Tuesday, August 30, 2011

हमें माफ़ करना नेताजी

हम भारत माता के बेटे,देश हमारा अपना है
भ्रष्टाचार मुक्तं हो भारत,यही हमारा सपना है
पिछली बार आप जब हमसे,बोट मांगने आये थे
कई किये थे हमसे वादे,क्या क्या सपन दिखाए थे
दूर गरीबी कर देंगे हम,कम कर देंगे मंहगाई
लेकिन सत्ता में आने पर,तुमने शकल न दिखलाई
मंहगाई दो गुना बढ़ गयी,सब चीजों के दाम बढे
भ्रष्टाचार और घोटाले,हुए देश में बड़े बड़े
मंहगाई पर रोक लगाने,जब जब जनता चिल्लाई
'नहीं कोई जादू की छड़ी है,दूर करे जो मंहगाई'
 एसा कह कर ,तुमने तो बस,अपना पल्ला झाड़ दिया
 आन्दोलन जब किया ,रात को,तुमने छुप कर वार किया
जनता की जायज मागों के,तुम विरोध में अड़े हुए
अरे  तुम्हारे कई मंत्री ,हैं जेलों में  पड़े  हुए
सत्याग्रह  और आन्दोलन में,बाधा सदा लगाये हो
धिक् है तुमको,अब किस मुंह से,बोट माँगने आये हो
हमें माफ़ करना नेताजी,तुमको बोट नहीं देंगे
किसी साफ़ सुथरी छवि वाले ,को हम संसद भेजेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पंच कोटि महा मनी

पंच कोटि महा मनी का,उच्च कोटि का खेल
कोटि कोटि मन लुभाता,सब रंगों का मेल
सब रंगों का मेल,कहीं देखा है अब तक
हॉट सीट पर बैठ,ह्रदय को मिलती ठंडक
पंच कोटि का नहीं,खेल ये सप्त कोटि का
बिग बी से दो बातें करना,दो कोटि का
  
मदन मोहन बाहेती,घोटू, नोयडा 

मेरी बीबी,बदली सी है

मेरी बीबी,बदली सी है
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बहुत गरजती है पहले ,फिर रस  बरसाती
मेरी बीबी इसी तरह से प्यार जताती
बिजली  सी कड़का करती है,बहुत कड़क है
माटी जैसी  मगर  मुलायम,अन्दर तक है
दग्ध ह्रदय का ताप,पीर है सब हर लेती
मुस्का,प्यार फुहार,प्रेम से बरसा देती
भिगा,प्रेम में, पागल करती,खुद हो पगली
मेरी बीबी,प्यार भरी है,सुख की बदली
यही कड़कपन,गर्जन,मन को लगे है भली
बदला सब कुछ,उम्र ,ज़माना,ये ना बदली
 


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आदमी,संभल संभल जाता है

आदमी,संभल संभल जाता है
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कभी शर्म के मारे
कभी दर्द के मारे
दुःख और वेदना में
प्यार की उत्तेजना में
           आदमी ,पिघल  पिघल जाता है
पडोसी की प्रगति देख
दोस्त की सुन्दर बीबी देख
प्यार में दीवाने सा
शमा पर परवाने सा
            आदमी,जल जल जल जाता है
गर्मी में पानी देख
मचलती  जवानी देख
भूख में खाने को
हुस्न देख पाने को
              आदमी मचल मचल  जाता है
प्यार भरी भाषा से
अच्छे  दिन की आशा से
सुन्दर सी हिरोइन
देख ,मधुर सपने बुन
                 आदमी,बहल बहल जाता है
प्यार में सब खोकर
लगती है जब ठोकर
अपनों के दिए दुःख से
और हवाओं के रुख से
                    आदमी संभल संभल जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



 

शांति से क्रांति

शांति से क्रांति
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आज देश में,अग्निवेश में,कितने ही जयचंद छुपे है
दुराग्रही और अड़ियल कितने,कुटिलों को हम जान चुके है
ये चाहे जो करे कोई भी,नहीं विरोध प्रकट कर सकता
वरना तुमको गाली देने,रहते है तैयार  प्रवक्ता
कहने को तो जन प्रतिनिधि है,पर करते हैं तानाशाही
लूट खसोट हो रही कितनी,कितनी बढ़ा रहे मंहगाई
गीता कहती,जब धरती पर,घटता धर्म,पाप बढ़ता है
करने तभी धर्म की रक्षा,इश्वर को आना पड़ता  है
खुद में छुपी हुई ताकत को,जब हनुमत ने था पहचाना
लांघ समुद्र ,नहीं मुश्किल था,वापस  सीताजी को लाना
जब भी अत्याचार बढ़ा है,जागृति का संचार हुआ है
रावण हो या कंस,अंत में,सबका ही संहार हुआ है
भ्रष्टाचार मिटाने का यह,मुहीम चलाया है अन्ना ने
गाँव गाँव और गली गली में,अलख जगाया है अन्ना ने
देखो जन सैलाब उमड़ता,नयी क्रांति की राह यही है
भष्टाचार मुक्त भारत हो,जन जन की अब चाह यही है
अब जनता ,गुस्सा आने पर,तांडव ना,उपवास करेगी
और शांति से,नयी क्रांति का,उद्भव और विकास करेगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अनशन के बाद

 १
लालूजी ने संसद में भाषण दिया
और बतलाया कि किस तरह आक्रोश में,
जनता ने एक एम.पी.को ट्रेन से उतार दिया
सत्ताधारियों!यह तो एक ट्रेलर था,
पर इससे आप जनता के मूड को ताड़ सकते है
भष्टाचार नहीं मिटाया,
तो आज तो ट्रेन से उतारा,
कल सत्ता कि कुर्सी से उखाड़ सकते है
   २
अन्ना के अनशन के बाद,
एक जेब कतरे ने,
अपने ढंग से विद्रोह जतलाया
कि उसने तीन सांसदों कि जेब काट,
उन्हें अपना निशाना बनाया
उसने संकल्प किया है,
कि जिनने जनता कि जेब काटी है
उनसे शांतिपूर्ण ढंग से बदला लूँगा
अब सिर्फ नेताओं की ही जेब काटूँगा

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Saturday, August 27, 2011

हुंकार

हुंकार
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अब सड़कों पर उतर आई है,जनता भर कर क्रोध में
लोकपाल बिल लाना होगा,भ्रष्टाचार विरोध में
तम्हे चुना,संसद में भेजा,मान तुम्हारे वादों को
समझ नहीं पायी थी जनता,इतने भष्ट इरादों को
तुमने सत्ता में आते ही,जी भर लूट खसोट करी
कोई करे क्या,राज्य कोष को,लगे लूटने जब प्रहरी
जनसेवा को भूल ,लिप्त तुम थे आमोद प्रमोद में
अब सड़कों पर उतर आई है जनता भर कर क्रोध में
कई करोड़ों लूट ले गया,राजा  अपनी  गाडी  में
खेल खेल में,कई करोड़ों ,लूट लिए कलमाड़ी ने
आदर्शों की सोसाइटी में,आदर्शों का हनन हुआ
भष्टाचार,लूट,घोटाले,रोज रोज का चलन हुआ
कठपुतली बन,नाचे तुम,पूंजीपतियों की गोद में
अब सड़कों पर उतर आई है जनता भर कर क्रोध में
सुरसा से मुख सी मंहगाई,रोज रोज बढती जाती
 कैसे नेता हो जो तुमको,ये सब नज़र नहीं आती
 काबू इसे नहीं कर सकते,कहते हो,मजबूरी है
नहीं पास में हाथ तुम्हारे,कोई जादू की छड़ी है
बहुत त्रसित है और दुखी है,जनता है आक्रोश में
अब सड़कों पर उतर आई है,जनता भर आक्रोश में
लूट देश का पैसा कितना,स्विस बेंकों में भेज दिया
पास मगर चालीस बरसों में,लोकपाल बिल नहीं किया
शोषक जब होती है सत्ता,जन आक्रोश उमड़ता है
मिश्र,लीबिया सा गद्दी को,छोड़ भागना पड़ता है
देखो जन जन,लोग करोड़ों,अब सब हुए विरोध में
अब सड़कों पर उतर आई है,जनता भर आक्रोश में
लोकपाल बिल लाना होया,भ्रष्टाचार विरोध में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, August 25, 2011

