Sunday, December 30, 2018

नया बरस -पुरानी बातें 

इस नए बरस की बस ,इतनी सी कहानी है 
कैलेंडर नया लटका ,पर कील पुरानी  है 
महीने है वो ही बारह,हफ्ते के  कुछ वारों ने ,
कुछ तारीखों संग लेकिन  ,की छेड़ा खानी है 
सर्दी में ठिठुरना है,ट्रेफिक में भी फंसना है ,
होटल है बड़ी मंहगी ,बस जेब कटानी है 
 दो पेग चढ़ा कर के ,दो पल की मस्ती कर लो,
सर भारी सुबह होगा ,तो 'एनासिन'  खानी है 
बीबी से  बचा नजरें  ,खाया था गाजर हलवा 
बढ़ जायेगी 'शुगर 'तो ,अब डाट भी खानी है 
कितने ही 'रिसोल्यूशन 'नव वर्ष में तुम कर लो,
संकल्पो की सब बातें ,दो दिन में भुलानी है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नव वर्ष
     नव वर्ष
नए वर्ष का जशन मनाओ
आज ख़ुशी आनंद उठाओ

गत की गति से आज आया है
लेकिन तुम यह भूल न जाओ
कल कल था तो आज आया है
कल के कारण  कल आएगा
आने वाले कल की सोचो
यही आज कल बन जायेगा
कल भंडार अनुभव का है
कल से सीखो, कल से जानो
कल ने ही कांटे छांटे  थे
किया सुगम पथ ,इतना मानो
आज तुम्हे कुछ करना होगा
तो ही कल के काम आओगे
कल की बात करेगी बेकल
जब तुम खुद कल बन जाओगे
यह तो जीवन की सरिता है
कल कल कर बहते जाओ
आने वाले कल की सोचो
बीते कल को मत बिसराओ

नए वर्ष का जशन मनाओ 
आज ख़ुशी  आनंद उठाओ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इमारत,दरख़्त और इंसान 

कुछ घरोंदे बन गए घर , कुछ घरोंदे ढह गये 
निशां कुछ के,खंडहर बन ,सिर्फ बाकी रह गये 

कल जहाँ पर महल थे ,रौनक बसी थी ,जिंदगी थी 
राज था रनवास था और हर तरफ बिखरी ख़ुशी थी 
वक़्त के तूफ़ान ने ,ऐसा झिंझोड़ा ,मिट गया सब 
काल के खग्रास बन कर ,हो गए वीरान है  अब 
उनके किस्से आज बस,इतिहास बन कर रह गए है 
कुछ घरोंदे बन गए घर ,कुछ घरोंदे  ढह गये  है 

भव्य हो कितनी इमारत, उसकी नियति है उजड़ना 
प्रकृति का यह चक्र चलता सदा बन बन कर बिगड़ना 
भवन भग्नावेश तो इतिहास की बन कर धरोहर 
पुनर्जीवित मान पाते ,जाते बन पर्यटन स्थल 
चित्र खंडित दीवारों के ,सब कहानी कह गये है
कुछ घरोंदे बन गये घर ,कुछ घरोंदे ढह गये है 

वृक्ष कितना भी घना हो ,मगर पतझड़ है सुनिश्चित 
टूटने पर काम आये ,काष्ठ ,नव निर्माण के हित 
वृक्ष हो या इमारत,हो ध्वंस छोड़े निज निशां पर 
मनुज का तन ,भले कंचन ,मिटे  तो बस राख केवल 
अस्थि के अवशेष जो भी  बचे ,गंगा बह गये है 
कुछ घरोंदे ,बन गये  घर,कुछ घरोंदे ढह गये है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '    

Monday, December 24, 2018

महरियों की स्ट्राइक 

अगर महरियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
तो क्या होगा घर की मेम साहबों का 
देर सुबह तक लेती दुबक रजाई में ,
क्या होगा उन प्यारे प्यारे ख्वाबों का 
घर में बिखरा कचरा मौज मनाएगा ,
सीकें झाड़ू की चुभ कर नहीं उठाएगी 
प्यासी फरश  बिचारी  यूं ही तरसेगी ,
चूड़ी खनका,पोंछा कौन लगाएगी 
जूंठे बरतन पड़े सिंक में सिसकेंगे ,
कौन उन्हें स्नान करा कर पोंछेंगा 
मैले कपडे पड़े रहेंगे कोने में ,
नहीं कोई धोने की उनको सोचेगा 
क्योंकि सुबह से ऑफ मूड हो मेडम का 
उनके सर में दर्द ,कमर दुखती होगी 
पतिजी सर सहला कर चाय पिलायेंगे  
नज़रद्वार पर जा जा कर रूकती होगी 
खुदा करे स्ट्राइक टूटे जल्दी से 
और मेहरी देवी के दरशन हो जायें 
दूर बिमारी मेडम की सब हो जाए ,
साफ़ और सुथरा घर और आंगन हो जाए 
वरना विपत्ति पहाड़ गिरेगा पतियों पर ,
सुबह शाम खाना आएगा ढाबों का 
अगर मेहरियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
तो क्या होगा घर की मेम साहबों का 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Saturday, December 1, 2018

कम्बोडिया का अंगकोर वाट मंदिर देख कर 


सदियों पहले ,
दक्षिणी पूर्वी एशिया के कई देशो में ,
हिन्दू धर्म का विस्तार था 
आज का 'थाईलैंड 'तब 'स्याम 'देश था 
यहाँ भी हिंदुत्व का प्रचार प्रसार था 
बैंकॉक में कई मंदिर है व् पास ही ,
;अयुध्या 'नगर में ,कई मंदिर विध्यमान है 
वहां के हवाईअड्डे 'स्वर्णभूमि 'में ,
'अमृत मंथन 'का विशाल सुन्दर स्टेचू ,
उनके हिंदुत्व प्रेम की पहचान है 
यद्यपि अब वहां बौद्ध धर्म माना जाता है 
पर वहां के पुराने मंदिरों के टूर में ,
गणेशजी ,शिवजी आदि देवताओं की ,
पुरानी मूर्तियों का दर्शन हो जाता है  
आज का इंडोनेशिया ,
प्राचीन जावा ,सुमात्रा और बाली है 
वहां भी मंदिरों में हिन्दू देवताओं की प्रतिमाये सारी  है  
वहां अब भी रामायण और महाभारत के पात्र ,
मूर्तियों में नज़र आते है 
बाली में तो अब भी ,
कई हिन्दू धर्मावलम्बी पाए जाते है 
वहां के लगभग सभी घरों के आगे और दुकानों में ,
अब भी छोटे छोटे मंदिर पाए जाते है 
जिनमे देवताओ को लोग रोज 
फूल और प्रसाद चढ़ाते है 
तब का मलय देश अब मलेशिया है 
पर यहाँ से हिन्दू धर्म बिदा  हो गया है
तब का 'कम्बोज ' देश अब कम्बोडिया है और 
यह हिन्दू धर्म का पालक एक बड़ा राज्य था 
यहां राजा सूर्यवर्मन का साम्राज्य था 
बारहवीं सदी में राजा सूर्यवर्मन ७ ने 
तीस वर्षो में पांच सौ एकड़ क्षेत्र में फैला 
विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर बनवाया था 
जहाँ विष्णु और ब्रह्मा जी की मुर्तिया स्थापित है 
रामायण और महाभारत की कथाये दीवारों पर चित्रित है 
काल  के गाल में दबा यह विशाल मंदिर 
जब से फिर से खोजा गया है 
दुनिया भर के दर्शको के लिए 
एक आकर्षण का केंद्र बन गया है 
दुनिया भर के पर्यटकों की भीड़ ,
हमेशा ही लगी रहती है 
और इसे सराहते हुए कहती है 
कि जब खण्हर इतने बुलंद है तो इमारत जब बुलंद होगी 
तो इसकी सुंदरता कितनी प्रचंड होगी 
आज कम्बोडिया की अर्थव्यवस्था का 
पन्दरह प्रतिशत (!५ %)पर्यटन से आता है 
जहाँ विष्णु  पूजे जाते है वहां मेहरबान होती लक्ष्मी माता है 
इस मंदिर के दर्शन कर मेरे मन में एक बात आयी 
हमारे देश के कई मंदिरों में है ढेरों कमाई 
क्या वो कभी देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के काम आयी 
जब दूसरे देश मंदिरों के भग्नावेश दिखा कर करोड़ों कमा सकते है 
तो क्या हम हमारे मंदिर कुछ समय के लिए,
 विदेशी पर्यटकों को दर्शन के  लिए छोड़ कर कितना कमा सकते है 
और मंदिरों की इतनी कमाई देश की अर्थ व्यवस्था 
सुधारने के काम में ला सकते है 
फिर मन बोला छोडो यार ,ये सब बातें है बेकार 
हिन्दू राष्ट्र के हिन्दू देवभक्तों ने ,हिंदुत्व की महिमा के कितने गीत गाये 
पर बाबरी मस्जिद के गिरने के छब्बीस वर्ष बाद भी, 
राम की जन्मभूमि पर राम का मंदिर नहीं बना पाए 
फिर भी हम हिंदुत्व का दावा करते है बार बार 
हमारी इस असफलता पर हमें है धिक्कार 
ये हमारी आज की ओछी राजनीती और सोच का परिणाम है 
वर्ना यहाँ तो जन जन के दिलों में बसते  राम है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
वक़्त गुजारा खुशहाली में 

जीवन की हर एक पाली में 
वक़्त गुजारा खुशहाली  में 

होती सुबह ,दोपहर ,शाम 
यूं ही कटती उमर  तमाम 
हर दिन की है यही कहानी 
सुबह सुनहरी,शाम सुहानी 
ज्यों दिन होता तीन प्रहर है
तीन भाग में  बँटी  उमर  है 
बचपन यौवन और बुढ़ापा 
सबके ही जीवन में आता 
मुश्किल से  मिलता यह जीवन  
इसका सुख लो हरपल हरक्षण 
 रिश्ता बंधा  चाँद संग  ऐसा 
सुख दुःख  घटे बढे इस जैसा 
हर मुश्किल से लड़ते जाओ 
शीतल  चन्द्रकिरण  बरसाओ 
इसी प्रेरणा से जीवन में ,
फला ,पला मैं  हरियाली में 
जीवन की हरेक पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 
बचपन की पाली 
------------------
जब मैं था छोटा सा बच्चा 
सबके मन को लगता अच्छा 
सुन्दर सुन्दर सी  ललनाये 
गोदी रहती  मुझे  उठाये 
चूमा करती थी गालों को 
सहलाती मेरे बालो को 
ना चिंताएं और ना आशा 
आती थी बस दो ही भाषा 
एक रोना  एक हंसना प्यारा 
काम करा देती थी सारा 
हर लेती थी सारी  पीड़ा 
मोहक होती थी हर क्रीड़ा 
भरते हम,हंस हंस किलकारी 
सोते , माँ लोरी सुन ,प्यारी 
तब चंदा मामा होता था ,
खुश था देख बजा ताली मैं 
इस जूवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं खुशहाली में 
जवानी की पाली 
------------------
बचपन बीता ,आई जवानी 
जीवन की यह उमर सुहानी 
खुशबू और बहार का मौसम 
मस्ती और प्यार का मौसम 
देख कली तन,मादक,संवरा 
मेरे मन का आशिक़ भंवरा 
उन पर था मँडराया  करता
अपना प्यार लुटाया  करता 
जुल्फें सहला ललनाओं की 
चाह रखी  ,बंधने बाहों की 
साथ किसी के  बसा गृहस्थी 
थोड़े दिन तक मारी मस्ती 
फिर प्यारे बच्चों का पालन 
वो ममत्व और वो अपनापन 
अब हम करवाचौथ चाँद थे ,
पत्नी की पूजा थाली में 
जीवन की हरेक पाली में
वक़्त गुजारा खुशहाली में 
बुढ़ापे की पाली
------------------ 
साठ  साल का रास्ता नापा 
गयी  जवानी,आया बुढ़ापा 
कहने को हम हुए सयाने
पर तन पुष्प, लगा कुम्हलाने 
बची सिर्फ अनुभव की केसर 
बच्चे उड़े ,बसा अपने  घर 
अब न पारिवारिक चितायें 
मस्ती में बस  वक़्त  बितायें 
समय ही समय खुद के खातिर 
पर अब ना  उतना चंचल दिल 
धुंधली नज़रों से  अब  यार
कर न पाए उनका दीदार 
ललना बूढ़ा बैल ना  पाले 
अंकल कहे ,घास ना डाले 
रिश्ता चाँद संग नजदीकी,
सर पर चाँद,जगह खाली में 
इस जीवन की हर पाली में 
सदा रहा मैं  खुशहाली में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 
   

Friday, November 30, 2018

मेरा जीवन भर का दोस्त -चाँद 

चाँद से मेरा रिश्ता है पुराना 
बचपन में उसे कहता था चंदामामा 
मेरी जिद पर ,मम्मी के बुलावे पर ,
वो मुझ संग खेलने ,पानी के थाली में आता था 
मेरे इशारों पर ,हिलता डुलता था ,
नाचता था ,हाथ मिलाता था 
और जब जवानी आयी तो बिना मम्मी को बताये 
हमने कितनी ही चन्द्रमुखियों से नयन मिलाये 
और फिर एक कुड़ी फंस  गयी 
'तू मेरा चाँद ,मैं तेरी चांदनी कहने वाली ,
मेरे दिल में बस गयी 
वक़्त के साथ उस चंद्रमुखी ने 
हमें एक चाँद सा बेटा दिया ,
फिर एक चन्द्रमुख बेटी आयी 
और मेरे घरआंगन में ,चांदनी मुस्करायी 
चांदनी की राह में ,कई रोड़े ,बादलों से अड़े 
सुख और दुःख ,
कभी कृष्णपक्ष के चाँद की तरह घटे ,
कभी शुक्लपक्ष के चाँद की तरह बढ़े 
जिंदगी के आकाश में कई चंद्रग्रहण आये ,
कई मुश्किलों में फँसा 
कभी राहु ने डसा ,कभी केतु ने डसा 
और फिर शुद्ध हुआ 
समय के साथ वृद्ध हुआ 
और चाँद के साथ ,मेरी करीबियत और बढ़ गयी है ,
बुढ़ापे की इस उमर में 
बचपन में थाली में बुलाता था और अब,
चाँद खुद आकर बैठ गया है मेरे सर में 
बचे खुचे उजले बालों की बादलों सी ,चारदीवारी बीच ,
जब मेरी चमचमाती चंदिया चमकती है 
बीबी सहला कर मज़े लेती है ,
पर आप क्या जाने मेरे दिल पर क्या गुजरती है 
जब चंद्रमुखिया ,'हाई अंकल  कह कर पास से  निकलती है 

घोटू 

अचानक क्यों ?

शादी के बाद शुरु शुरू में ,
हम पत्नी को कभी डार्लिंग,कभी गुलबदन 
कभी 'हनी ' कह कर बुलाया करते थे 
और इस तरह अपना प्यार जताया करते थे 
पर वक़्त के साथ ;ढले  जज्बात 
एक दुसरे का नाम लेकर करने लगे बात 
पर इस सत्योत्तर की उम्र में ,एक पार्टी में ,
जब हमने उन्हें 'हनी 'कह कर पुकारा 
तो वो चकरा  गयी ,उन्हें लगा प्यारा 
घर आकर उनसे गया नहीं रहा 
बोली ऐसा आज मुझमे तुमने क्या देखा ,
जो इतने वर्षों बाद 'हनी 'कहा 
देखो सच सच बताना 
तुम्हे हमारी कसम,कुछ ना छुपाना 
हमने कहा ,सच तो ये है डिअर 
हमारी उमर हो रही है सत्योत्तर 
कभी  कभी याददास्त छोड़ देती है साथ 
कोशिश करने पर भी तुम्हारा नाम नहीं आरहा था याद 
सच तो ये है कि सोचते सोचते ,रह रह कर 
हमने तुम्हे तब पुकारा था 'हनी 'कह कर 
तुम तो यूं भी हमारे प्यार में सनी हो 
हमारे मन भाती ,मीठी सी 'हनी 'हो 

घोटू  
बीबियों का इकोनॉमिक्स 

सुनती हो जी 
बाजार जा रहा हूँ ,
कुछ लाना क्या ?
हाँ ,एक पाव काजू ,
एक पाव बादाम 
और एक पाव किशमिश ले आना 
मुझे गाजर का हलवा है बनाना 
पति सारा मेवा ले आया 
पांच दिन बाद उसे याद आया  
पर बीबीजी ने गाजर का हलवा नहीं चखाया 
वो बोला उस दिन सात सौ के ड्राय फ्रूट मगाये थे 
गाजर का हलवा नहीं बनाया 
पत्नीजी बोली अभी गाजर बीस रूपये किलो है ,
पंद्रह की हो जायेगी ,तब बनाउंगी 
चार किलो में बीस रूपये बचाऊंगी 
ऐसी होती है औरतों की इकोनॉमिक्स ,
सात सौ का मेवा डालेंगी
पर गाजर सस्ती होने के इन्तजार में ,
हलवा बनाना टालेंगी  
और इस तरह  बीस रूपये बचालेंगी 

घोटू 

Friday, November 9, 2018

       कार्तिक के पर्व 

धन तेरस ,धन्वन्तरी पूजा,उत्तम स्वास्थ्य ,भली हो सेहत 
और रूप चौदस अगले दिन,रूप निखारो ,अपना फरसक 
दीपावली को,धन की देवी,लक्ष्मी जी का ,करते पूजन 
सुन्दर स्वास्थ्य,रूप और धन का ,होता तीन दिनों आराधन 
पडवा को गोवर्धन पूजा,परिचायक है गो वर्धन   की 
गौ से दूध,दही,घी,माखन,अच्छी सेहत की और धन की 
होती भाईदूज अगले दिन,बहन भाई को करती टीका 
भाई बहन में प्यार बढाने का है ये उत्कृष्ट  तरीका 
पांडव पंचमी ,भाई भाई का,प्यार ,संगठन है दिखलाते 
ये दो पर्व,प्यार के द्योतक ,परिवार में,प्रेम बढाते 
सूरज जो अपनी ऊर्जा से,देता सारे जग को जीवन 
सूर्य छटी पर ,अर्घ्य चढ़ा कर,करते हम उसका आराधन 
गोपाष्टमी को ,गौ का पूजन ,और गौ पालक का अभिनन्दन 
गौ माता है ,सबकी पालक,उसमे करते  वास   देवगण 
और आँवला नवमी आती,तरु का,फल का,होता पूजन 
स्वास्थ्य प्रदायक,आयु वर्धक,इस फल में संचित है सब गुण 
एकादशी को ,शालिग्राम और तुलसी का ,ब्याह अनोखा 
शालिग्राम,प्रतीक पहाड़ के,तुलसी है प्रतीक वृक्षों का 
वनस्पति और वृक्ष अगर जो जाएँ उगाये,हर पर्वत पर 
पर्यावरण स्वच्छ होगा और धन की वर्षा ,होगी,सब पर 
इन्ही तरीकों को अपनाकर ,स्वास्थ्य ,रूप और धन पायेंगे 
शयन कर रहे थे जो अब तक,भाग्य देव भी,जग जायेंगे 
देवउठनी एकादशी व्रत कर,पुण्य  बहुत हो जाते संचित 
फिर आती बैकुंठ चतुर्दशी,हो जाता बैकुंठ  सुनिश्चित 
और फिर कार्तिक की पूनम पर,आप गंगा स्नान कीजिये 
कार्तिक पर्व,स्वास्थ्य ,धनदायक,इनकी महिमा जान लीजिये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
मुस्कराना सीख लो

जिंदगी में हर ख़ुशी मिल जायेगी,
आप थोडा मुस्कराना सीख लो
रूठ जाना तो बहुत आसन है,
जरा रूठों को मनाना सीख लो
जिंदगी है चार दिन की चांदनी,
ढूंढना अपना ठिकाना सीख लो
अँधेरे में रास्ते मिल जायेंगे,
बस जरा अटकल लगाना सीख लो
विफलताएं सिखाती है बहुत कुछ,
ठोकरों से सीख पाना, सीख लो
सफलता मिल जाये इतराओ नहीं,
सफलता को तुम पचाना सीख लो
कौन जाने ,नज़र कब,किसकी लगे,
नम्रता सबको दिखाना सीख लो
बुजुर्गों के पाँव में ही स्वर्ग है,
करो सेवा,मेवा पाना सीख लो
सैकड़ों आशिषें हैं बिखरी पड़ी,
जरा झुक कर ,तुम उठाना सीख लो
जिंदगी एक नियामत बन जायेगी,
बस सभी का प्यार पाना सीख लो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


आम आदमी

एक दिन हमारी प्यारी पत्नी जी ,
आम खाते खाते बोली ,
मेरी समझ में ये नहीं आता है
मुझे ये बतलाओ ,आम आदमी ,
आम आदमी क्यों कहलाता है
हमने बोला ,क्योंकि वो बिचारा ,
सीधासादा,आम की तरह ,
हरदम काम आता है
कच्चा हो तो चटखारे ले लेकर खालो
चटनी और अचार बनालो
या फिर उबाल कर पना बना लो
या अमचूर बना कर सुखालो
और पकने पर चूसो ,या काट कर खाओ
या मानगो शेक बनाओ
या पापड बना कर सुखालो ,
या बना लो जाम
हमेशा,हर रूप में आता है काम
वो जीवन भी आम की तरह ही बिताता है
जवानी में हरा रहता है ,
पकने पर पीला हो जाता है
कच्ची उम्र में खट्टा और चटपटा ,
और बुढापे में मीठा, रसीला हो जाता है
जवानी में सख्त रहता है ,
बुढापे में थोडा ढीला हो जाता है
और लुनाई भी गुम हो जाती,
वो झुर्रीला हो जाता है
अब तो समझ में आ गया होगा ,
आम आदमी ,आम आदमी क्यों कहलाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
          झुनझुना
बचपने में रोते थे तो ,बहलाने के वास्ते ,
                          पकड़ा देती थी हमारे हाथ में माँ, झुनझुना
ये हमारे लिए कुतुहल ,एक होता था बड़ा ,
                          हम हिलाते हाथ थे  और बजने लगता झुनझुना
हो बड़े ,स्कूल ,कालेज में जो पढ़ने को गए ,
                          तो पिताजी ने थमाया ,किताबों का झुनझुना
बोले अच्छे नंबरों से पास जो हो जायेंगे ,
                            जिंदगी भर बजायेंगे ,केरियर  का झुनझुना
फिर हुई शादी हमारी ,और जब बीबी मिली ,
                            पायलों की छनक ,चूड़ी का खनकता झुनझुना
ऐसा कैसा झुनझुना देती है पकड़ा बीबियाँ,
                            गिले शिकवे भूल शौहर ,बजते  बन के झुनझुना
 जिंदगी भर लीडरों ने ,बहुत बहकाया हमें ,
                             दिया पकड़ा हाथ में ,आश्वासनों का झुनझुना
और होती बुढ़ापे में ,तन की हालत इस तरह ,
                              होती हमको झुनझुनी है,बदन जाता झुनझुना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'    
रोज त्योंहार कर लेते

