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Saturday, March 31, 2012
मातृ ऋण
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
माता की सेवा कर,थोडा सा मातृऋण चुका रहा हूँ
माँ,जो बुढ़ापे के कारण,बीमार और मुरझाई है
उनके चेहरे पर संतुष्टि,मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है
मुझको तो बस अशक्त माँ को देवदर्शन करवाना है
न श्रवणकुमार बनना है,न दशरथ के बाण खाना है
और मै अपनी झोली ,माँ के आशीर्वादों से भरता जा रहा हूँ
मै तो लोभी हूँ,बस पुण्य कमा रहा हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
संकल्प
बहुत कुछ दिया धरती माँ ने,
बदले में हम क्या देते है
बढ़ा रहे है सिर्फ प्रदूषण,
और कचरा फैला देते है
जग हो जगमग,स्वच्छ ,सुगन्धित,
एसे दीप जलाएं हम सब,
पर्यावरण सुधारेंगे हम,
ये संकल्प आज लेते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Friday, March 30, 2012
सपने क्या हैं?
सपने खिलोने होते है,
थोड़ी सी देर खेल लो,
फिर टूट जाते हैं,आँखों के खुलने पर
सपने पीडायें है,
दबी घुटन है मन की,
प्रस्फुटित होती है,नींद के आने पर
सपने आशायें है ,
जो चित्रित होती है,
जब निश्छल और शांत,होते है तन और मन
सपने कुंठायें है,
जो पलती है मन में,
जब होती प्रतिस्पर्धा,या झगडा और जलन
सपने तो सेतु है,
बिछड़े हुए प्रेमियों का,
विरह की रातों में,मिलन का सहारा है
सपने,पुनर्वालोकन,
बिसरी हुई यादों का,
फिर से दोहराने का,चित्रपट निराला है
सपन तो मुसाफिर है,
आँखों की सराय में ,
केवल रात भर ही तो ,रुकने को आते है
सपने है बंजारे,
घुमक्कड़ है यायावर,
पल भर में दुनिया की,सैर करा लातें है
सपने तो दर्पण है,
जिसमे दिखलाता है,
अपना ही तो चेहरा,कल,आज और कल का
सपन संभावनायें है,
पूर्ण होगी निश्चित ही,
लगन और मेहनत से ,मूर्त रूप है कल का
सपने बेगाने है,
तब तक ही अपने है,
जब तक है बंद आँख,इन पर विश्वास करो
सपने अफ़साने है ,
अफ़साने ही रहते,
पर पूरे भी होते,सच्चा प्रयास करो
सपन कल्पनायें है,
उड़ा तुम्हे ले जाती,
सात आसमानों पर,बिना पंख लगवाये
यदि आगे बढ़ना है ,
तो सपने देखो तुम,
सपनो से मिलती है,जीवन में उर्जायें
यह न कहो की सपने,
तो केवल सपने है,
कब होते अपने है,यूं ही टूट जाते है
श्रोत प्रेरणाओं का,
सपने ही होते है,
प्रगति के सब रस्ते,सपने दिखलाते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, March 29, 2012
वो दिन कितने अच्छे होते थे
--------------------------
कई बार सोचा करता हूँ,
वो दिन कितने अच्छे होते थे
जब एक घर में ,सात आठ बच्चे होते थे
माँ तो घर के रोजमर्रा के काम संभालती थी
और बच्चों को,दादी पालती थी
बाद में बड़े बच्चे,
छोटे बच्चों को सँभालने लगते थे
लड़ते झगड़ते भी थे,
पर आपस में प्यार भी बहुत करते थे
तब शिक्षा का व्यापारीकरण भी नहीं हुआ था,
हर साल कोर्स की किताबें भी नहीं बदलती थी
कई वर्षों तक एक ही किताब चलती थी
बड़ों की किताबें छोटा ,
और फिर बाद वाला छोटा भी पढता था
वैसे ही बड़ों के कपडे छोटा,
और छोटे के कपडे उससे भी छोटा पहनता था
घर में चहल पहल रहती थी ,प्यार पलता था
और घर खुशियों से गूंजा करता था
और अब एकल परिवार,एक या दो बच्चे
नौकरी करते माँ बाप,और तन्हाई में रहते बच्चे
टी वी से चिपके रह कर अपना वक़्त गुजारते है
स्कूल के होम वर्क का बोझ ही इतना होता है,
कि मुश्किल से ही खेलने का समय निकालते है
दादा दादी,कभी कभी मेहमान बन कर आते है
और आठ दस दिन में चले जाते है
दादा दादी का वो प्यार और दुलार,
आजकल बिरलों को ही मिल पा रहा है
इसीलिए आज का बच्चा,
सारे रिश्ते नाते,रीति रिवाज ,
और प्यार भूलता जा रहा है
और दिन-ब-दिन जिद्दी होता जा रहा है
दादी कि कमी को शायद ऐसे भुलाता है
कि पिताजी को भी DADDY (डेडी या दादी )कह कर बुलाता है
और अब इकलौता बेटा यदि कपूत निकल गया
तो समझो,माँ बाप का बुढ़ापा कि बिगड़ गया
उन दिनों जब होते थे सात आठ बच्चे
कुछ बुरे भी निकलते थे,लेकिन कुछ अच्छे
कोई न कोई तो सपूत निकल ही जाता था
और माँ बाप का बुढ़ापा सुधर जाता था
इसीलिए कई बार सोचता हूँ,
वो दिन कितने अच्छे होते थे
जब एक घर में सात आठ बच्चे होते थे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हम बूढ़े हो गये हैं
हम बूढ़े हो गये हैं
---------------------
हम बूढ़े हो गये हैं,
अपना बुढ़ापा इस तरह काटते हैं
अब हम सभी को अपना प्यार बांटते है
राग,द्वेष सबसे पीड़ित थे,जब जवान थे
गर्व से तने रहते थे ,पर नादान थे
काम में व्यस्त रहते थे हरदम
बस एक ही धुन थी,खूब पैसा कमायें हम
भागते रहे, दोड़ते रहे
कितने ही अपनों का दिल तोड़ते रहे
न आगे देखा,न देखा पीछे
बस भागते रहे दौलत के पीछे
न दीन की खबर थी,न ईमान की
बस कमाई में ही अटकी जान थी
और मंजिल मिलती थी जब तलक
बढ़ जाती थी,अगली मंजिल पाने की ललक
फंस गये थे मृगतृष्णा में ऐसे
कि नज़र आते थे बस पैसे ही पैसे
बहुत क्लेश किये,बहुत एश किये
दौलत के लिए दिन रात एक किये
पर शरीर की उर्जा जब ठंडी पड़ने लगी
और जिंदगी,अंतिम पढाव की ओर बढ़ने लगी
जब सारा जोश गया,तब हमें होंश आया
माया के चक्कर में हमने क्या क्या गमाया
दोस्त छूटे,परिवार छूटा
अपनों का प्यार छूटा
और अब जब आने लगी है जीवन की शाम
ख़तम हो गया है सारा अभिमान
और हमें अब आया है ज्ञान
कि इतनी सब भागदौड़,
क्यों और किसके लिये करता है इंसान?