अन्ना का अनशन-प्रतिक्रियाएं

अन्ना का अनशन-प्रतिक्रियाएं 
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                 १
जब से अन्ना ने किया है अनशन,
रिश्वत खोरों का बुरा हाल है
उन्हें खाने को कुछ नहीं मिल रहा,
उनकी भी भूख हड़ताल है
                 २
एक बूढा संत,दस दिनों से भूखा है
पर सरकार का रुख,अभी तक रूखा है
करोड़ों लोग,अन्नाजी के साथ है
पर सत्ता तो भ्रष्टाचारियों के हाथ है
सबकी मांग है कि भ्रष्टाचार मिट जाए
और जन लोकपाल बिल पास हो जाये
पर भ्रष्टाचारी कहते है कि इतनी जल्दी,
ये बिल कैसे पास कर पायेंगे
अगर भ्रष्टाचार मिट जाएगा ,तो बच्चे क्या खायेंगे
मगर वो ये नहीं समझ पा रहे है,
कि अगर भ्रष्टाचार नहीं मिटा पाए,
तो जनता उन्हें मिटा  देगी
अगले चुनाव में उन्हें,
सत्ता से हटा देगी

घोटू

Wednesday, August 24, 2011

साड़ी

साड़ी
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कई बार मै सोचा करता हूँ रातों में
नारी नर से अग्रणीय क्यों सब बातों में
घर घर वह देवी सी क्यों पूजी जाती है
नर नौकर पर नारी रानी कहलाती है
इसका कारण मुझे समझ में अब आया है
शायद यह सब केवल साडी की माया है
साडी,जी हाँ,किन्तु आप चकराते क्यों है
साडी देखी उधर नज़र ललचाते क्यों है
साडी ना,साडी वाली के गुनगाहक है
साडी को कर रहे तिरस्कृत ये नाहक है
सचमुच  ही हम  पुरुष लोग है बड़े अनाड़ी
अभी तलक पहचान ना पाए ,क्या है साडी
पेंट कोट के इस लफड़े में पड़े हुए हैं
झूंठे  फेशन के चक्कर में अड़े हुए है
अरे पेंट के बटन टूटते धोबी के घर
और पाजामे का नाड़ा भी होता बाहर
टूटे बटन सियो,नाड़े का फिर हंगामा
बतलाओ,साडी अच्छी या पेंट पाजामा
दोनों टांगें बिछुड़ा करती पाजामे में
दरजी का खर्चा होता है सिलवाने में
साडी मिला रही टांगों को ,वह भी ढक कर
निश्चित  ही साडी ही है इन सब से बेहतर
साडी,गागर,जिसमे सागर भरा हुआ है
इतने गुण है ,कि हम सब का भला हुआ है
मौका पड़ने पर चादर भी बन जाती है
खूब बिछाओ,ओढो,सभी काम आती है
'करटन' सा लटका सकते हो दरवाजे पर
सब्जी भी तुम ला सकते हो झोली  भर कर
गर्मी में आँचल का फेन बना सकते हो
बिन रुमाल के भी तुम काम चला सकते हो
झगडे कि नौबत आये तो कमर कसोगे
मौके पर फांसी का फंदा बांध सकोगे
तन ढकता है,मक्खी मच्छर दूर भगेंगे
और फट गयी,तो दो पेटीकोट बनेंगे
इतनी अच्छी,फिर भी फेशन कहलाती है
इसीलिए तो साडी सबके मन भाती है
जब गलती होती तो नाम प्रभू का लेते
पर अब गलती करने पर हम'सारी' कहते
तो क्या ये सारी या साडी देवीजी है
शायद इसीलिए नारी इन पर रीझी है
जितनी देवी कि तस्वीरें पड़ी दिखायी
कोई भी स्कर्ट धारिणी नज़र ना आयी
हो सकता है साडी ही पूजी जाती हो
या साडी के कारण वो देवी कहलाती हो
कुछ भी हो जी ,साडी सचमुच,'दी ग्रेट'है
दुःख में देती काम,मनुज की बड़ी 'पेट' है
दुःख में राजा नल के आयी कौन अगाड़ी?
साथी थी वह दमयंती की आधी साडी
चीर हरण के समय द्रोपदी पर जब बीती
लाज रखी उसकी वह भी तो साडी ही थी
यह पुराण की कथा कह रही बन कर ज्योति
पांच पति से बढ़ कर है एक साडी होती
इतनी बातें सोच आज आया हूँ कहने
मेरे पुरुष दोस्तों,हम भी साडी पहने
सच कहता हूँ,सुख और सुविधा हो जायेगी
साडी लख,साडी वाली भी ढिग आएगी
पेंट कोट में कसे कसे रहने के बदले
साडी में हम हो जायेंगे उरले,पुरले
बचत योजना है ये,खर्चा  घट जायेगा
दरजी का,धोबी का खर्चा  कट जायेगा
 आधा दर्जन साडी घर में सिर्फ रखेंगे
उलट पुलट कर मियां बीबी पहन सकेंगे
होगी इतनी बचत,योजना सफल बनेगी
खुद साडी लायेंगे,बीबी और मनेगी
एक ड्रेस में इक्वल होंगे सब नर नारी
बहुत बोअर कर दिया आपको,अच्छा,सारी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 
 