तवज्जोह जो हमारी तुम ,अगर एक बार कर लेते 
तुम्हारी जिंदगी में हम ,प्यार ही प्यार भर देते 
खुदा ने तुम पे बख्शी हुस्न की दौलत खुले हाथों,
तुम्हारा क्या बिगड़ता हम  ,अगर दीदार कर लेते 
पकड़ कर ऊँगली तुम्हारी ,हम पहुंची तक पहुँच जाते ,
इजाजत पास आने की,जो तुम एक बार गर देते 
तुम्हारे होठों की लाली ,चुराने की सजा में जो ,
कैद बाहों में तुम करती ,खता हर बार कर लेते 
तुम्हारे रूप के पकवान की ,लज्जत के लालच में,
बिना ही भूख दावत हम ,सौ  सौ बार कर लेते 
बिछा कर पावड़े हम पलकों के ,तुम्हारी राहों में ,
उम्र भर तुमको पाने का ,हम इन्तेजार कर लेते 
तुम्हारे रंग में रंग कर,खेलते रोज होली हम, 
जला दिये दीवाली के ,रोज त्यौहार कर लेते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Archive for May, 2014
रस के तीन लोभी
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   रस के तीन लोभी 
            भ्रमर 
गुंजन करता ,प्रेमगीत मैं  गाया करता  
खिलते पुष्पों ,आसपास ,मंडराया करता 
गोपी है हर पुष्प,कृष्ण हूँ श्याम वर्ण मैं 
सबके संग ,हिलमिल कर रास रचाया करता 
मैं हूँ रस का लोभी,महक मुझे है प्यारी ,
मधुर मधु पीता  हूँ,मधुप कहाया  करता 
                
                   तितली  
फूलों जैसी नाजुक,सुन्दर ,रंग भरी हूँ 
बगिया में मंडराया करती,मैं पगली हूँ 
रंगबिरंगी ,प्यारी,खुशबू मुझे सुहाती 
ऐसा लगता ,मैं भी फूलों की  पंखुड़ी  हूँ 
वो भी कोमल ,मैं भी कोमल ,एक वर्ण हम,
मैं पुष्पों की मित्र ,सखी हूँ,मैं तितली हूँ 
               
             मधुमख्खी 
भँवरे ,तितली सुना रहे थे ,अपनी अपनी 
प्रीत पुष्प और कलियों से किसको है कितनी 
पर मधुमख्खी ,बैठ पुष्प पर,मधु रस पीती ,
 मधुकोषों में भरती ,भर सकती वो जितनी 
मुरझाएंगे पुष्प ,उड़ेंगे तितली ,भँवरे ,
संचित पुष्पों की यादें है मधु में कितनी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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  May 31, 2014   ghotoo    Leave a comment
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देखो ये कैसा जीवन है
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     देखो ये कैसा जीवन है

गरम तवे पर छींटा जल का 
जैसे  उछला उछला  करता
फिर अस्तित्वहीन हो जाता, 
बस  मेहमान चंद  ही पल का  
जाने कहाँ किधर खो जाता ,
सबका ही वैसा जीवन है 
देखो ये कैसा जीवन है 
मोटी सिल्ली ठोस बरफ की 
लोहे के रन्दे  से घिसती 
चूर चूर हो जाती लेकिन,
फिर बंध सकती है गोले सी 
खट्टा  मीठा शरबत डालो,
चुस्की ले, खुश होता मन है 
देखो ये कैसा जीवन  है 
होती भोर निकलता सूरज 
पंछी संग मिल करते कलरव 
होती व्याप्त शांति डालों  पर,
नीड छोड़ पंछी उड़ते  जब 
नीड देह का ,पिंजरा जैसा,
और कलरव ,दिल की धड़कन है 
देखो ये कैसा जीवन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

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 May 31, 2014   ghotoo    Leave a comment
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जो कमीने है,कमीने ही रहेंगे 
दूसरों का चैन ,छीने ही रहेंगे 
कुढ़ते ,औरों की ख़ुशी जो देख उनको,
जलन से आते पसीने ही रहेंगे 
कोई पत्थर समझ कर के फेंक भी दे,
पर नगीने तो नगीने ही रहेंगे 
 आस्था है मन में तो ,काशी है काशी ,
और मदीने तो मदीने ही रहेंगे 
उनमे जब तक ,कुछ कशिश,कुछ बात है ,
हुस्नवाले लगते सीने ही रहेंगे 
 अब तो भँवरे ,तितलियों में ठन गयी है,
कौन रस फूलों का पीने ही रहेंगे 
जितना भी ले सकते हो ले लो मज़ा ,
आम मीठे,थोड़े महीने ही रहेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 28, 2014   ghotoo    Leave a comment
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           कुर्सी

कुर्सियों पर आदमी चढ़ता नहीं है ,
                 कुर्सियां चढ़ बोलती दिमाग पर 
भाई बहन,ताऊ चाचा ,मित्र सारे,
                 रिश्ते नाते ,सभी रखता  ताक पर  
गर्व से करता तिरस्कृत वो सभी को ,
                  बैठने देता न मख्खी   नाक पर 
भूत कुर्सी का चढ़ा है जब उतरता ,
                  आ जाता है अपनी वोऔकात पर     

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 27, 2014   ghotoo    Leave a comment
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सलाह
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           सलाह 
एक दिन हमारे मित्र  बड़े परेशान थे 
क्या करें,क्या ना करें,शंशोपज में थे, हैरान थे 
हमने उनसे कहा ,सलाह देनेवाले बहुत मिलेंगे,
मगर आप अपने को इस तरह साँचें में ढाल  दें 
जो बात समझ में न आये ,उसे एक कान से सुनकर,
दूसरे कान से निकाल दें 
आप सबकी सुनते रहें 
मगर करें वही ,जो आपका दिल  कहे
लगता है उन्होंने मेरी बात पर अमल कर लिया है 
मेरी सलाह को इस कान से सुन कर,
उस कान से निकाल दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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अच्छे दिन आने लगे है
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      अच्छे दिन आने लगे है

वो भी दिन थे ,जब दस जनपथ,
                      कहता सूर्य उगा करता था 
जब बगुला भी राजहंस बन,
                     मोती सिर्फ चुगा करता था 
'मौन'बना कुर्सी की शोभा ,
                      कठपुतली बन नाचा करता,
जब तक 'टोल टैक्स'ना भर दो,
                       सारा काम  रुका था करता   
चोरबाजारी ,बेईमानी ,
                          घोटालों की चल पहल थी  
 चमचे  और चाटुकारों की,
                           सभी तरफ होती हलचल थी 
देखो मौसम बदल रहा है,
                        अब अच्छे दिन आने को है 
प्रगतिशील,कर्मठ मोदी जी,
                          अब सरकार बनाने को है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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जनाजा -हसरतों का
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      जनाजा -हसरतों का 
 
शून्य पर आउट हुई मायावती जी,
            मुलायम का मुश्किलों से लगा चौका 
सोनिया जी सौ से आधे से भी कम में,
              सिमटी ,ऐसा  नतीजों ने दिया  चौंका 
सोचते थे करेंगे स्कोर अच्छा ,
                सत्ता में दिल्ली की शायद मिले मौका 
और मिल कर बनाएंगे तीसरा एक ,
                 मोर्चा हम,सभी सेक्युलर  दलों का 
रह गए पर टूट कर के सभी सपने ,
                 दे गयी जनता हमें इस बार धोका 
लहर मोदी की चली कुछ इस तरह से ,
                  जनाजा निकला  सभी की हसरतों का

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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चुनाव के बाद चिंतन

  चुनाव के बाद का चिंतन -कोंगेस का 
                       १ 
क्या बतलाएं ,हम पर कैसी बीती है 
कल तक भरी हुई गगरी ,अब रीती   है 
हुआ तुषारापात  सभी आशाओं  पर ,
हार गए हम , अबके  जनता  जीती है
                     २ 
सपने सारे मिटे , धूल में,बिखर गए 
नहीं तालियां,मिली गालियां ,जिधर गए   
उड़ते थे स्वच्छंद ,आज हम अक्षम है ,
वोटर  ऐसे  पंख हमारे   क़तर  गए 
                   ३ 
कुछ  कर्मो  के  फल से ,कुछ नादानी में 
ध्वस्त हुए ,मोदी की  तेज सुनामी  में 
बचे खुचे हम,मिल कर आज करें चिंतन ,
डूब गए क्यों ,हम चुल्लू भर पानी में

चुनाव के बाद चिंतन -मुलायम जी का 
           
लहर मोदी की चली ,उड़ गए सब के होश है 
पांच सीटें मिली हमको,जनता का आक्रोश है 
गांधी के परिवार ने पर पायी दो सीटें सिरफ ,
उनसे ढाई गुना है हम,हमको ये संतोष है

घोटू

 May 25, 2014   ghotoo    Leave a comment
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संगत का असर

          संगत का असर

तपाओ आग में तो निखरता है रंग सोने का,
                          मगर तेज़ाब में डालो तो पूरा गल ही जाता है
है मीठा पानी नदियों का,वो जब मिलती समंदर से ,
                           तो फिर हो एकदम  खारा ,बदल वो जल ही जाता है   
असर संगत  दिखाती है,जो जिसके संग रहता है,
                            वो उसके रंग में रंग  धीरे धीरे  ,खिल ही जाता  है 
अलग परिवारों से पति पत्नी होते ,साथ रहने पर,
                            एक सा सोचने का ढंग उनका  मिल ही जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 24, 2014   ghotoo    Leave a comment
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ब्याह तू करले मेरे लाल