और अब हो गया है इच्छाओं का अंत
तन और मन ,दोनों हो गये हैं संत
सच्चाई पर चलने लग गये है
बुराइयों से डरने लग गये है
अब हम,दिमाग की नहीं,दिल की बात मानते है
हम बूढ़े हो गये है,अपना बुढ़ापा इस तरह काटते है
अब हम सभी को अपना प्यार बांटते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Tuesday, March 27, 2012
बुढ़ापा कैसे काटें?
आया बुढ़ापा,हमतुम मिल कर वक़्त बितायें
इक दूजे के कामों में हम हाथ बँटाये
तुम धोवो कपडे और मै फिर उन्हें सुखाऊ
तुम पूरी बेलो ,मै उनको तलता जाऊ
मै सब्जी काटूं तुम उसमे छोंक लगाओ
मै सेकूँगा टोस्ट और तुम चाय बनाओ
और फिर हमतुम साथ बैठ कर पीयें,खायें
आया बुढ़ापा,हमतुम मिल कर वक़्त बितायें
ना ही मुझको चिंता जल्दी दफ्तर जाना
ना ही तुमको फिकर सवेरे टिफिन बनाना
उठें देर से,मिल जुल काम सभी निपटायें
घूमे,फिरें,मौज मस्ती कर,पिक्चर जायें
हँसते ,गाते,दौर उमर का ये कट जाये
आया बुढ़ापा,हमतुम मिल कर वक़्त बितायें
साथ साथ जीवन काटा है,हम दोनों ने
सुख ,दुःख ,सबको,मिल बांटा है,हम दोनों ने
हरा भरा था पेड़ जहां थी खुशियाँ बसती
आया पतझड़,पंछी उड़े,छोड़ कर बस्ती
पीड़ भुला कर ,उसी नीड़ में ,हम मुस्कायें
आया बुढ़ापा,हमतुम मिलकर,वक़्त बितायें
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Sunday, March 25, 2012
करवटों का मज़ा
नींद ना आती किसी को ,ये सजा है
करवटों का,मगर अपना ही मज़ा है
एक तरफ करवट करो तो दिखे पत्नी,
पड़ी है चुपचाप कुछ बोले नहीं है
एक ये समय है वो मौन रहती,
शांत,शीतल,कोई फरमाईश नहीं है
इस तरह के क्षण बड़े ही प्रिय लगें है,
शांत रहती जब कतरनी सी जुबां है
अगर खर्राटे नहीं यदि भरे बीबी,
भला इतनी शांति मिलती ही कहाँ है
और दूजी ओर जो करवट करो तुम,
छोर दूजा खुला है,आजाद हो तुम
इस तरफ तुम पर नहीं प्रतिबन्ध कोई,
तुम्हारा जो मन करे,वैसा करो तुम
कभी सीधे लेट ,छत के गिनो मच्छर,
बांह में तकिया भरो,जी भर मज़ा लो
करवटों का फायदा एक और भी है,
करवटें ले,पीठ तुम अपनी खुजा लो
करवटें कुछ है विरह की,कुछ मिलन की,
है निराला स्वाद लेकिन करवटों में
करवटों का असर दिखता है सवेरे,
बिस्तरों की चादरों की,सलवटों में
करवटें तुम भी भरो और भरे पत्नी,
नींद दोनों को न आये,एक बिस्तर
जाएँ टकरा ,यूं ही दोनों,करवटों में,
मिलन की यह विधा होती,बड़ी सुख कर
अगर मच्छर कभी काटे,करवटें लो,
जायेंगे दो,चार ,मर,कमबख्त,दब कर
भार सारा इक तरफ ही क्यों सहे तन,
बोझ तन का,हर तरफ बांटो बराबर
नींद के आगोश में चुपचाप जाना,
भला इसमें भी कहीं आता मज़ा है
करवटों से पेट का भोजन पचेगा,
करवटों के लिए ही बिस्तर सजा है
नींद ना आती किसी को ये सजा है
करवटों का मगर अपना ही मजा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
करवटों का मज़ा
नींद ना आती किसी को ,ये सजा है
करवटों का,मगर अपना ही मज़ा है
एक तरफ करवट करो तो दिखे पत्नी,
पड़ी है चुपचाप कुछ बोले नहीं है
एक ये समय है वो मौन रहती,
शांत,शीतल,कोई फरमाईश नहीं है
इस तरह के क्षण बड़े ही प्रिय लगें है,
शांत रहती जब कतरनी सी जुबां है
अगर खर्राटे नहीं यदि भरे बीबी,
भला इतनी शांति मिलती ही कहाँ है
और दूजी ओर जो करवट करो तुम,
छोर दूजा खुला है,आजाद हो तुम
इस तरफ तुम पर नहीं प्रतिबन्ध कोई,
तुम्हारा जो मन करे,वैसा करो तुम
कभी सीधे लेट ,छत के गिनो मच्छर,
बांह में तकिया भरो,जी भर मज़ा लो
करवटों का फायदा एक और भी है,
करवटें ले,पीठ तुम अपनी खुजा लो
करवटें कुछ है विरह की,कुछ मिलन की,
है निराला स्वाद लेकिन करवटों में
करवटों का असर दिखता है सवेरे,
बिस्तरों की चादरों की,सलवटों में
करवटें तुम भी भरो और भरे पत्नी,
नींद दोनों को न आये,एक बिस्तर
जाएँ टकरा ,यूं ही दोनों,करवटों में,
मिलन की यह विधा होती,बड़ी सुख कर
अगर मच्छर कभी काटे,करवटें लो,
जायेंगे दो,चार ,मर,कमबख्त,दब कर
भार सारा इक तरफ ही क्यों सहे तन,
बोझ तन का,हर तरफ बांटो बराबर
नींद के आगोश में चुपचाप जाना,
भला इसमें भी कहीं आता मज़ा है
करवटों से पेट का भोजन पचेगा,
करवटों के लिए ही बिस्तर सजा है
नींद ना आती किसी को ये सजा है
करवटों का मगर अपना ही मजा है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
हो गयी माँ डोकरी है
प्यार का सागर लबालब,अनुभव से वो भरी है
हो गयी माँ डोकरी है
नौ दशक निज जिंदगी के,कर लिए है पार उनने
सभी अपनों और परायों ,पर लुटाया प्यार उनने
सात थे हम बहन भाई,रखा माँ ने ख्याल सबका
रोजमर्रा जिंदगी के ,काम सब और ध्यान घर का
कभी दादी की बिमारी,पिताजी की व्यस्तायें
सभी कुछ माँ ने संभाला,बिना मुंह पर शिकन लाये
और जब त्योंहार आते,तीज,सावन के सिंझारे
सभी को मेहंदी लगाती,बनाती पकवान सारे
दिवाली पर काम करती,जोश दुगुना ,तन भरे वो
सफाई,घर की पुताई,मांडती थी,मांडने वो
और हम सब बहन भाई,पढाई में व्यस्त रहते
मगर सब का ख्याल रखती,भले थक कर पस्त रहते