Monday, August 22, 2011

अन्ना है कान्हा,

अन्ना है कान्हा,
जनता है गोपियाँ
कान्हा ने बांसुरी बजाई
गोपियाँ दौड़ी आई
हो रही है कृष्णलीला,
रामलीला मैदान में
भ्रष्टाचार है कंस जैसा
पर सब को है भरोसा
भ्रष्टाचार करने वाले,
कंस का अंत होगा
घोटू
 

Sunday, August 21, 2011

वो लेट क्यों आते है?

वो लेट क्यों आते है?
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कुछ लोग पार्टियों में,
हमेशा देर से आते है
और सबका अटेंशन पाते है
उनका ये सोचना है,
कि सजने सँवारने में इतना टाइम लगाओ

लेटेस्ट फेशन के कपड़ों में,पार्टी में जाओ
और देखने वाले हों बस
केवल आठ या दस
तो बताओ आपको क्या मज़ा आएगा?
सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा
मज़ा तो तब है,जब आपकी एंट्री हो
चारों तरफ अच्छी जेन्ट्री हो
पचासों लोगों कि निगाहें
आप पर आकर ठहर जाए
हर कोई आपसे मिलना चाहेगा
आपका सजना संवारना सफल हो जाएगा
जब पार्टी शबाब पर होती है
आपकी आमद गुलाब सी होती है
लेट आने पर मिलती है सभी कि अटेंशन
अरे ये तो है प्रकृति का नियम
क्योंकि जब पैदा होता इंसान है
तो होते दो हाथ,दो पैर,आँखें और कान है
पर शरीर के कुछ अंग जो देर से आते है
तो सबसे ज्यादा अटेंशन पाते है
जैसे मर्दों कि दाड़ी मूंछे,लेट आती है
और औरतों के यौवन का उभार लेट आता है
मन को कितना लुभाता है
ये ही वो चिन्ह है कि जिनको,
जवानी कि पहचान कहा जाता है
लेट आना प्रतीक है यौवन का,
इसलिए जब पार्टी  जवान होती है
  वो नज़र आते है
अब समझ गए ना,
वो पार्टी में लेट क्यों आते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