            घोटू  के   पद 
       ब्याह तू करले मेरे लाल

ब्याह तू करले मेरे लाल 
नयी बहू के पग पड़ करते कितनी बार ,निहाल 
होनी थी जो हुई ,मिटा दे ,मन का सभी मलाल 
जनता के भरसक सपोर्ट का,रहा यही जो  हाल 
मोदी की सरकार चलेगी ,अब दस पंद्रह साल 
अपना बैठ ओपोजिशन मे ,बिगड़ जाएगा हाल 
चमचे भी सब  ,मुंह फेरेंगे,देख   समय  की चाल 
मैं बूढी,बीमार  आजकल, तबियत  है   बदहाल 
चाहूँ देखना , हँसता गाता , मै , तेरा   परिवार 
युवाशक्ति बन कर उभरेंगे ,तेरे  बाल  गोपाल 
अपने अच्छे दिन आएंगे ,तब फिर से एकबार 
ब्याह तू,करले मेरे लाल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 May 23, 2014   ghotoo    Leave a comment
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सुबह की धूप

          सुबह की धूप

सुबह सुबह की धूप ,धूप कब होती है ,
                       ये है पहला प्यार ,धरा से  सूरज का  
प्रकृति का उपहार बड़ा ये सुन्दर है,
                       खुशियों का संसार,खजाना सेहत का 
   धूप नहीं ये नयी नवेली  दुल्हन है ,
                        नाजुक नाजुक सी कोमल, सहमी ,शरमाती 
उतर क्षितिज की डोली से धीरे धीरे ,
                         अपने  बादल के घूंघट पट को सरकाती 
प्राची के रक्तिम कपोल की लाली है ,
                            उषा का ये प्यारा प्यारा  चुम्बन है 
अंगड़ाई लेती अलसाई किरणों का,
                             बाहुपाश में भर पहला आलिंगन है 
निद्रामग्न निशा का आँचल उड़ जाता,
                              अनुपम उसका रूप झलकने लगता है 
तन मन में भर जाती है नूतन उमंग ,
                              जन जन में ,नवजीवन जगने लगता है 
करने अगवानी नयी नयी इस दुल्हन की,     
                               कलिकाये खिलती ,तितली  है करती  नर्तन 
निकल नीड से पंछी कलरव करते है,
                                बहती शीतल पवन,भ्रमर करते  गुंजन 
 जगती ,जगती ,क्रियाशील होती धरती ,
                                शिथिल पड़ा जीवन हो जाता ,जागृत सा 
सुबह सुबह की धूप ,धूप कब होती है,
                                 ये है पहला प्यार ,धरा पर   सूरज का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

           कुर्सी

कुर्सियों पर आदमी चढ़ता नहीं है ,
                 कुर्सियां चढ़ बोलती दिमाग पर 
भाई बहन,ताऊ चाचा ,मित्र सारे,
                 रिश्ते नाते ,सभी रखता  ताक पर  
गर्व से करता तिरस्कृत वो सभी को ,
                  बैठने देता न मख्खी   नाक पर 
भूत कुर्सी का चढ़ा है जब उतरता ,
                  आ जाता है अपनी वोऔकात पर     

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

       ग़ज़ल

जो कमीने है,कमीने ही रहेंगे 
दूसरों का चैन ,छीने ही रहेंगे 
कुढ़ते ,औरों की ख़ुशी जो देख उनको,
जलन से आते पसीने ही रहेंगे 
कोई पत्थर समझ कर के फेंक भी दे,
पर नगीने तो नगीने ही रहेंगे 
 आस्था है मन में तो ,काशी है काशी ,
और मदीने तो मदीने ही रहेंगे 
उनमे जब तक ,कुछ कशिश,कुछ बात है ,
हुस्नवाले लगते सीने ही रहेंगे 
 अब तो भँवरे ,तितलियों में ठन गयी है,
कौन रस फूलों का पीने ही रहेंगे 
जितना भी ले सकते हो ले लो मज़ा ,
आम मीठे,थोड़े महीने ही रहेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लड़ाई और प्यार

चम्मच से चम्मच टकराते,जब खाने की टेबल पर ,
तो निश्चित ये बात समझ लो,खाना है स्वादिष्ट बना
नज़रों से नज़रें टकराती,तब ही प्यार पनपता है ,
लडे नयन ,तब ही तो कोई ,राँझा कोई हीर बना
एक दूजे को गाली देते ,नेता जब चुनाव लड़ते ,
मतलब पड़ने पर मिल जाते ,लेते है सरकार बना
मियां बीबी भी लड़ते है,लेकिन बाद लड़ाई के,
होता है जब उनका मिलना,देता प्यार मज़ा दुगुना

घोटू

ऐसा भी होता है

चाहते हैं लोग बिस्कुट कुरकुरे,
भले चाय में भिगो कर खाएंगे
कितनी ही सुन्दर हो पेकिंग गिफ्ट की,
मिलते ही रेपर उतारे जाएंगे
पहनती गहने है सजती ,संवरती ,
है हरेक दुल्हन सुहाग रात को,
जबकि होता है उसे मालूम ये,
मिलन में, ये सब उतारे जाएंगे

घोटू

बूढ़ों में भी दिल होता है

होता सिर्फ जिस्म बूढा है,
जो कुछ नाकाबिल होता है
पर जज्बात भड़कते रहते,
बूढ़ों में भी दिल होता है
सबसे प्यार महब्बत करना
और हुस्न की सोहबत करना
ताक,झाँक,छुप कर निहारना
चोरी चोरी ,नज़र मारना
जब भी देखें , फूल सुहाना
भँवरे सा उसपर मंडराना
सुंदरता की खुशबू लेना
प्यार लुटाना और दिल देना
ये सब बातें, उमर न देखे
निरखें हुस्न ,आँख को सेंकें
दिल पर अपने काबू रखना ,
उनको भी मुश्किल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
उनके दिल का मस्त कबूतर
उड़ता रहता नीचे , ऊपर
लेता इधर उधर की खुशबू
करता रहता सदा गुटरगूं
घरकी चिड़िया रहती घर में
खुद उड़ते रहते अम्बर मे
चाहे रहती, ढीली सेहत
पर रहती अनुभव की दौलत
काम बुढ़ापे में जो आती
उनकी दाल सदा गल जाती
दंद फंद कर के कैसे भी ,
बस पाना मंज़िल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है
जब तक रहती दिल की धड़कन
तब तक रहता दीवानापन
भले बरस वो ना पाते है
लेकिन बादल तो छाते है
हुई नज़र धुंधली हो चाहे
माशूक ठीक नज़र ना आये
होता प्यार मगर अँधा है
चलता सब गोरखधंधा है
भले नहीं करते वो जाहिर
अपने फ़न में होते माहिर
कैसे किसको जाए पटाया,
ये अनुभव हासिल होता है
बूढ़ों में भी दिल होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सुलहनामा -बुढ़ापे में

हमें मालूम है कि हम ,बड़े बदहाल,बेबस है,
नहीं कुछ दम बचा हम में ,नहीं कुछ जोश बाकी है ,
मगर हमको मोहब्बत तो ,वही बेइन्तहां तुमसे ,
मिलन का ढूंढते रहते ,बहाना इस बुढ़ापे में
बाँध कर पोटली में हम,है लाये प्यार के चांवल,
अगर दो मुट्ठी चख लोगे,इनायत होगी तुम्हारी,
बड़े अरमान लेकर के,तुम्हारे दर पे आया है ,
तुम्हारा चाहनेवाला ,सुदामा इस बुढ़ापे में
ज़माना आशिक़ी का वो ,है अब भी याद सब हमको,
तुम्हारे बिन नहीं हमको ,ज़रा भी चैन पड़ता था ,
तुम्हारे हम दीवाने थे,हमारी तुम दीवानी थी,
जवां इक बार हो फिर से ,वो अफ़साना बुढ़ापे में
भले हम हो गए बूढ़े,उमर तुम्हारी क्या कम है ,
नहीं कुछ हमसे हो पाता ,नहीं कुछ कर सकोगी तुम ,
पकड़ कर हाथ ही दो पल,प्यार से साथ बैठेंगे ,
चलो करले ,मोहब्बत का ,सुलहनामा ,बुढ़ापे में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
          दानी श्रेष्ठ चन्द्रमा 

सूर्य से ले रौशनी तू उधारी में 
            ,मुफ्त सबको चांदनी  बांटे  सुहानी 
अपनी सोलह कलायें सब पर बिखेरे ,
          तुझसे बढ़ कर भला होगा कौन दानी 
समुन्दर मंथन किया ,अमृत पिया था ,
              शरद पूनम पर उसे भी तू लुटाता 
कभी घटता ,कभी बढ़ता ,चमचमाता ,
             सुन्दरीमुख ,चन्द्रमुख है कहा जाता 
एक तू ही देव महिलाएं जिसे सब ,
              भाई कह, बच्चों का मामा बोलती है 
एक तू ही देख कर जिसको सुहागन ,
                 बरत करवा चौथ वाला खोलती है 
एक तू ही है जिसे नजदीक पाकर ,
              मारने लगता उछालें ,उदधि का जल 
एक तू ही चांदनी जिसकी हमेशा ,
                सुहानी सुखदायिनी है ,मृदुल शीतल  
प्रेमियों के हृदय की धड़कन बढ़ाता 
                    ,तारिकाओं से घिरा रहता सदा है 
शिवजी के मस्तक पे शोभित चन्द्रमा तू ,
                    सबसे ज्यादा तू ही पूजित देवता है  

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
                                     



लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम

(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )

दीपावली के बाद दूसरे  दिन

भाईदूज को  लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी

और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी

बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,

रह रहे हो अपने ससुराल में

कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,

साला साली है किस हाल में

प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले

मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले

तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट

बाकी बचे चार बहने और भाई आठ

तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है

और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है

'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है

और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है

तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है

और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है

दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी

यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी

हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना

पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना

जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत

और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत

और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे

उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे

'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है

और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है

बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी

तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी

और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना

तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना

और यदि लोकसभा का सत्र रहा हो चल

तो वहां,सत्ता और विपक्ष,

एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'

अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर

और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर

और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी

पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी

और चाइना वालों का भरोसा नहीं,

वीसा देंगे या ना देंगे

फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे

तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना

फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम

(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )

दीपावली के बाद दूसरे  दिन

भाईदूज को  लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी

और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी

बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,

रह रहे हो अपने ससुराल में

कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,

साला साली है किस हाल में

प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले

मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले

तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट

बाकी बचे चार बहने और भाई आठ

तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है

और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है

'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है

और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है

तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है

और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है

दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी

यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी

हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना

पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना

जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत

और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत

और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे

उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे

'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है

और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है

बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी

तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी

और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना

तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना

और यदि लोकसभा का सत्र रहा हो चल

तो वहां,सत्ता और विपक्ष,

एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'

अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर

और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर

और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी

पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी

और चाइना वालों का भरोसा नहीं,

वीसा देंगे या ना देंगे

फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे

तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना

फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रिश्ते-मधुर और चटपटे

रिश्तों का दूध,थोड़े से खटास से,
जब जाता है फट
तो बस छेना बन कर जाता है सिमट
जो प्यार की चाशनी में उबाले जाने पर
बन जाता है रसगुल्ला,
स्वादिष्ट,रसीला और मनहर
सूजी की छोटी छोटी पूड़ियाँ,
प्यार की स्निघ्ता में धीरे धीरे तली जाए,
तो बन जाती है फुलकियाँ
जिनको अगर खाया जाए,
आपसी रिश्तों का,चटपटा पानी भर
तो वो गोलगप्पे,स्वाद की घूंटो से,
देते है खुशियाँ भर
धनिया और पुदीने के,
पत्तों सा सादा जीवन,
प्यार के मसालों के साथ पिस कर ,
बन जाता है चटपटी चटनी
जीवन की राहें ,जलेबी की तरह,
कितनी ही टेडी हो,
प्यार के रस में डूब कर,
बन जाती है स्वादिष्ट और रस भीनी
सिर्फ प्यार की शर्करा में ही एसा मिठास है,
जो बिना डायबिटीज के दर से,
जीवन में मधुरता भरता है
रिश्तों में अपनापन,
चाट का वो मसाला है,
जो जीवन को चटपटा और स्वादिष्ट करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रिश्ते-मधुर और चटपटे

रिश्तों का दूध,थोड़े से खटास से,
जब जाता है फट
तो बस छेना बन कर जाता है सिमट
जो प्यार की चाशनी में उबाले जाने पर
बन जाता है रसगुल्ला,
स्वादिष्ट,रसीला और मनहर
सूजी की छोटी छोटी पूड़ियाँ,
प्यार की स्निघ्ता में धीरे धीरे तली जाए,
तो बन जाती है फुलकियाँ
जिनको अगर खाया जाए,
आपसी रिश्तों का,चटपटा पानी भर
तो वो गोलगप्पे,स्वाद की घूंटो से,
देते है खुशियाँ भर
धनिया और पुदीने के,
पत्तों सा सादा जीवन,
प्यार के मसालों के साथ पिस कर ,
बन जाता है चटपटी चटनी
जीवन की राहें ,जलेबी की तरह,
कितनी ही टेडी हो,
प्यार के रस में डूब कर,
बन जाती है स्वादिष्ट और रस भीनी
सिर्फ प्यार की शर्करा में ही एसा मिठास है,
जो बिना डायबिटीज के दर से,
जीवन में मधुरता भरता है
रिश्तों में अपनापन,
चाट का वो मसाला है,
जो जीवन को चटपटा और स्वादिष्ट करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्थरों के दिल पिघल ही जायेगे
—————————————
छोड़ नफरत,बीज बोओ प्यार के,
चमन में कुछ फूल खिल ही जायेगे
पत्थरों के कालेजों में मोम के,
चंद कतरे तुम्हे मिल ही जायेंगे
समर्पण की सुई,धागा प्रेम का,
फटे रिश्ते,कुछ तो सिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी जोर है,,
कलेजे हों सख्त,हिल ही जायेगे
यज्ञ   का फल मिलेगा जजमान को,
आहुति में फेंके तिल ही जायेंगे
बेवफा तुम और हम है बावफा,
इस तरह तो टूट दिल ही जायेंगे
अगर पत्थर फेंकियेगा कीच में,
चंद  छींटे तुम्हे मिल ही जायेंगे
करके देखो नेता की आलोचना,
कई चमचे,तुम पे पिल ही जायेगे
कोई भी हो देश कोई भी शहर,
एक दो सरदार मिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी है कशिश,
पत्थरों के दिल पिघल ही जायेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 लक्ष्मी माता और आज की राजनीति
——————————————–
जब भी मै देखता हूँ,
कमालासीन,चार हाथों वाली ,
लक्ष्मी माता का स्वरुप
मुझे नज़र आता है,
भारत की आज की राजनीति का,
साक्षात् रूप
उनके है चार हाथ
जैसे कोंग्रेस का हाथ,
लक्ष्मी जी के साथ
एक हाथ से 'मनरेगा'जैसी ,
कई स्कीमो की तरह ,
रुपियों की बरसात कर रही है
और कितने ही भ्रष्ट नेताओं और,
अफसरों की थाली भर रही है
दूसरे हाथ में स्वर्ण कलश शोभित है
ऐसा लगता है जैसे,
स्विस  बेंक  में धन संचित है
पर एक बात आज के परिपेक्ष्य के प्रतिकूल है
की लक्ष्मी जी के बाकी दो हाथों में,
भारतीय जनता पार्टी का कमल का फूल है
और वो खुद कमल के फूल पर आसन लगाती है
और आस पास सूंड उठाये खड़े,
मायावती की बी. एस.  पी. के दो हाथी है
मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी की,
सायकिल के चक्र की तरह,
उनका आभा मंडल चमकता है
गठबंधन की राजनीती में कुछ भी हो सकता है
तृणमूल की पत्तियां ,फूलों के साथ,
देवी जी के चरणों में चढ़ी हुई है
एसा लगता है,
भारत की गठबंधन की राजनीति,
साक्षात खड़ी हुई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 8, 2018

घरघुस्सू 

एक तो नयी नयी शादी के बाद 
छोड़ कर प्रियतमा का साथ 
घर से बाहर न निकलना ,
आपके पत्नी के प्रति प्रेम का परिचायक है 
दूसरा जब धूमिल हो वातावरण 
फैला हो भयंकर प्रदूषण 
तो घर से बाहर न निकलना ,
आपकी सेहत के लिए लाभ दायक है 
ऐसे में कोई अगर आपको घरघुस्सू  कहे 
तो ये उसका हक है 
पर वो नालायक है 

घोटू 

Saturday, November 3, 2018

कैसे कर स्वीकार लूं ?

प्रेम दीपक जला मन मंदिर में उजियाला करूं 
केश जो हैं हुए उजले ,उन्हें रंग ,काला करूँ 
फेसबुक पर गीत रोमांटिक लिखूं,डाला करूं 
नित नए फैशन के कपडे ,पहन, कर शृंगार लूं 
मगर मैं बूढा हुआ ये ,कैसे कर स्वीकार लूं 

,मानता हूँ,ओज वाणी का जरा  हो कम गया  
मानता हूँ ,जोश का  जज्बा जरा अब थम गया 
ये भी सच है ,बहारों का अब नहीं मौसम रहा 
भावनाएं ,पर मचलती, कैसे मन को मार लूं 
मगर मैं बूढा हुआ ये ,कैसे कर स्वीकार लूं 

उम्र के वरदान को मैं ,ऐसे सकता खो नहीं 
अपने मन को मार लेकिन  जिया जाता यों नहीं 
देख सकता चाँद को तो चंद्रमुखी को क्यों नहीं 
हुस्न से और जवानी से ,क्यों न कर मैं प्यार लूं 
मगर मैं बूढा हुआ ये कैसे कर स्वीकार लूं 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दीवारें 

चार दीवारें हमेशा,मिल बनाती आशियाँ 
मगर उग आती है अक्सर ,कुछ दीवारें दरमियाँ 
गलतफहमी ने  बना दी ,बीच में थी दूरियां ,
वो हमारे और तुम्हारे ,बीच की दीवार थी 

नफरतों की ईंट पर ,मतलब का गारा था लगा 
कच्चा करनी ने चिना था ,रही हरदम डगमगा 
प्यार की हल्की सी बारिश में जो भीगी ,ढह गयी ,
वो हमारे और तुम्हारे बीच की दीवार थी 

घोटू 

Friday, November 2, 2018

रावण का पुनर्जन्म

सीता सी शुद्ध पवन 
का जब जब करे हरण 
प्रदूषण का रावण 
कलुषित कर वातावरण 

पकड़ में जब आता 
जलाया वो जाता 
आतिशबाजियां  छोड़ ,
पर्व मनाया जाता 

पुनः  धूम्र उत्सर्जन 
धूमिल हो  वातावरण 
बार बार जीवित हो ,
प्रदूषण का वो रावण 

घोटू 

Wednesday, October 31, 2018

प्यार बांटते चलो 


ये नाज ओ  नखरे,रूप अदा 
अच्छे लगते है यदा कदा 
हथियार जवानी वाले ये ,
जादू इनका ना चले सदा 

पर यदि अच्छे हो संस्कार 
मन में हो सेवाभाव ,प्यार    
जीवन भर साथ निभायेंगे ,
और फैलाएंगे  सदाचार        

तुम त्यागो मन का अहंकार 
सदगुण लाओ और सदविचार 
ये पूँजी ख़तम नहीं होगी ,
तुम रहो बांटते ,बार बार 

घोटू 
विश्वास और सुख 

आँख मूँद कर करे भरोसा पति पर,उससे कुछ ना कहती 
मैंने देखा ,ऐसी पत्नी ,अक्सर सुखी और खुश रहती 

सदा पति पर रखे नियंत्रण ,बात बात में टोका टाकी 
उस पर रखती शक की नज़रें ,हर हरकत पर  ताकाझांकी 
कहाँ जा रहे ,कब आओगे ,कहाँ  गए थे ,देर क्यों हुई 
आज बड़े खुश नज़र आरहे ,कौन तुम्हारे साथ थी मुई 
बस इन्ही पूछा ताछी से ,शक का बीज बो दिया करती 
थोड़ा वक़्त प्यार का मिलता, यूं ही उसे खो दिया करती 
पति आये तो जेब टटोले ,ढूंढें काँधे पड़े बाल को 
जासूसों सी पूछा करती ,है दिन भर के हालचाल को 
होटल से खाना मंगवाती ,जिसे रसोईघर से नफरत 
व्यस्त रहे शॉपिंग,किट्टी में ,पति के लिए न पल भर फुर्सत 
ऐसी पत्नी के जीवन में ,नहीं प्रेम की सरिता  बहती 
मैंने देखा ऐसी पत्नी ,हरदम बहुत दुखी है रहती 

और एक सीधीसादी सी ,भोली सूरत ,सीधे तेवर 
पतिदेव की पूजा करती ,उसे मानती है परमेश्वर 
करती जो विश्वास पति पर ,जैसा भी है ,वो अच्छा है 
उससे कभी विमुख ना होगा ,उसका प्यार बड़ा सच्चा है 
इधर उधर पति नज़रें मारे ,तो हंस कर है टाला  करती 
सब का मन चंचल होता है ,कह कर बात संभाला करती 
ना नखरे ना टोकाटाकी ,ना ही झगड़े ,ना ही अनबन 
अपने पति पर प्यार लुटाती,करके खुद को पूर्ण समर्पण 
अच्छा पका खिलाती ,दिल का रस्ता सदा पेट से जाता 
ऐसा प्यार लुटानेवाली ,पत्नी पर पति बलिबलि  जाता 
पति के परिवार में रम कर ,संग हमेशा सुख दुःख सहती 
मैंने देखा ,ऐसी पत्नी ,अक्सर सुखी और खुश रहती 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
प्रयोजन और भोजन 


आस्था में प्रभु की मंदिर गए ,
चैन मन को मिलेगा ,विश्वास था 
श्रद्धानत ,आराधना में लीन थे ,
लगा होने शांति का आभास था 
व्यस्त हम तो रहे करने में भजन ,
लोग आ पूरा प्रयोजन कर गए 
हमें चरणामृत और तुलसीदल मिला ,
लोग पा परशाद ,भोजन कर गए 