गयी निज ससुराल बहने,भाइयों की नौकरी है
साथ बाबूजी नहीं है, हो गयी माँ डोकरी है
भूख भी कम हो गयी है,बिमारी है,क्षीण तन है
चाहती सब काम करना,मगर आ जाती थकन है
और जब त्योंहार आते,उन्हें आता जोश भर है
सभी रीती रिवाजों पर ,आज भी पूरा दखल है
ये करो, ऐसे करो मत,हमारी है रीत ऐसी
पारिवारिक रिवाजों को ,निभाने की प्रीत ऐसी
फोन करके,बहू बेटी को आशीषें बांटती है
कभी गीता भागवत सुन ,वक़्त अपना काटती है
भले ही धुंधलाई आँखें, मगर यादों से भरी है
हो गयी माँ डोकरी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
'स्माईल प्लीज'
आपकी एक मुस्कान
जीत सकती है सारा जहान
बस,थोड़ी सी बांछें फैलाइये
और मुस्कराइये
आपकी स्माईल
जीत लेगी लोगों के दिल
गिले शिकवे सब मिट जायेंगे
दुश्मन भी दोस्त बन जायेंगे
क्योंकि मुस्कान
नहीं जानती रंग का भेद,
ना भाषा का ज्ञान
फिर भी दोस्ती करा देती है,
अंजानो को अपना बना देती है
बच्चों की मुस्कान निश्छल होती है,
सब का मन जीत लेती है
मासूम सी किलकारियां,
सभी का ध्यान अपनी और खींच लेती है
जवानी की मुस्कान चंचल होती है,
बिजलियाँ गिराती है
सभी के मन भाती है
कई बार इसे मुस्कराते मुस्कराते ही,
प्रीत हो जाती है
बुढ़ापे की मुस्कान,
पर अगर दो ध्यान,
तो थोड़ी सी बेबस और लाचार होती है
पर ढलती उमर में,
वक़्त गुजारने का,
सबसे बड़ा आधार होती है
इसीलिए जब भी हो कोई आसपास,
जिसको आप,नहीं जानते हो खास,
लिफ्ट में मिले या घूमने में,
उसे देख कर,हल्का सा मुस्कराइये
और अपना दोस्त बनाइये
क्योंकि मुस्कान है ही इसी चीज
इसलिये 'स्माईल प्लीज'
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Saturday, March 24, 2012
हमारा आज-तुम्हारा कल
-------------------------
ये न समझो ,यूं ही हमने ,काट दी अपनी उमर है
भीग करके ,बारिशों में,अनुभव की हुए तर है
आज तुम जिस जगह पर हो,क्या कभी तुमने विचारा
तुम्हारी इस प्रगति में,सहयोग है कितना हमारा
तुम्हारे सुख ,दुःख ,सभी पर,आज भी रखते नज़र है
हमारा मन मुदित होता,तुम्हे बढ़ता देख कर है
प्यार तुम से कल किया था,प्यार तुमसे आज भी है
देख तुम्हारी तरक्की,हमें तुम पर नाज़ भी है
हमें है ना गिला कोई,आ गया बदलाव तुम मे
बदलना नियम प्रकृति का,क्यों रखें हम क्षोभ मन में
भाग्य का लेखा सभी को,भुगतना है,ख्याल रखना
आज हम को जो खिलाते,पड़ेगा कल तुम्हे चखना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Friday, March 23, 2012
परिवर्तन
तब घूंघट पट,लेते थे ढक,उनके सब घट
अब कपडे घट,करे उजागर,उनके घट घट
तब झुक कर,लेते थे मन हर,नयना चंचल
अब तकते है,इधर उधर वो हो उच्श्रंखल
मर्यादित थे,रहते बंध कर,उनके कुंतल
उड़ते रहते,आवारा से ,अब गालों पर
बाट जोहती थी तब आँखें,पिया मिलन की
मोबाईल पर,रखे खबर पति के क्षण क्षण की
पति पत्नी तब,मुख दिखलाते,प्रथम रात में
अब शादी के,पूर्व घूमते,साथ साथ में
पहले रिश्ता,पक्का करते,ब्राह्मण , नाई
अब तो इंटरनेट,चेट,फिर है शहनाई
पति कमाते थे,पत्नी,घरबार संभाले
अब पति पत्नी,दोनों बने,केरियर वाले
यह समता अच्छी ,पर इससे आई विषमता
बच्चे तरसे,पाने को ,माता की ममता
माता पिता ,रहे बच्चों संग,छुट्टी के दिन
प्रगति की गति,लायी है ,कितने परिवर्तन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, March 22, 2012
हथियार-बिना धार का
हथियार-बिना धार का
-------------------------
जिसमे एक तरफ हत्था होता है,
एक तरफ धार होती है ,
वो तलवार होती है
गदा भी एक तरफ से ही पकड़ा जाता है
और दूसरी तरफ से मार लगाता है
सिर्फ एक ही हथियार एसा होता है,
जिसमे दोनों तरफ हत्था होता है
और दोनों तरफ से किया जा सकता है वार
जिधर से चाहो ,पकड़ लो,
कितना सुगम है ये हथियार
बाकी सारे हथियार
लडाई में ही काम आते है,
बाकी समय बेकार
मगर ये हथियार,जिसमे नहीं होती है धार,
युद्ध हो या शांति,
हमेशा काम करने को तैयार
दोनों हत्थों को,दबा कर घुमाओ
तो आटे की लोई भी,
गोल चपाती बन जाती है
इसके दबाब से,टूथपेस्ट की ट्यूब की,
आखरी बूँद भी निकल जाती है
वार भी करता है,उपकार भी करता है
हर आदमी इस हथियार से डरता है
और ये हथियार हर घर में पाया जाता है
औरतों के हाथों में सुहाता है
जी हाँ,ये दो हत्थों का हथियार बेलन कहलाता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Monday, March 19, 2012
हथियार-बिना धार का
-------------------------
जिसमे एक तरफ हत्था होता है,
एक तरफ धार होती है ,
वो तलवार होती है
गदा भी एक तरफ से ही पकड़ा जाता है
और दूसरी तरफ से मार लगाता है
सिर्फ एक ही हथियार एसा होता है,
जिसमे दोनों तरफ हत्था होता है
और दोनों तरफ से किया जा सकता है वार
जिधर से चाहो ,पकड़ लो,
कितना सुगम है ये हथियार
बाकी सारे हथियार
लडाई में ही काम आते है,
बाकी समय बेकार
मगर ये हथियार,जिसमे नहीं होती है धार,
युद्ध हो या शांति,
हमेशा काम करने को तैयार