इंटरव्यू -कृष्ण कन्हैया से

इंटरव्यू -कृष्ण कन्हैया से
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कल मैंने डेयरी पर देखा
हुलिया एक अजीब ,अनोखा
लम्बे बाल लिया काँधे था
सर पर मोर पंख बांधे था
मैंने उसको हिप्पी जाना
पर लगता था कुछ पहचाना
आखिर मैंने पूछ ही डाला
क्या है भैया नाम तुम्हारा?
बोला बड़ा अचम्भा लाये
मुझको तुम पहचान न पाये
पूजो रोज़ जिसे तुम भैया
मै गोकुल का किशन कन्हैया
मै बोला कान्हा,जय कृष्णा
दूर करी नैनों की तृष्णा
धन्य हुआ जो दर्शन पाया
लेकिन नहीं समझ में आया
'क्यू' में यूं क्यूं आप खड़े है
क्या राधा से आज लड़े है?
बोले ना ये बात नहीं है
राधा जी  तो साथ नहीं है
मै तो आया ऐसे ही था
हाल जानने इस धरती का
इतने में ही भूख लग गयी
दिखा कहीं ना दूध या दही
लोगों ने यह ठौर बताया
पता पूछता हूँ मै आया
मै बोला प्रभु धन्य भाग है
हमसे कितना अनुराग है
मुझको सेवा का अवसर दो
मेरी कुटिया पवित्र करदो
नहीं विदुर की पत्नी जैसे
खिलवाऊँ कैले के छिलके
 बल्कि असली दूध मिलेगा
और अमूल का मख्खन होगा
'बटर टोस्ट ' के साथ खाइए
भगवन मेरे साथ आइये
मै उनको अपने घर लाया
बैठाया,जलपान कराया
फिर बोला उपकार करो प्रभु
थोडा सा इंटरव्यू  दो प्रभु
बोले माफ़ करो तुम भैया
मेरे पास ना टका,रुपैया
चावल खाए सुदामा के थे
जो भी था,उसको डाला दे
अब खाकर मख्खन तुम्हारा
ये गलती ना करूं दुबारा
कुछ भी मेरे पास नहीं है
मै बोला ये बात नहीं है
मेरा मतलब इतना केवल
दे दो कुछ प्रश्नों के उत्तर
बरसों बाद आप है आये
कैसा तुमको यहाँ लगा है ?
बोले भैया,गया ज़माना
अब क्या गाऊं गीत पुराना
ना वो गोकुल,ना वो गायें
नहीं गोपियाँ,क्या बतलाये
पहले दूध दही था  बहता
अब बोतल,पाउच में रहता
पहले जब माखन की हंडिया
लेकर जाती गोपी,सखिंया
मै उनको छेड़ा करता था
हंडीयाये फोड़ा करता था
अब छेड़ूं तो क्या बतलाऊं
सर पर कई सेंडिल खाऊं
अब वो प्यारे वक़्त को गए
ग्वाले भी होशियार हो गए
सारा दूध टिनो में भर कर
बेच रहे रख साईकिल पर
और गोपियाँ अपने घर में
खुश है अपने ट्रांजिस्टर में
सुनती हैं जब फ़िल्मी गाने
कौन सुने मुरली की ताने?
क्या बतलाऊ तुमको भैया
सूख गयी है जमुना मैया
घर घर में बाथरूम हो गए
चीर हरण के चांस खो गए
मैंने उन्हें टोक ही डाला
माफ़ करो नंदजी के लाला
आलोचक है निंदा करते
चीर हरण थे तुम क्यों करते?
कृष्ण कन्हैया बोले झट से
मै ना डरता आलोचक से
चीर हरण यदि मै ना करता
तो बतलाओ कैसे रखता
लाज द्रोपदी की दुनिया में
चीर बढाता भरी सभा में
मेरे पास स्टोक ना होता
तो बतलाओ फिर क्या होता?
चीर हरण कर कर मै लाया
मैंने था स्टोक बढाया
तो मौके पर काम आ गया
मेरा कितना नाम छा गया
वैसे कई चीज ऐसी  है
जो अब भी पहले जैसी है
राजनीती का रंग वही है
उल्टा सीधा ढंग वही है
नेता  चुन दिल्ली जाते है
लेकिन  कभी नहीं आते है
लेने खबर क्षेत्र की अपने
जैसे कभी किया था  हमने
गोकुल से चुन मथुरा आया
लेकिन  कभी लौट ना पाया
इतना उलझ गया वैभव से
भेजा सन्देशा उद्धव से
  पहले भी संयुक्त कई दल
कौरव जैसे बने बढा बल
पर पांडव से युद्ध कराया
ये है राजनीती की माया
अच्छा देर हुई बंधुवर
मुझको जाना है अपने घर
इतने में ही मुझे सुनाया
जागो,कितना दिन चढ़ आया
श्रीमती जी जगा रही थी
मेरा सपना भगा रही थी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

