यह युग रिकमंडेशन का है
यह युग रिकमंडेशन का है
पुश ,रेकमंडेशन या जरिया ,चांदी के बल पर चलते है
रिश्तेदारी का भोजन कर ,पैसों के साये पलते है
मख्खन की मालिश होती है ,ये चमकीले चमक रहे है
दौलत के बल दाल दल रहे ,दिन दिन दूने दमक रहे है
दुनिया के चप्पे चप्पे में , चारों और नज़र आते है
पुश पाकर पापी से पापी ,बेतरणी को तर जाते है
जर के बल पर जरिया होता ,पर्स देख कर पुश मिलता है
है प्रचंड रिकमंड ,फंड गर ,नहीं काम कैसे चलता है
रिकमंडेशन ही फैशन है,आज जमाना फैशन का है
यह युग रिकमंडेशन का है
भारत की प्रगति में देखो ,कितना बड़ा साथ है इसका
बेकारी के उन्मूलन में ,कितना बड़ा हाथ है इसका
जितने थे बेकार भतीजे ,भाई मामा चाचा बेटे
रिकमंडेशन की महिमा है ,आज सभी कुर्सी पर बैठे
यह जरिये का ही जादू है ,आज धूल में फूल खिले है
उनके साले के साले ने ,डाली कितनी दाल मिलें है
उस सफ़ेद बंगले के अंदर ,छुपी हुई काली कमाई है
नेता ठेकेदार आफिसर ,चोर चोर सब ,भाई भाई है
क्या क्या होता है मत पूछो ,अजब ढंग यह जीवन का है
यह युग रिकमंडेशन का है
लोग आदमी नहीं देखते ,आमदनी देखा करते है
बटुवे के भारीपन को लख ,दाव बहुत फेंका करते है
अब बस मख्खन बाजी चलती ,रिश्वत आम रिवाज हो गया
पत्रपुष्प जो अगर चढ़ा तो ,पुश भी पाया ,पास हो गया
अब शादी से रिश्तेदारी तक रिकमंडेशन चलती है
बिना शिफारिश की चिट्ठी के ,दाल किसी की ना गलती है
चपरासी रिकमंड न करदे ,तो साहब ना मिल सकते है
तुम्ही बताओ गर्मी के बिन ,कच्चे आम कभी पकते है
रिश्वत का बाजार गरम है ,गूँज रहा उसका डंका है
ये युग रिकमंडेशन का है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
यह युग रिकमंडेशन का है
पुश ,रेकमंडेशन या जरिया ,चांदी के बल पर चलते है
रिश्तेदारी का भोजन कर ,पैसों के साये पलते है
मख्खन की मालिश होती है ,ये चमकीले चमक रहे है
दौलत के बल दाल दल रहे ,दिन दिन दूने दमक रहे है
दुनिया के चप्पे चप्पे में , चारों और नज़र आते है
पुश पाकर पापी से पापी ,बेतरणी को तर जाते है
जर के बल पर जरिया होता ,पर्स देख कर पुश मिलता है
है प्रचंड रिकमंड ,फंड गर ,नहीं काम कैसे चलता है
रिकमंडेशन ही फैशन है,आज जमाना फैशन का है
यह युग रिकमंडेशन का है
भारत की प्रगति में देखो ,कितना बड़ा साथ है इसका
बेकारी के उन्मूलन में ,कितना बड़ा हाथ है इसका
जितने थे बेकार भतीजे ,भाई मामा चाचा बेटे
रिकमंडेशन की महिमा है ,आज सभी कुर्सी पर बैठे
यह जरिये का ही जादू है ,आज धूल में फूल खिले है
उनके साले के साले ने ,डाली कितनी दाल मिलें है
उस सफ़ेद बंगले के अंदर ,छुपी हुई काली कमाई है
नेता ठेकेदार आफिसर ,चोर चोर सब ,भाई भाई है
क्या क्या होता है मत पूछो ,अजब ढंग यह जीवन का है
यह युग रिकमंडेशन का है
लोग आदमी नहीं देखते ,आमदनी देखा करते है
बटुवे के भारीपन को लख ,दाव बहुत फेंका करते है
अब बस मख्खन बाजी चलती ,रिश्वत आम रिवाज हो गया
पत्रपुष्प जो अगर चढ़ा तो ,पुश भी पाया ,पास हो गया
अब शादी से रिश्तेदारी तक रिकमंडेशन चलती है
बिना शिफारिश की चिट्ठी के ,दाल किसी की ना गलती है
चपरासी रिकमंड न करदे ,तो साहब ना मिल सकते है
तुम्ही बताओ गर्मी के बिन ,कच्चे आम कभी पकते है
रिश्वत का बाजार गरम है ,गूँज रहा उसका डंका है
ये युग रिकमंडेशन का है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '