
हुआ तिहत्तर मैं ,तुम अड़सठ
एक दूसरे पर अवलम्बित ,
एक सिक्के के हम दोनों पट
सीधे सादे ,मन के सच्चे
पर दुनियादारी में कच्चे
बंधे भावना के बंधन में,
पर दुनिया कहती हमको षठ
कोई मिलता ,पुलकित होते
याद कोई आ जाता ,रोते
तुम भी पागल,हम भी पागल,
नहीं किसी से है कोई घट
पलपल जीवन ,घटता जाता
भावी कल ,गत कल बन जाता
कभी चांदनी है पूनम की,
कभी अमावस का श्यामल पट
इस जीवन के महासमर में
हरदम हार जीत के डर में
हमने हंस हंस कर झेले है,
पग पग पर कितने ही संकट
मन में क्रन्दन ,पीड़ा ,चिंतन
क्षरण हो रहा,तन का हर क्षण
अब तो ऐसे लगता जैसे ,
देने लगा बुढ़ापा आहट