घोटू 
मगर बिस्कुट कुरकुरे ही चाहिए 


भले खाएंगे डुबो कर चाय में ,
मगर बिस्कुट कुरकुरे ही चाहिए 
कल सुबह होगी जलन, देखेंगे कल ,
पर पकोड़े चरपरे ही चाहिये 
उनकी ना ना बदल देंगे हाँ में पर,
नाज नखरे मदभरे ही चाहिए 
प्रेम करने में उतर जाएंगे सब ,
वस्त्र लेकिन सुनहरे ही चाहिये 

घोटू 

माथुर साहेबकेँ जन्मदिवस पर 

व्यक्तित्व आपका अति महान 
माथुर साहब ,तुमको प्रणाम 

शीतल स्वभाव ,तुम गरिमामय ,
मुख पर बिखरी  पूरनमासी 
मुस्काते ,खिले खिले हरदम ,
हो नमह नमह तुम इक्यासी 
ओ  भातृभाव  के अग्रदूत ,
हो मौन ,तपस्वी,शांत,सिद्ध 
ओ ज्ञानपीठ के मठाधीश ,
ओ दंत चिकित्सक तुम प्रसिद्ध 
तुमने कितने कोमल कपोल ,
को खोल,हृदय की पीर हरी 
हो समयसारिणी ,अनुशासित ,
तुम सदा समय के हो प्रहरी 
गरिमा की माँ ,ममता की माँ ,
है छुपी हुई तुम  माथुर में 
साक्षर स्नेह की  मूरत हो  ,
सबके प्रति प्रेम भरा उर में 
ये आलम अगर बुढ़ापे में ,
क्या होगा हाल जवानी में 
निश्चित ही आग लगा देते,
 होंगे बर्फीले पानी में  
तुम जिसका मुख छूते होंगे,
निःशब्द हुआ करती होगी 
ले जाती होगी प्रेम रोग ,
सब भुला दन्त की वह रोगी 
ये खंडहर साफ़ बताते है ,
कितनी बुलंद थी इमारत 
गायक,लायक ,नायक कर्मठ ,
तुम सबके मन की हो  चाहत 
है यही दुआ सच्चे दिल से ,
सौ वर्ष जियो तुम अविराम 
माथुर साहब ,तुमको  प्रणाम 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 

Tuesday, October 23, 2018

            नारी जीवन


                                       कितना मुश्किल नारी जीवन

उसे बना कर रखना पड़ता,जीवन भर ,हर तरफ संतुलन

                                       कितना मुश्किल नारी जीवन

जिनने जन्म दिया और पाला ,जिनके साथ बिताया  बचपन

उन्हें त्यागना पड़ता एक दिन,जब परिणय का बंधता बंधन 

माता,पिता,भाई बहनो की , यादें  आकर  बहुत  सताए

एक पराया , बनता  अपना , अपने बनते ,सभी  पराये

नयी जगह में,नए लोग संग,करना पड़ता ,जीवन व्यापन

                                       कितना मुश्किल नारी जीवन

कुछ ससुराल और कुछ पीहर ,आधी आधी वो बंट  जाती

नयी तरह से जीवन जीने में कितनी ही दिक्कत   आती

कभी पतिजी  बात  न माने , कभी  सास देती है ताने

कुछ न  सिखाया तेरी माँ ने ,तरह तरह के मिले उलाहने

कभी प्रफुल्लित होता है मन, और कभी करता है क्रंदन 

                                     कितना मुश्किल नारी जीवन

इसी तरह की  उहापोह में ,थोड़े  दिन पड़ता  है  तपना

फिर जब बच्चे हो जाते तो,सब कुछ  लगने लगता अपना

बन कर फिर ममता की मूरत,करती है बच्चों का पालन

कभी उर्वशी ,रम्भा बन कर,रखना पड़ता पति का भी मन

 किस की सुने,ना सुने किसकी ,बढ़ती ही जाती है उलझन    

                                        कितना मुश्किल नारी जीवन

बेटा ब्याह, बहू जब आती  ,पड़े सास का फर्ज निभाना

तो फिर, बेटी और बहू में ,मुश्किल बड़ा ,संतुलन लाना

बेटा अगर ख्याल रखता तो, जाली कटी है बहू सुनाती

पोता ,पोती में मन उलझा ,चुप रहती है और गम खाती

यूं ही बुढ़ापा काट जाता है  ,पढ़ते गीता और  रामायण

                                 कितना मुश्किल नारी जीवन


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लक्ष्मीजी का बिजली अवतार 

होती देखी जब घर घर नारी की पूजा 
लख कर महिमा कलयुग की ,प्रभु को यह सूझा 
फॉरवर्ड होती जाती नारी दिन प्रतिदिन 
करदे ना मेरे खिलाफ वह यह आंदोलन 
जितने भी अवतार लिए ,सब पुरुष रूप धर
लक्ष्मीजी को बिठा रखा है घर के अंदर 
वह नारी है ,उसको आगे लाना होगा 
लक्ष्मीजी को अब अवतार दिलाना होगा 
किया विचार,तनिक कुछ सोचा ,मन में डोले 
पर क्या करते ,जाकर लक्ष्मीजी से बोले 
सुनो लक्ष्मी धरती पर छाया अँधियारा 
आवश्यक है अब होना अवतार हमारा 
होगा दूर अँधेरा ,उजियारा लाने से 
पर मैं तो डरता हूँ पृथ्वी पर जाने से 
कृष्ण रूप धर प्रकटूं ,आफत हो जायेगी 
सेंडिल खा खा मुफ्त हजामत हो जायेगी 
राम बनूँगा ,लोग कहेंगे ,कैसा  पागल 
मान बाप की बात अरे जाता है जंगल 
गर नरसिंह बनू तो भी आफत कर देंगे 
निश्चित मुझे अजायबघर में सब धर देंगे 
मैं डरता हूँ ,सुनो लक्ष्मी ,मेरी मानो 
जरा पति के दिल के दुःख को भी पहचानो 
अबके से तो तुम ही लो अवतार धरा पर 
तुम भी दुनिया को देखो  पृथ्वी पर जाकर
सूरज सी चमको और तम को दूर भगाओ 
मेरी कमले ,कमली से बिजली बन जाओ 
मेरी मत सोचो ,मैं काम चला लूँगा 
मैं कैसे भी अपनी दाल गला लूँगा 
मगर प्रियतमे ,कभी कभी मुझ तक भी आना 
बारिश की बदली के संग मुझ से मिल जाना 
कहते कहते आंसूं की बौछार हो गयी 
पति की व्यथा देख लक्ष्मी तैयार हो गयी 
बिदा  लक्ष्मी हुईऑंख से आंसू टपके 
 पहले समुद्र से प्रकटी थी वह लेकिन अबके 
नारी थी ,उसने नारी का ख्याल किया 
ना समुद्र पर नदिया से अवतार लिया 
तो बंधे बाँध से टकरा प्रकति बिजली देवी 
किया अँधेरा दूर सभी बन कर जनसेवी 
चंद दिनों में ही फिर इतना काम बढ़ाया 
दुनिया के कोने कोने में नाम बढ़ाया 
बिजली को अवतार दिला सच सोचा प्रभु ने 
बिन बिजली के तो है सब काम अलूने 
रातों को चमका करती ,कितनी ब्यूटीफुल 
बटन दबाते ,जल जाती  ,सचमुच वंडरफुल 
बिन बिजली के तो सूनी है महफ़िल सारी 
महिमा कितनी महान ,धन्य बिजली अवतारी 
इतनी लिफ्ट मिली लेकिन फिर भी ना फूली 
वह नारी है ,अपना नारीपन ना भूली 
चूल्हे चौके में ,बर्तन, सीने धोने में 
बाहर और भीतर घर के कोने कोने में 
बिजली जी ने अपना आसन जमा लिया है 
सच पूछो  ,नारी को कितना हेल्प किया है 
उल्लू से ये तार बने विजली के वाहन 
अब दीपावली पर होता बिजली का पूजन 
इतनी जनप्रिय ,किन्तु पतिव्रता धर्म निभाती 
जो छूता ,धक्का दे उसको दूर भगाती 
जब थक जाती है तो फ्यूज चला जाता है 
भक्तों यह बिजली, वही लक्ष्मी माता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

लक्ष्मी जी का परिवार प्रेम
(समुद्र मंथन से १४ रत्न प्रकट हुए थे-शंख,एरावत,उच्च्श्रेवा ,धवन्तरी,
कामधेनु,कल्प वृक्ष,इंद्र धनुष,हलाहल,अमृत,मणि,रम्भा,वारुणी,चन्द्र और लक्ष्मी
-तो लक्ष्मी जी के तेरह भाई बहन हुए,और समुद्र पिताजी-और क्योंकि
विष्णु जी समुद्र में वास करते है,अतः घर जमाई हुए ना )

एक दिन लक्ष्मी जी,अपने पति विष्णु जी के पैर दबा रही थी

और उनको अपने भाई बहनों की बड़ी याद आ रही थी

बोली इतने दिनों से ,घरजमाई की तरह,

रह रहे हो अपने ससुराल में

कभी खबर भी ली कि तुम्हारे तेरह,

साला साली है किस हाल में

प्रभु जी मुस्काए और बोले मेरी प्यारी कमले

मुझे सब कि खबर है,वे खुश है अच्छे भले

तेरह में से एक 'अमृत 'को तो मैंने दिया था बाँट

बाकी बचे चार बहने और भाई आठ

तो बहन 'रम्भा'स्वर्ग में मस्त है

और दूसरी बहन 'वारुणी'लोगों को कर रही मस्त है

'मणि 'बहन लोकर की शोभा बड़ा रही है

और 'कामधेनु'जनता की तरह ,दुही जा रही है

तुम्हारा भाई 'शंख'एक राजनेतिक पार्टी का प्रवक्ता है
और टी.वी.चेनल वालों को देख बजने लगता है
दूसरे भाई 'एरावत'को ढूँढने में कोई दिक्कत नहीं होगी
यू.पी,चले जाना,वहां पार्कों में,हाथियों की भीड़ होगी
हाँ ,'उच्च्श्रेवा 'भैया को थोडा मुश्किल है ढूंढ पाना
पर जहाँ अभी चुनाव हुए हो,ऐसे राज्य में चले जाना
जहाँ किसी भी पार्टी नहीं मिला हो स्पष्ट बहुमत
और सत्ता के लिए होती हो विधायकों की जरुरत
और तब जमकर 'होर्स ट्रेडिंग' होता हुए पायेंगे
उच्च श्रेणी के उच्च्श्रेवा वहीँ मिल जायेंगे
'धन्वन्तरी जी 'आजकल फार्मा कम्पनी चला रहे है
और मरदाना कमजोरी की दवा बना रहे है
बोलीवूड के किसी फंक्शन में आप जायेंगी
तो भैया'इंद्र धनुष 'की छटा नज़र आ जाएगी
और 'कल्प वृक्ष'भाई साहब का जो ढूंढना हो ठिकाना
तो किसी मंत्री जी के बंगले में चली जाना
और यदि लोकसभा का सत्र रहा हो चल
तो वहां,सत्ता और विपक्ष,
एक दूसरे पर उगलते मिलेंगे 'हलाहल'
अपने इस भाई से मिल लेना वहीँ पर
और भाई 'चंद्रमा 'है शिवजी के मस्तक पर
और शिवजी कैलाश पर,बहुत है दूरी
पर वहां जाने के लिए,चाइना का वीसा है जरूरी
और चाइना वालों का भरोसा नहीं,
वीसा देंगे या ना देंगे
फिर भी चाहोगी,तो कोशिश करेंगे
तुम्हारे सब भाई बहन ठीक ठाक है,कहा ना
फिर भी तुम चाहो तो मिलने चले जाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