दोनों हत्थों को,दबा कर घुमाओ
तो आटे की लोई भी,
गोल चपाती बन जाती है
इसके दबाब से,टूथपेस्ट की ट्यूब की,
आखरी बूँद भी निकल जाती है
वार भी करता है,उपकार भी करता है
हर आदमी इस हथियार से डरता है
और ये हथियार हर घर में पाया जाता है
औरतों के हाथों में सुहाता है
जी हाँ,ये दो हत्थों का हथियार बेलन कहलाता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
अनुभूतियाँ
रोज सुबह सुबह,जब मै घूमने जाता हूँ,
कितने ही दृश्य देख कर,
तरह तरह की अनुभूतियाँ पाता हूँ
जब देखता हूँ कुछ मेहतर,
हाथों में झाड़ू लेकर,
सड़क को बुहारते हुए,सफाई करते है
तो मुझे याद आ जाते है वो नेता,
जिनका हम चुनाव करते है
स्वच्छ और साफ़ ,प्रशासन के लिए
मंहगाई और गरीबी को बुहारने के लिए
लेकिन वो देश की सम्पदा को बुहारकर
भर रहें है ,अपनी स्विस बेंक का लॉकर
मै देखता हूँ छोटे छोटे बच्चे,
अपने नाज़ुक से कन्धों पर,
ढेर सारा बोझा लटकाए
उनींदीं पलकें,अलसाये
तेजी से भागते है,
जब स्कूल की बस आती है
और साथ में उनकी माँ,
उनके मुंह में सेंडविच ठूंसती हुई,
उनके साथ साथ जाती है
मुझे इस दृश्य में,माँ की ममता,
और देश के भविष्य की ,
एक जिम्मेदार पीढ़ी पलती नज़र आती है
मुझे दिखती है एक महिला,
तीन तीन श्वानो को
एक साथ साधती हुई,घुमाती है
मुझे महाभारत कालीन,
एक साथ पांच पतियों को निभाती हुई,
द्रोपदी की याद आती है
मुझे नज़र आते है,
लाफिंग क्लब में,
ठहाका मार कर हँसते हुए कुछ लोग
मै सोचता हूँ,
इस कमरतोड़ मंहगाई ने,
जब सब के चेहरे से छीन ली है मुस्कान
हर आदमी है दुखी और परेशान
तो ये चंद लोग
क्यों करते है हंसने का ढोंग
फिर सोचता हूँ कि आज कि जिंदगी में,
जब सब कुछ ही फीका है
मन को बहलाने का ये अच्छा तरीका है
मै भी यही सोच कर मुस्कराता हूँ
जब मै रोज,सुबह सुबह घूमने जाता हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अखबार पढने का मज़ा ही कुछ और है
मैंने अपने मित्र से बोला यार
टी वी की कितनी ही चेनले,
चैन नहीं लेने देती,
दिन रात,बार बार,
सुनाती रहती है सारे समाचार
ख़बरें तो वो की वो ही होती है,
फिर तुम फ़ालतू में,
क्यों खरीदते हो अखबार
मित्र ने मुस्का कर
दिया ये उत्तर,
आप अपनी पत्नी को,
आते,जाते,पकाते,खिलाते,
दिन में देखते हो कितनी ही बार
मगर मेरे यार,
जिस तरह बीबी को बाँहों में लेकर,
नज़रे मिला कर ,
और उसकी खुशबू पाकर,
प्यार करने का मज़ा ही कुछ और है
वैसे ही सुबह सुबह,
सौंधी सौंधी खुशबू वाले अखबार को,
हाथों में लेकर और उस पर नज़रें गढ़ा कर,
उसके पन्ने पलटने,
और ध्यान से पढने का मज़ा ही कुछ और है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Friday, March 16, 2012
सौवाँ शतक
सचिन,बधाई ढेरों तुमको,तुमने सौवाँ शतक लगाया
हम सब खेलप्रेमियों का था,जो सपना ,सच कर दिखलाया
बहुत दिनों से आस लगी थी,तुम शतकों का शतक लगाओ
करो नाम भारत का रोशन, एसा करतब कर दिखलाओ
सुबह प्रणव दादा ने हमको,मंहगाई का डोज़ पिलाया
सबका मुंह कड़वा कर डाला, एसा मुश्किल बजट सुनाया
मंहगाई से त्रस्त सभी को ,दिए बजट ने खारे आंसू
लेकिन तुमने शतक लगाके,खिला दिए जैसे सौ लड्डू
मुंह का स्वाद हो गया मीठा,भूल गए हम सब कडवापन
तुम्हारे इस महा शतक ने,जीत लिया है हम सबका मन
तुम क्रिकेट के 'महादेव' हो,तुम गौरव भारत माता के
सच्चे 'भारत रत्न'तुम्ही हो,देश धन्य तुम सा सुत पा के
सचिन ,बधाई तुमको ढेरों,तुमने सौवाँ शतक बनाया
हम सब खेलप्रेमियों का था,जो सपना,सच कर दिखलाया
मदन मोहन बहेती'घोटू'
Monday, March 12, 2012
कष्ट-बुढ़ापे का
उम्र के इस दौर ने ये हमारी हालत बनाइ
काम हम कुछ भी करें तो हमें है इसकी मनाही
बढ़ रहा है ब्लड प्रेशर,घूमना फिरना मना है
बैठ कर कमरे में हमको,सिर्फ टी वी देखना है
सुन के बच्चे बिगड़तें है,मत सुनो आईटम गाने
बड़े अच्छे मधुर होते ,पुराने गाने,सुहाने
बुढ़ापे में इस कदर है,हमें बच्चे प्यार करते
डाईबिटिज है हमें,वो नहीं मीठी बात करते
पूजते माँ बाप को है,एक कोने में बिठाके
पथ्य है पकवान,रहना दाल रोटी सिर्फ खाके
सामने पकवान खाता,बैठ घर का हर जना है
हमें मिलती खीचड़ी है,तली सब चीजें मना है
नहीं आइसक्रीम खाओ,तुम्हे हो जायेगी खांसी
नहीं चखने हमें देते मिठाई ,थोड़ी जरा सी
प्यार से हम पर लगाये गए सब प्रतिबन्ध से है
आजकल घर में घुसे हम,जेल में ज्यों बंद से है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Sunday, March 11, 2012
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
ये न समझना की मै तुमसे डरता हूँ
मै तो तुमसे प्यार ढेर सा करता हूँ
बात मानता हूँ मै जब भी तुम्हारी
तुम होती हो मुदित,निखरती छवि प्यारी
वही विजय मुस्कान देखने चेहरे पर,
जो तुम कहती हो बस वो ही करता हूँ
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
तुम जो कुछ भी,कच्चा पका खिलाती हो
मै तारीफ़ करूं,तो तुम सुख पाती हो