द्रौपदी

पत्नी जी,दिन भर,घर के काम काज करती

एक रात ,बोली,डरती डरती

मै सोचती हूँ जब तब

एक पति में ही जब हो जाती ऐसी हालत

पांच पति के बीच द्रौपदी एक बिचारी

होगी किस आफत की मारी

जाने क्या क्या सहती होगी

कितनी मुश्किल रहती होगी

एक पति का 'इगो'झेलना कितना मुश्किल,

पांच पति का 'इगो ' झेलती रहती होगी

उसके बारे में जितना भी सोचा जाए

सचमुच बड़ी दया है आये

उसकी जगह आज की कोई,

जागृत नारी,यदि जो होती

ऐसे में चुप नहीं बैठती

पांच मिनिट में पाँचों को तलाक दे देती

या फिर आत्मघात कर लेती

किन्तु द्रौपदी हाय बिचारी

कितनी ज्यादा सहनशील थी,

पांच पुरुष के बीच बंटी एक अबला नारी

सच बतलाना,

क्या तुमको नहीं चुभती है ये बात

कि द्रौपदी के साथ

उसकी सास का ये व्यवहार

नहीं था अत्याचार?

सुन पत्नी कि बात,जरा सा हम मुस्काये

बोले अगर दुसरे ढंग से सोचा जाए

दया द्रौपदी से भी ज्यादा,

हमें पांडवों पर आती है,जो बेचारे

शादीशुदा सभी कहलाते,फिर भी रहते,

एक बरस में साड़े नौ महीने तक क्वांरे

वो कितना दुःख सहते होंगे

रातों जगते रहते होंगे

तारे चाहे गिने ना गिने,

दिन गिनते ही रहते होंगे
कब आएगी अपनी बारी
जब कि द्रौपदी बने हमारी
और उनकी बारी आने पर ढाई महीने,
ढाई महीने क्यों,दो महीने और तेरह दिन,
मिनिटों में कट जाते होंगे
पंख लगा उड़ जाते होंगे
और एक दिन सुबह,
द्वार खटकाता होगा कोई पांडव ,
भैया अब है मेरी बारी
आज द्रौपदी हुई हमारी
और शुरू होता होगा फिर,वही सिलसिला,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार का
और द्रौपदी चालू करती,
एक दूसरे पांडव के संग,
वही सिलसिला नए प्यार का
तुम्ही बताओ
पत्नी जब महीने भर मैके रह कर आती,
तो उसके वापस आने पर,
पति कितना प्रमुदित होता है
उसके नाज़ और नखरे सहता
लल्लू चप्पू करता रहता
तो उस पांडव पति की सोचो,
जिसकी पत्नी,उसको मिलती,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार में
पागल सा हो जाता होगा
उस पर बलि बलि जाता होगा
जब तक उसका प्यार जरा सा बासी होता,
तब तक एक दूसरे पांडव ,
का नंबर आ जाता होगा
निश्चित ही ये पांच पांच पतियों का चक्कर,
स्वयं द्रोपदी को भी लगता होगा सुख कर,
वर्ना वह भी त्रिया चरित्र दिखला सकती थी
आपस में पांडव को लड़ा भिड़ा सकती थी
यदि उसको ये नहीं सुहाता,
तो वह रख सकती थी केवल,
अर्जुन से ही अपना नाता
लेकिन उसने,हर पांडव का साथ निभाया
जब भी जिसका नंबर आया
पति प्यार में रह कर डूबी
निज पतियों से कभी न ऊबी
उसका जीवन रहा प्यार से सदा लबालब
जब कि विरह वेदना में तडफा हर पांडव
तुम्ही सोचो,
तुम्हारी पत्नी तुम्हारे ही घर में हो,
पर महीनो तक तुम उसको छू भी ना पाओ
इस हालत में,
क्या गुजरा करती होगी पांडव के दिल पर,
तुम्ही बताओ?
पात्र दया का कौन?
एक बरस में ,
साड़े साड़े नौ नौ महीने,
विरह वेदना सहने वाले 'पूअर'पांडव
या फिर हर ढाई महीने में,
नए प्यार से भरा लबालब,
पति का प्यार पगाती पत्नी,
सबल द्रौपदी!

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मुसीबत ही मुसीबत
———————–
मौलवी ने कहा था खैरात कर,
रास्ता है ये ही जन्नत के लिये
वहां जन्नत में रहेंगी हमेशा,
हूरें हाज़िर तेरी खिदमत  के लिये
ललक मन में हूर की ऐसी लगी,
आ गये हम मौलवी की बात में
सोच कर जन्नत में हूरें मिलेगी,
लुटा दी दौलत सभी खैरात में
और आखिर वो घडी भी आ गयी,
एक दिन इस जहाँ से रुखसत हुए
पहुंचे जन्नत ,वेलकम को थी खड़ी,
बीबी बन कर हूर,खिदमत के लिये
हमने बोला यहाँ भी तुम आ गयी,
हो गयी क्या खुदा से कुछ गड़बड़ी
अरे जन्नत में तो मुझ को बक्श दो,
इस तरह क्यों हो मेरे पीछे पड़ी
बोली बीबी मौलवी का शुक्र है,
दिया जन्नत का पता मुझको  बता
कहा था उसने की तू खैरात कर,
पांच टाईम नमाज़ें करके    अता
बताया था होगी जब जन्नत नशीं,
हूर बन कर फरिश्तों से खेलना
मुझको क्या मालूम था जन्नत में भी,
पडेगा मुझको ,तुम्ही को झेलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गृह लक्ष्मी


गृह लक्ष्मी

नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, October 21, 2018

बुढ़ापे का प्रणय निवेदन 


तुम भी बूढी हो गयी हो ,और मैं भी हुआ बूढा 
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा 

कुछ हमारे,कुछ तुम्हारे,ख़्वाब कितने ही अधूरे 
वक़्त ने बेबस बनाया ,कर नहीं  हम  पाये पूरे 
अगर हमतुम जाएँ जो मिल,कर उन्हें साकार देंगे
और हमारी विवशता को ,एक नया  आकार देंगे 
अकेलापन, मन कचोटे ,काटती तन्हाईयाँ है 
ढक रही मन का उजाला ,भूत की परछाइयां है 
हमारी मजबूरियों का ,किया सबने बहुत शोषण 
आओ मिल कर,प्यार का हम ,करें पौधा ,पुनर्रोपण 
और फिर सिंचित करेंगे ,फलेगा जीवन अधूरा 
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा 

तुम्हारे मन में हिचक है ,लोग जाने क्या कहेंगे 
काम लोगों का यही है ,वो तो बस कहते रहेंगे 
क्या किसी ने कभी आकर ,हाल भी पूछा तुम्हारा 
बुढ़ापे की विवशता में ,क्या तुम्हे देंगे सहारा
 दूसरों की बात छोडो ,तुम्हारे परिवार वाले    
ढूंढते मौका है तुमको, किस तरह घर से निकाले 
जिंदगी के बचे कुछ दिन ,मिले बोनस में हमें है 
एक दूजे ,संग मिल कर ,अब ख़ुशी से काटने है 
नहीं तो  होगा हमारा ,बुढ़ापे में ,बहुत कूड़ा 
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा 
 तुम भी बूढी हो गयी हो ,और मैं भी हुआ बूढा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Friday, October 19, 2018

डांडिया 

आओ 
हम रहें मिलजुल कर 
नहीं चलायें लाठियां ,एकदूजे पर 
सोच बड़ी करें 
लाठियां छोटी करे 
क्योंकि छोटी होने पर लाठियां 
बन जाती है डांडिया 
और डांडिया का खेल 
बढ़ाता है आपसी मेल 
माँ दुर्गा का यही आदेश है 
विजयदशमी का यही सन्देश है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Wednesday, October 17, 2018

चुनाव का चक्कर 

पहले चुनाव के नेताजी ,तुम करते  हाथी के वादे 
जीता  चुनाव तो वो वादे ,रह जाते चूहे से आधे 
कोई ऋण माफ़ करा देगा ,कोई सड़कें बनवा देगा 
दे देगा बिजली कोई मुफ्त ,कोई पेंशन दिलवादेगा 
कोई देगा सस्ता गल्ला ,कोई दो रूपये में खाना 
कोई साईकिल ,टीवी बांटे ,कोई को साडी दिलवाना 
मांगे किसान, दो बढ़ा दाम ,खेती की लागत ज्यादा है 
कैसे घर खर्च चलाएं हम ,जब होता नहीं मुनाफा है 
तुम दाम बढाते फसलों के ,मंहगी बेचो ,मंहगी खरीद 
तो जनता चिल्लाने लगती है,भूखे मरने लगते गरीब 
करने उत्थान गरीबों का ,बैंकों से कर्ज दिला देते 
अगले चुनाव में वोटों हित ,तुम कर्जा माफ़ करा देते 
ऐसे लुभावने मन भावन ,वादे हर बार चुनावों में 
आश्वासन देकर हरेक बार ,फुसलाया इन नेताओं ने 
एक बात बताओ नेताजी ,ये पैसा कहाँ  से लाओगे 
तुम सिर्फ  टेक्स की दरें बढ़ा ,हम से ही धन निकलाओगे 
है पात्र छूट का निम्न वर्ग ,वो ही सब लाभ उठाएगा 
और उच्च वर्ग ,कर दंदफंद ,पैसे चौगुने कमायेगा 
बस बचता मध्यम वर्ग एक ,हर बार निचोड़ा जाता है 
करता वो नहीं टेक्स चोरी,सर उसका फोड़ा जाता है 
तुमने चुनाव के वक़्त किये  जिन जिन सुविधाओं के वादे 
सबकी छोडो,गलती से भी,यदि पूर्ण पड़े करना आधे 
भारत की अर्थव्यवस्था पर ,कितना बोझा पड़ सकता है
ऋण भी जो लिया विदेशो से ,कितना कर्जा चढ़ सकता है 
तुम सत्ता में काबिज होने ,क्यों जनता को भरमाते हो 
सत्ता पा भूल जाओगे सब ,क्यों झूठे सपन दिखाते हो 
और जीते तो सब भूल गए ,जब रात गयी तो गयी बात 
हम कुर्सी पर ,अब तो होगी ,अगले चुनाव में मुलाकात 
बन रामभक्त ,शिव भक्त कभी ,पहने जनेऊ बनते पंडित 
कह हो आये कैलाश धाम करते अपनी महिमा मंडित 
तुम बहुत छिछोरे छोरे हो ,तुम्हारा पप्पूपन न गया 
करते हो बातें अंटशंट ,तुम्हारा ये बचपन न गया 
और बनने भारत का प्रधान ,तुम देख रहे हो दिवास्वपन 
वो कभी नहीं पूरे होंगे ,करलो तुम चाहे लाख यतन 
आरक्षण आंदोलन करवा ,तुम हिन्दू मुस्लिम लडवा दो  
तुम घोल जहर प्रांतीयता का ,दंगे और झगड़े करवादो 
यूं गाँव गाँव मंदिर मंदिर ,क्या होगा शीश झुकाने से 
ठेले पर पीकर चाय ,दलित के घर पर खाना खाने से 
तुम सोच रहे इससे होगी ,बारिश तुम पर वोटों  वाली
है जनता सजग तुम्हारे इन झांसों में ना आने वाली 
वह समझ गयी है तुम क्या हो ,हो कितने गहरे पानी में  
तुम ऊल  जुलूल बना बातें ,बकते रहते नादानी में 
है जिसे देश से प्रेम जरा ,वो भला देश का सोचेगा  
कोई भी समझदार तुमको ,भूले से वोट नहीं देगा 
तुम जीत गए यदि गलती से ,दुर्भग्य देश का क्या होगा 
चमचे मलाई चाटेंगे सब ,और बचे शेष का क्या होगा 
मैं सोच सोच ये परेशान ,कि मेरे वतन का क्या होगा 
हर शाख पे उल्लू बैठेंगे ,तो मेरे चमन का क्या होगा 