'वह मज़ा आ गया'इसलिए कहता हूँ,
खिली तुम्हारी बाँछों पर मै मरता हूँ
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
कभी सामने आती जब तुम सज धज कर
और पूछती'लगती हूँ ना मै सुन्दर'
मै तुम्हारे गालों पर चुम्बन देकर,
तुम्हारा सौन्दर्य चोगुना करता हूँ
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मै तुम्हारा प्रीतम हूँ
तुम तो मेरी प्रेम सुधा हो,मै तुम्हारा प्रीतम हूँ
तुम मधुबाला ,मै मधु प्रेमी,तुम रसवंती,मै प्याला
मै हूँ भ्रमर ,कली तुम खिलती,प्रेमभरी मै मधुशाला
तुम वीणा के तार बजाती,मै तुम्हारी सरगम हूँ
तुम तो मेरी प्रेमसुधा हो, मै तुम्हारा प्रीतम हूँ
तुम गंगा सी कल कल करती,उज्जवल,चंचल,जलधारा
लहरें उठा बुलाता तुमको,मै तो हूँ सागर खारा
हम तुम खोते इक दूजे में,मै तो वो ही संगम हूँ
तुम तो मेरी प्रेमसुधा हो,मै तुम्हारा प्रीतम हूँ
मै हूँ धूप भरी दोपहरी,शीतल ,मधुर,चांदनी तुम
तुम्हारी धुन पर मै नाचूं,ऐसी मधुर रागिनी तुम
तुम सुख देता मधुर मिलन हो,मै प्यारा आलिंगन हूँ
तुम तो मेरी प्रेमसुधा हूँ,मै तुम्हारा प्रीतम हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तुम बदली पर प्यार न बदला
घटाओं से बाल काले आज श्वेताम्बर हुए है
गाल चिकने गुलाबी पर झुर्रियां,सल पड़ गए है
हिरणी से नयन तुम्हारे, कभी बिजली गिराते
चमक धुंधली पड़ी ऐसी,छुप रहे ,चश्मा चढाते
और ये गर्दन तुम्हारी,जो कभी थी मोरनी सी
आक्रमण से उम्र के अब ,हुई द्विमांसल घनी सी
मोतियों सी दन्त लड़ी के,टूट कुछ मोती गये है
क्षीरसर में खिले थे जो वो कमल कुम्हला गये है
कमर जो कमनीय सी थी,बन गयी है आज कमरा
पेट भी अब फूल कर के,लटकता है बना दोहरा
पैर थे स्तम्भ कदली के हुए अब हस्ती पग है
अब मटकती चाल का,अंदाज भी थोडा अलग है
शरबती काया तुम्हारी,सलवती अब हो गयी है
प्यार का लेकिन खजाना,लबालब वो का वही है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दिल्ली -वाणी
गया मौसम चुनावों का,सर्दियाँ हो गयी कम है
कट गया माया का पत्ता, हुई सत्ता मुलायम है
चैन की ली सांस सबने,लोग थोडा मुस्कराये
फाग आया,जिंदगी में,रंग होली ने लगाये
देख लोगों को विहँसता, केंद्र से आवाज़ आई
पांच रूपया ,पेट्रोल के ,दाम बढ़ने को है भाई
झेल भी लोगे इसे तुम,भूल कर के मुस्कराना
याद रखना ,पांच दिन में,बजट भी है हमें लाना
बोझ मंहगाई का इतना,हम सभी पर लाद देंगे
किया तुमने दुखी हमको,दुखी हम तुमको करेंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Friday, March 9, 2012
हिरण्यगर्भा सत्ता
है हिरण्य गर्भा ये सत्ता,कितने ही नेता हिरणाक्ष
कैसे करें स्वर्ण का दोहन,हरदम रहती इस पर आँख
कुछ हिरण्यकश्यप के जैसे,सत्तामद में रहते चूर
कुछ प्रहलाद ,सत्य के प्रेमी,पाते पीड़ायें भरपूर
ईर्ष्या बनी होलिका बैठी ,गोदी में लेकर प्रहलाद
खुद जल गयी,जला ना पायी,सत्य सदा रहता आबाद
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सुनो भागवत है क्या कहती
मुझे दिला दो,स्वर्णाभूषण,तुम हरदम जिद करती रहती
सुनो ,भागवत है क्या कहती
कलयुग आया था धरती पर,बैठ परीक्षित स्वर्ण मुकुट पर
उसको ये वरदान प्राप्त है, उसका वास, स्वर्ण के अन्दर
और तुम पीछे पड़ी हुई हो, तुमको स्वर्णाभूषण लादूं
पागल हूँ क्या,जो कलयुग को,गले तुम्हारे से लिपटा दूं
और यूं भी सोना मंहगा है,दाम चढ़ें है आसमान पर
गहनों की क्या जरुरत तुमको,तुम खुद ही हो इतनी सुन्दर
सोने का ही चाव अगर है,हम तुम साथ साथ सो लेगे
स्वर्ण हार ना,बाहुपाश का,हार तुम्हे हम पहना देंगे
पर मै इतना मूर्ख नहीं जो ,घर में कलयुग आने दूंगा
स्वर्ण तुम्हे ना दिलवाऊंगा,ना ही तुमको लाने दूंगा
प्यार तुम्हारा,सच्चा गहना, तुम हो मेरे दिल में रहती
सुनो भागवत है क्या कहती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुटर -गूं
आओ हम तुम साथ मिल कर ,करें आपस में गुटर-गूं
गर्दनो को पास लाकर,एक दूजे से सटा कर
मै उडूं,फिर लौट आऊँ,पंख अपने फडफडा कर
चोंच में भर लाऊं दाना,और तुम्हारी चोंच में दूं
आओ हम तुम ,साथ मिल कर,करें आपस में गुटर-गूं
कोई हमको देखता है,तो हमें क्या,देखने दो
प्यार रत हम युगल प्रेमी,प्यार में बस डूबने दो
गोल आँखे,घुमा कर के,तुम मुझे,मै तुम्हे देखूं
आओ हम तुम युगल प्रेमी,करें आपस में गुटर-गूं
पास बैठें,हम सिमट कर,कभी थोड़े दूर हट कर
एक दूजे को समर्पित,एक दूजे से लिपट कर
अंग से अपने लगा कर, पूर्ण मन की चाह कर लूं
आओ हम तुम साथ मिल कर,करें आपस में गुटर -गूं
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आओ हम होली मनाये
मेट कर मन की कलुषता,प्यार की गंगा बहाये
आओ हम होली मनाये
अहम् का जब हिरनकश्यप,प्रबल हो उत्पात करता
सत्य का प्रहलाद उसकी कोशिशों से नहीं मरता
और ईर्ष्या, होलिका सी,गोद में प्रहलाद लेकर
चाहती उसको जलाना,मगर जाती है स्वयं जल
शाश्वत सच ,ये कथा है,सत्य कल थी,आज भी है