घोटू  
मुर्गा नंबर सात 

एक नामी स्कूल में ,पढ़ता है मेरा भतीजा 
एक दिन स्कूल  से लौटा तो था बहुत खीजा 
मैंने पूछा बेटे ,क्यों हो इतने नाराज़ 
क्या भूखे हो ,मम्मी ने टिफिन नहीं दिया था आज 
वो भन्ना कर बोला चाचू ,ये भी होती है कोई बात 
बड़ी शैतान होती है ये लड़कियों की जात 
मैं बोलै क्या बात हुई,जरा खुल कर बता 
किस लड़की ने तुझे दिया है सता 
वो बोला ' मैं खड़ा था ,कुछ लड़कियां आई 
कनखियों से मेरी ओर देखा और मुस्कराई 
आगे चल एक लड़की के हाथ से एक रुमाल गिरा 
मैंने देखा तो शराफत का मारा ,मैं सिरफिरा 
दौड़ कर गया और रुमाल उठाया 
और उन लड़कियों के हाथ में पकड़ाया 
पर किसी ने भी नहीं दिया मुझको धन्यवाद 
उल्टा सब की सब खिलखिला कर हंस पड़ी ,
और बोली,'आज का मुर्गा नंबर सात '
और उन्होंने जोर से लगाया कहकहा 
सच चाचू ,आजकल तो शराफत का जमाना ही नहीं रहा '
ये लड़किया ,जानबूझ कर रुमाल गिरा देती है 
और शरीफ लड़कों को सता कर ,मज़ा लेती है 
ये लड़कियां भी अजब होती है 
शैतान ,सब की सब होती है 
इन्हे समझना बड़ा मुश्किल काम है 
हम बोले हाँ बेटे ,इसी चक्कर में ,
हमने गुजार दी ,उमर तमाम है 

घोटू 
उस रावण को कब मारोगे 

यह पर्व विजयदशमी का है ,मन में क्या तनिक विचारोगे 
इस रावण को तो जला दिया उस रावण को कब मारोगे 

ये तो कागज का पुतला था ,बस घास फूस से भरा हुआ 
तुम इसे जला क्यों खुश होते ,यह पहले ही मरा  हुआ 
कह इसे प्रतीक बुराई का ,निज कमी छुपाते आये हो 
अपने मन का भूसा न जला ,तुम इसे जलाते  आये हो 
तुम क्यों न जलाया करते हो ,सारी बुराइयां जीवन की 
फैला समाज का दुराचार ,बिगड़ी प्रवर्तियाँ  जन जन की 
बारह महीने में जो फिर फिर ,दूनी हो बढ़ती जाती है 
हो जाती पुनः पुनः जीवित ,हर बार जलाई  जाती है 
हर बस्ती में क्यों बार बार ,रावण बढ़ते ही जाते है 
साधू का भेष दिखावे का ,और जनता को  भरमाते है 
इस बढ़ती हुई बुराई को , कब तक ,कैसे संहारोगे 
इस रावण को तो जला दिया उस रावण को कब मारोगे 

वो कई बुराई का पुतला ,थे उसके कंधे ,दस आनन
पर बुद्धिमान ,तपस्वी था ,पंडित और ज्ञानी वो रावण 
वह अहंकार का मारा था ,जिससे थी बुद्धि भ्रष्ट हुई 
सीता का हरण किया उसने ,सोने की लंका नष्ट हुई 
अब गाँव गाँव और गली गली ,कितने रावण विचरा करते 
उसने थी सीता एक हरी ,ये सदबुद्धि  सबकी हरते 
कुछ सत्तामद में चूर हुए ,कुछ व्यभिचार में डूबे है 
कुछ लूटे देश ,कोई अस्मत ,गंदे सबके मंसूबे है 
कुछ ईर्ष्या द्वेष भरे रावण ,तो कुछ पापी,भ्रष्टाचारी 
कुछ रावण भेदभाव वाले,कुछ गुंडे,लंफट ,व्यभिचारी 
असली त्योंहार तभी जब तुम ,इनसे  छुटकारा पा लोगे  
इस रावण को तो जला दिया ,उस रावण को कब मारोगे 

तुम नज़र उठा कर तो देखो ,कितने रावण है आसपास
एक रावण भूख गरीबी का ,देता है पीड़ा और त्रास  
एक रावण है मंहगाई का ,कुपोषण और कमजोरी का 
एक रावण चोरबाज़ारी का ,बेईमानी ,रिश्वत खोरी का 
एक रावण काट रहा वन को ,एक जहर हवा में घोल रहा 
एक छुपा बगल में छुरी रखे ,पर मीठा मीठा बोल रहा 
एक रावण काला धन लेकर ,पुष्पक में  जाता है विदेश 
एक जाति  ,धर्म में बाँट रहा ,करवाता दंगे और कलेश  
हिम्मत हनुमान सरीखी हो और तीखे तेवर लक्ष्मण से 
तब ही छुटकारा मुमकिन है ,इन दुष्ट बढ़ रहे  रावण से 
तुम इनका हनन करो , भारत माता  का क़र्ज़ उतारोगे 
इस रावण को तो जला दिया ,उस रावण को कब मारोगे 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
कोई मुझे कहे जो बूढा 


कोई मुझे कहे जो बूढा ,तो मुझको खलता है 
बाकी कोई कुछ भी कह दे,वो सब चलता है 

धुंधलाइ  आँखों ने आवारागर्दी  ना है छोड़ी 
देख हुस्न को उसके पीछे,भगती फिरे निगोड़ी 
मेरा मोम हृदय ,थोड़ी सी , गर्मी जब पाता  है  
रोको लाख ,नहीं रुकता है ,पिघल पिघल जाता है 
तन की सिगड़ी,मन का चूल्हा ,तो अब भी जलता है 
कोई मुझे कहे जो बूढा ,तो मुझको खलता है 

आँखों आगे ,छा जाती है ,कितनी यादें बिछड़ी 
स्वाद लगा मुख बिरयानी का ,खानी पड़ती खिचड़ी 
वो यौवन के ,मतवाले दिन ,फुर्र हो गए कबके 
पाचनशक्ती क्षीण ,लार पर देख जलेबी टपके 
मुश्किल से पर ,मन मसोस कर,रह जाना पड़ता है 
कोई मुझे ,कहे जो बूढा ,तो मुझको खलता है  

ढीला तन का पुर्जा पुर्जा ,घुटनो में पीड़ा है 
उछल कूद करता है फिर भी ,मन का यह कीड़ा है 
लाख करो कोशिश कहीं भी दाल नहीं गलती है 
कोई सुंदरी ,अंकल बोले ,तो मुझको खलती है 
आत्मनियंत्रण ,मन खो देता ,बड़ा मचलता है 
कोई मुझे कहे जो बूढा ,तो मुझको खलता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 हौंसले -माँ के 

भले उम्र ने अपना असर दिखाया है 
जीर्ण और कमजोर हो गयी काया है 
श्वेत हुए सब केश ,बदन है  झुर्राया 
आँखें धुंधली धुंधली,चेहरा मुरझाया 
बिना सहारा लिए ,भले ना चल पाती 
मुश्किल से ही आधी रोटी ,बस खाती 
और पाचनशक्ति भी अब कुछ मंद है 
मगर हौंसले ,माँ के बहुत बुलंद  है 

कमजोरी के कारण थोड़ी टूटी  है 
चुस्ती फुर्ती ,उसके तन से रूठी है 
हालांकि कुछ करने में मुश्किल पड़ती 
काम कोई भी हो ,करने आगे बढ़ती 
ऊंचा बोल न पाती,ऊंचा सुनती है 
लेटी लेटी ,क्या क्या सपने बुनती है 
कोई आता मिलता उसे आनंद है 
मगर हौंसले माँ के बहुत बुलंद है 

हाथ पैर में ,बची न ज्यादा शक्ति है 
मोह माया से ,उसको हुई विरक्ति है 
तन में हिम्मत नहीं मगर हिम्मत मन में 
कई मुश्किलें ,हंस झेली है जीवन में 
अब भी किन्तु विचारों में अति दृढ़ता है 
उसको कुछ समझाना मुश्किल पड़ता है 
खरी खरी बातें ही उसे पसंद  है 
मगर हौंसले ,माँ के बहुत बुलंद है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Sunday, October 14, 2018

      चौहत्तरवें जन्मदिन पर -जीवन संगिनी से


उमर बढ़ रही ,पलपल,झटझट

 हुआ तिहत्तर मैं   ,तुम अड़सठ 

एक दूसरे पर अवलम्बित ,

एक सिक्के के हम दोनों पट

      सीधे सादे ,मन के सच्चे    

      पर दुनियादारी में कच्चे

     बंधे भावना के बंधन में,

    पर दुनिया कहती हमको षठ

कोई मिलता ,पुलकित होते 

याद कोई आ जाता ,रोते

तुम भी पागल,हम भी पागल,

 नहीं किसी से है कोई घट

       पलपल जीवन ,घटता जाता

      भावी कल ,गत कल बन जाता

       कभी चांदनी है पूनम की,

      कभी  अमावस का श्यामल पट

इस जीवन के  महासमर में

हरदम हार जीत के डर  में

हमने हंस हंस कर झेले है,

पग पग पर कितने ही संकट

      मन में क्रन्दन ,पीड़ा  ,चिंतन

      क्षरण हो रहा,तन का हर क्षण

      अब तो ऐसे लगता जैसे ,

      देने लगा  बुढ़ापा   आहट