लाख कोशिश असुर कर ले,जीतता प्रहलाद ही है
सत्य की इस जीत की आल्हाद को ऐसे मनाये
द्वेष सारा,क्लेश सारा, होलिका में हम जलायें
भीग जायें, तर बतर हो ,रंग में अनुराग के हम
मस्तियों में डूब जाये, गीत गायें ,फाग के हम
प्यार की फसलें उगा,नव अन्न को हम भून खायें
हाथ में गुलाल लेकर ,एक दूजे को लगायें
गले मिल कर,हँसे खिलकर,ख़ुशी के हम गीत गाये
आओ हम होली मनाये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, March 8, 2012
Re: चुनाव के बाद - नारी दिवस
चुनाव के बाद
तुम संग कैसे खेले होली
तुम हो नार बड़ी बडबोली
नारी दिवस पर दुखिया नारी
मायावती बहन बेचारी
अब तक बहुत करी बरजोरी
जनता ऐसी बांह मरोरी
हार चुनाव,कट गया पत्ता
और हाथ से छूटी सत्ता
दुखी दूसरी नार सोनिया
बेटे हित सपने थे क्या क्या
सपने सारे टूट गए पर
सारी मेहनत रही बेअसर
भ्रष्टाचार,नकारी ,जनता
दोष संगठन का भी बनता
और तीसरी उमा भारती
बी जे पी भी गयी हारती
उसका जादू काम न आया
खिला कमल ना,पर कुम्हलाया
साईकिल ने पेडल मारे
हाथी,हाथ,कमल सब हारे
तीनो नार आज बेबस है
भले नारी का आज दिवस है
कोई नहीं आज हमजोली
जनता खेली ऐसी होली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चुनाव के बाद - नारी दिवस
तुम संग कैसे खेले होली
तुम हो नार बड़ी बडबोली
नारी दिवस पर दुखिया नारी
मायावती बहन बेचारी
अब तक बहुत करी बरजोरी
जनता ऐसी बांह मरोरी
हार चुनाव,कट गया पत्ता
और हाथ से छूटी सत्ता
दुखी दूसरी नार सोनिया
बेटे हित सपने थे क्या क्या
सपने सारे टूट गए पर
सारी मेहनत रही बेअसर
भ्रष्टाचार,नकारी ,जनता
दोष संगठन का भी बनता
और तीसरी उमा भारती
बी जे पी भी गयी हारती
उसका जादू काम न आया
खिला कमल ना,पर कुम्हलाया
साईकिल ने पेडल मारे
हाथी,हाथ,कमल सब हारे
तीनो नार आज बेबस है
भले नारी का आज दिवस है
कोई नहीं आज हमजोली
जनता खेली ऐसी होली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Wednesday, March 7, 2012
नारी दिवस और होली-8 th march
आज नारी दिवस भी है,
होलिका त्योंहार भी है
पर्व कल था जो दहन का
आस्थाओं के दमन का
कुटिलता के नाश का दिन
भक्ति के विश्वास का दिन
शक्ति के उस परिक्षण में
जीत भी है ,हार भी है
आज नारी दिवस भी है,
होलिका त्योंहार भी है
आग भी है, फाग भी है
जलन है अनुराग भी है
दाह भी है, डाह भी है
चाह भी है, आह भी है
अजब है संयोग देखो,
प्यार है,प्रतिकार भी है
आज नारी दिवस भी है,
होलिका त्योंहार भी है
आज उत्सव है मदन का
पर्व है ये मधु मिलन का
प्रीत का,मनमीत का दिन
मचलते संगीत का दिन
आज रंगों में बरसता,
प्यार है,मनुहार भी है
आज नारी दिवस भी है,
होलिका त्योंहार भी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चुनाव का चक्कर-जनता का उत्तर
चुनाव का चक्कर-जनता का उत्तर
१
पांच साल से हो रहा,था 'हाथी' मदमस्त
दो पहियों की 'सायकिल',उसे कर गयी पस्त
उसे कर गयी पस्त,'कमल' भी है कुम्हलाया
गाँव गाँव में हिला 'हाथ',पर काम न आया
कह घोटू कवि,अब सत्ता हो गयी 'मुलायम'
ख़तम हो गया,'माया' की माया का सब भ्रम
२
बहुजन हो या सर्वजन,कुछ भी दे दो नाम
चाल समझती है सभी,मूरख नहीं अवाम
मूरख नहीं अवाम,परख है बुरे भले की
सारा भ्रष्टाचार, बन गया फांस गले की
सत्ता के मद में माया इतनी पगलायी
खुद के पुतले बना,बन गयी पुतली बाई
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Tuesday, March 6, 2012
राज-पत्नी के 'ना'ना'कहने का
----------------------------------
मैंने पत्नीजी से पूछा,एक बात मुझको बतलाना
मै तुमसे जब भी कुछ कहता,तुम बस कहती हो 'ना'ना'ना
और फिर 'ना'ना' कहते कहते,बातें सभी मान लेती हो
मेरी हर एक चाह,मांग में,तुम सहयोग पूर्ण देती हो
अक्सर लोग कहा करते है,सबके संग एसा होता है
औरत जब भी' ना 'करती है,उसका मतलब'हाँ'होता है
पत्नीजी बोली यूं हंस कर,तुम कितने भोले हो सजना
मुझको भी अच्छा लगता है,तुम्हे रिझाना,और संवरना
तुम्हे सताना,तुम्हे मनाना,और तुम्हारे खातिर सजना
मुझे सुहाता,मन को भाता,संग तुम्हारे,सोना,जगना
अच्छा खाना,पका खिलाना,लटके,झटके ,सब दिखलाना
मीठी मीठी बात बनाना,और दीवाना,तुम्हे बनाना
मेरी चाहत की सब चीजे,अच्छा खाना और पहनना
गाना और बतियाना,या फिर सोने का सुन्दर सा गहना
इन सब में भी तो होती 'ना',इसीलिए मै कहती 'ना'ना'
समझदार को सिर्फ इशारा ही काफी है,समझ गये ना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Monday, March 5, 2012
परिवर्तन
जब जब मौसम बदला करता,सब में परिवर्तन आता है
लोग वही है,वो ही रिश्ते ,पर व्यवहार बदल जाता है
हवा वही है,सर्दी में जो,ठिठुराती थी सारे तन को
वो ही गर्मी में लू बन कर,जला रही सम्पूर्ण बदन को
वो ही धूप,भली लगती थी,जो सर्दी में बहुत सुहाती
गर्मी में वो ही चुभती है,जब अंग लगती,बदन जलाती
पानी वही जिसे छूने से,सर्दी में होती थी ठिठुरन
अब गर्मी में,उस पानी में,भीग तैरने को करता मन
अधिक ताप में भाप,बरफ बन जमता,होती अधिक शीत है
सूरत,सीरत,नाम बदलती,इस मौसम की यही रीत है
लोग वही पर पैसा पाकर,उनका नाम बदल जाता है
पहले था 'परस्या'फिर 'परसु','परसराम' फिर कहलाता है
होते है माँ बाप वही जो,बचपन में थे सबसे अच्छे
उन्हें बुढ़ापा जब आ जाता,तो ठुकरा देते है बच्चे
ऑंखें वही,अगर दुःख होता,जार जार आंसू ढलकाती
मगर ख़ुशी जब अतिशय होती,तो भी पानी से भर जाती
इसमें दोष नहीं कोई का,परिवर्तन नियम जीवन का
है ऋतू चक्र ,बदलता रहता,है अक्सर मिजाज़ मौसम का
चेहरा वही,कभी मुस्काता,तो अवसाद कभी छाता है
जब जब मौसम बदला करता ,सब में परिवर्तन आता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मूली के परांठे
----------------
फ़रवरी का ये महिना,फाग का मदमस्त मौसम
करवटें मौसम बदलता,सर्दियाँ ना हो रही कम
रात जागे देर तक थे,मुश्किलों से नींद आई
दुबक हम तुम सो रहे है,ओढ़ कर दुहरी रजाई
रात मूली के परांठे, खा लिए थे चार तुमने
बहुत हलचल मचाएगी,वायु तुम्हारे उदर में
यूं ही खर्राटे बहुत है,और मुश्किल लादना मत
मुंह ढके हम सो रहे है, रजाई में पादना मत
(बुरा ना मानो होली है)
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Sunday, March 4, 2012
होली,तपभंग और पाउडर
१
तप से विश्वामित्र से,हुए इंद्र जब तंग
उनने भेजी मेनका,करने को तप भंग
करने को तपभंग,रूप का जाल बिछाया
था ऋतुराज बसंत,पर्व होली का आया
कह घोटू कवि चली मेनका भर पिचकारी
विश्वामित्र मुनिजी की सूरत रंग डाली
२
ज्ञानी विश्वामित्र पर,बरसी रंग फुहार
उनको गुस्सा आ गया,देखा जब निज हाल
देखा जब निज हाल,उठे वो जल्दी जल्दी
ले धूनी से राख,मेनका मुख पर मल दी
पा नारी स्पर्श गये तप भूल मुनिवर
खेली होली खूब मेनका के संग जी भर
३
उस दिन होली खेल कर,मन में भरे हुलास
ख़ुशी ख़ुशी जब मेनका,पहुंची दर्पण पास
पहुंची दर्पण पास,रूप जब अपना देखा
उजला उजला लगा रंग अपने चेहरे का
ले धूनी से राख, रोज़ वो मुंह उजलाती
शुरू पाउडर का प्रचलन है तबसे साथी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
अबकी होली
कई रंग से खेली होली
और उमंग से खेली होली
याद रहेगी वो होली जब,
तीन ढंग से खेली होली
सुबह उठा बीबीजी बोली,सुनो दर्द है मेरे सर में
वैसे आज तुम्हे छुट्टी है,दिन भर रहना ही है घर में
देखो मुझको नींद आ रही,सुबह हो गयी तो होने दो
प्लीज बुरा तुम नहीं मानना,थोड़ी देर और सोने दो
सच डीयर कितने प्यारे हो,अच्छा सोने दो ना जाओ
सच्चा प्यार तभी जानू जब ब्रेकफास्ट तुम बना खिलाओ
कह उनने तो करवट बदली,नींद हमारी टूट चुकी थी
काफी दिन भी चढ़ आया था,बड़ी जोर की भूख लगी थी
फिर उनकी प्यारी बातों ने,जोश दिया था कुछ एसा भर
हम भी कुछ कर दिखला ही दें,सोच घुसे चौके के अन्दर
कौन जगह क्या चीज रखी है,इसकी हम को खबर नहीं थी
उचका पैर ढूंढते चीनी,आसपास कुछ नज़र नहीं थी
रखा एक डिब्बा गलती से,गिरी मसालेदानी हम पर
पहली होली उसने खेली,कई रंगों से दिया हमें भर
लाल रंग की पीसी मिर्च थी,और हरे रंग का था धनिया
पीला रंग डाला हल्दी ने, बना अजीब हमारा हुलिया
काला काला गरम मसाला,राई,जीरा अजब रंग थे
हर रंग की अपनी खुशबू थी,मगर मिर्च से हुए तंग थे
छींक छींक हालत खराब थी ,आँखों में थी मिर्च घुल गयी
दुःख तो ये है,छींके सुन कर ,बीबीजी की नींद खुल गयी
उठ आई तो देखा हमको,शक्लो सूरत रंग भरी थी
मै गुस्से में था लेकिन वो मारे हंसी हुई दोहरी थी
देख हमारी हालत उनको,प्यार या दया ऐसी आयी
हमें दूसरी होली उनने,अपने रंगों से खिलवायी
काली काली सी जुल्फें थी,रंग गुलाबी सा चेहरा था
हरा भरा था उनका आँचल ,लाल होंठ का रंग गहरा था
पहली होली भूल गए हम,रंग दूसरी का जब आया
लेकिन इसी समय दरवाजा,आकर यारों ने खटकाया
और तीसरी होली हमने खेली मित्रों की टोली से
बड़ी देर तक धूम मचाई,रंग गुलाल भरी झोली से
पहली थी कुछ तीखी होली
दूजी प्यारी पिय की होली
और तीसरी नीकी होली
सच अबके ही सीखी होली
तीन ढंग से खेली होली
और उमंग से खेली होली
याद रहेगी वो होली जब,
तीन ढंग से खेली होली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आओ होली मनाएं
आओ होली मनाएं
पहले दिन
पुरानी वेमनस्यतायें
दुर्भावनाएं ,कटुता,और
बैरभाव की होली जलाएं
और दूसरे दिन
सदभावनाओं की गुलाल
भाईचारे का अबीर
और प्रेम के रंगों से
मिलजुल कर होली मनाएं
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
धूप के संग छाँव को भी,जन्म देता वो रवि हूँ
मै कवि हूँ
कल्पना के समंदर में सिर्फ ना गोते लगाता
बल्कि जा गहराइयों में,सीप मोती ढूंढ लाता
कलकलाती नदियों का,रूप ना केवल निहारा
बल्कि देखा बाढ़ में उनका विनाशक रूप सारा
फूल फल से लदे देखे वृक्ष जब अनुकूल मौसम
वहीँ देखा हुआ पतझड़,जब हुआ प्रतिकूल मौसम
तान सीना,वृक्ष देखे,वनों में ऊंचे खड़े थे
वक़्त का आया बुलावा,कट गए वो गिर पड़े थे
और देखी उन वनों में, उठ रही अट्टालिकाएं
प्रकृति का संहार करके,प्रगति की सारी विधाये
प्रात का कोमल अरुण और दोपहर का सूर्य तपता
चाँद,जो ले क़र्ज़ रवि से,रात को जगमग चमकता
नहीं केवल मिलन का सुख,जुदाई की पीर देखी
वक़्त के संग जमाने की बदलती तस्वीर देखी
जिन्होंने जीवन दिया , वो प्रताड़े माँ बाप देखे
दृश्य कितने ही करुण,आंसू भरे, चुपचाप देखे
इन्ही दृश्यों और जीवन की सभी संवेदनाये
को पिरोया शब्द में जब ,बन गयी वो कवितायेँ
मोम जैसा कभी पिघला,बना भी पाषण हूँ मै
बहुत गहरी चुभन देता,शब्द का वो बाण हूँ मै
प्यार का मादक सपन हूँ,और मिलन का गीत हूँ मै
युद्ध रणभेरी बजाता,हार भी हूँ जीत हूँ मै
समय के खाकर थपेड़े ,बन गया अब अनुभवी हूँ
मै कवि हूँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Saturday, March 3, 2012
प्रियतमा तुम,सिर्फ हो तुम
--------------------------------
हूँ प्रफुल्लित,हुआ हर्षित,महक के उन्माद से मै
मन तरगित,नहीं बंधित,अब किसी भी बाँध से मै
मै समर्पित,तुम्हे अर्पित,अर्चना का फूल प्यारा
तुम अविरल,बहो कल कल,सरिता तुम,मै किनारा
मै क्षुधा हूँ,तुम सुधा हो,मै पलक हूँ,आँख हो तुम
बिन तुम्हारे उड़ न पाता,पंछी हूँ मै,पांख हो तुम
मै चमत्कृत,हुआ झकृत,तुम्हारा स्पर्श पाकर
लहर सा मन में बसा हूँ,प्यार का तुम हो समंदर
तुम्हारी धुन में मगन मै,ताल हो तुम,गीत हूँ मै
मीत हो तुम,प्रीत हो तुम,प्रणय का संगीत हूँ मै
सूर्य की तुम रश्मि सी हो,मै अकिंचन चन्द्रमा हूँ
तुम्ही से उर्जा मिली है, तभी आलोकित बना हूँ
मै शिशिर सा,ग्रीष्म सा भी,तुम बसंती मस्त मौसम
पल्लवित,हर दम प्रफुल्लित,प्रियतमा तुम,सिर्फ हो तुम
मदन मोहन बहेती'घोटू'
आज तुम ना नहीं करना
जायेगा दिल टूट वरना
तुम सजी अभिसारिका सी,दे रही मुझको निमंत्रण
देख कर ये रूप मोहक, नहीं अब मन पर नियंत्रण
खोल घूंघट पट खड़ी हो,सजी अमृतघट सवांरे
जाल डोरों का गुलाबी ,नयन में पसरा तुम्हारे
आज आकुल और व्याकुल, बावरा है मन मिलन को
हो रहा है तन तरंगित,चैन ना बेचैन मन को
प्यार की उमड़ी नदी में,आ गया सैलाब सा है
आज दावानल धधकता,जल रहा तन आग सा है
आज सागर से मिलन को,सरिता बेकल हुई है
तोड़ सब तटबंध देगी, कामना पागल हुई है
और आदत है तुम्हारी,चाह कर भी, ना करोगी
बांह में जब बाँध लूँगा,समर्पण सम्पूर्ण दोगी
चाहता मै भी पिघलना,चाहती तुम भी पिघलना
टूट मर्यादा न जाये, बड़ा मुश्किल है संभलना
व्यर्थ में जाने न दूंगा,तुम्हारा सजना ,संवारना
केश सज्जा का तुम्हारी ,आज तो तय है बिखरना
आज तुम ना नहीं करना
जायेगा दिल टूट वरना
मदन मोहन बहेती'घोटू'
मुक्तक
मुक्तक
--------
१
क्या भरोसा जिन्दगी की,सुबह का या शाम का
आज जो हो,शुक्रिया दो,उस खुदा के नाम का
गर्व से फूलो नहीं और ये कभी भूलो नहीं,
अंत क्या था गदाफी का,हश्र क्या सद्दाम का
२
नहीं सौ फ़ीसदी खालिस,इस सदी में कोई है
धन कमाने की ललक में,शांति सबकी खोई है
बीज भ्रष्टाचार के,इतने पड़े है है खेत में,
काटने वो ही मिलेगी,फसल जो भी बोई है
३
है बहुत सी कामनाएं,काम ही बस काम है
ना जरा भी चैन मन में,और नहीं आराम है
आप जब से मिल गए हो,एसा है लगने लगा,
जिंदगी एक खूबसूरत सी बला का नाम है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Friday, March 2, 2012
ससुराल-मिठाई की दूकान
------------------------------
सालियाँ,नमकीन सुन्दर,और साला चरपरा
टेड़ी सलहज जलेबी सी,मगर उसमे रसभरा
सास रसगुल्ला रसीली,कभी चमचम रसभरी
काजू कतली उनकी बेटी,मेरी बीबी छरहरी
और लड्डू से लुढ़कते, ससुर मोतीचूर हैं
हर एक बूंदी रसभरी है,प्यार से भरपूर है
गुंझिया सा गुथा यह परिवार रस की खान है
ये मेरा ससुराल या मिठाई की दूकान है
(होली की शुभकामनाये)
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Thursday, March 1, 2012
चिंतन
--------
1
मैल जब मन का धुलेगा,तभी मन का मेल होगा
खुलेंगे संकोच बंधन, तभी खुल कर खेल होगा
जिंदगी की परीक्षा है, सभी को देनी पड़ेगी,
कभी कोई पास होगा,कभी कोई फ़ैल होगा
२
कदम कितने ही रखोगे, देख कर या भाल कर
नाचना सबको पडेगा ,वक़्त की हर ताल पर
छूट पल में जाएगा जग,आएगा जब बुलावा,
व्यर्थ क्यों होते परेशां, यूं ही चिंता पाल कर
३
जरा सी चिंदी मिली,चूहा नशे में चूर है
खोल कर दूकान कपडे की बड़ा मगरूर है
जरा सी उपलब्धियों पर,इसे इठलाओ नहीं,
बहुत बढ़ना है तुम्हे और अभी दिल्ली दूर है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चुनाव के बाद
----------------
१
मिनिस्टर थे,हार कर के इलेक्शन ऐसा लगा
गये वो दिन ,जब कि मियां मारते थे फ़ाकता
अब समझ में आ रहा है,जिंदगी का फलसफा,
सेज फूलों की गयी और चुभे कांटे ,खामखाँ
२
गोपियाँ थी,मस्तियाँ थी,और थे संग ग्वाल बाल
खूब मचता था बिराज में,कृष्ण का होली धमाल
द्वारका के धीश जब से बन गये है कृष्ण जी,
औपचारिता निभाने को लगा लेते बस गुलाल
मदन मोहन बाहेती'घोटू'