Saturday, August 20, 2011

तुम्हे क्या आपत्तियां है

तुम्हे क्या आपत्तियां है
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आज हमतुम है अकेले,बुझ गयी सब बत्तियां है
                    तुम्हे क्या आपत्तियां है
तुम्हे कोई देख ना ले,इसलिए  आती शरम है
तुम्हे ढंग से अँधेरे में,देख भी पाते न हम है
देख तुम्हारी शरम को,चाँद छुप कर झांकता है
रूप का कैसा खजाना,छुपा कर तुमने रखा है
तुम्हे छूने में हवांए,भी सहम ,कतरा रही है
आई जो खुशबू तुम्हारी,चमेली शरमा रही है
छुई मुई की तरह तुम,लाजवंती हो लजीली
तुम्हारा स्पर्श मादक,तुम्हारी नज़रें नशीली
मै मधुप प्रेमी तुम्हारा,चाहता रसपान करना
कभी शरमा कर सिमटना,कभी मुस्का कर झिझकना
हुई बेकल मधु मिलन को,हमारी अनुरक्तियाँ है
                      तुम्हे क्या आपत्तियां है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

अब सुनामी आ गया है

अब सुनामी आ गया है
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देख कर अन्ना का अनशन
और जनता का    प्रदर्शन
 अरे भ्रष्टों,संभल जाओ, अब सुनामी आ गया है
जड़ तुम्हारी हिला देगा
और तुमको मिटा देगा
गिरा देगा महल,जन सैलाब एसा  छा गया  है
बहुत लूटा देश तुमने,
         और जनता को सताया
बढाई मंहगाई इतनी,
           खून के आंसू  रुलाया
जोश जनता में भरा है
भर गया अब तो घड़ा है
पाप-घट के फूट जाने का समय अब आ गया है
अरे भ्रष्टों संभल जाओ,अब सुनामी आ गया है
बहुत घोटाले हुए है,
                  और भ्रष्टाचार  फैला
मिटाने को अब करप्शन ,
                  नहीं अन्ना है अकेला
सभी मिल कर जुट गए है
हाथ लाखों उठ  गए है
बांध टूटा सबे का है, और विप्लव आ गया है
अरे भ्रष्टों संभल जाओ, अब सुनामी आ गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

Friday, August 19, 2011

मै,तुम और चटपटी जिंदगी


 मै,तुम और चटपटी जिंदगी
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मै किचन में काम करती,
               सजन तुम मन में बसे हो
रसमलाई सी मधुर मै,
             चाट से तुम चटपटे  हो
मै स्लिम काजू की कतली,
              और मोतीचूर हो तुम
  मै जलेबी रसभरी और,
             प्रेम रस भरपूर हो तुम
मै पूरी की तरह फूली,
             तुम पंराठे से हो केवल
मै हूँ बिरयानी सुहानी,
             दो मिनिट के तुम हो नूडल
आलू की टिक्की महकती,
              मै हूँ,तुम हो गोलगप्पे
मै करारी सी कचोरी,
             तुम तिकोने से समोसे
तुम हो कटहल से कटीले,
            और मै लौकी लजीली
तुम हो चमचे,मै छुरी हूँ,
              तुम तवा हो मै पतीली
तुम कडाही  की तरह हो,
                और मै प्रेशर कुकर हूँ
गेस का चूल्हा सजन तुम,
               और मै तो लाइटर  हूँ
बाटियों सी स्वाद हूँ मै ,
                 और तड़का दाल हो तुम
मै सजी थाली परोसी,
                 और टपकती लार हो तुम
मै हूँ धनिया तुम पुदीना,
                 बनी चटनी जिंदगी है
प्यार झगडे के मसाले,
                इसलिए ये चटपटी है


मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

,बहनजी -प्रतिक्रिया

अगर बस में कोई लड़का,पास आ बैठे तुम्हारे
बात को आगे बढ़ाने,बहनजी कह कर पुकारे
इस पर तुम्हारी प्रतिक्रिया कैसी होगी?
मेडम जी क्या बतलाओगी ?
    प्रतिक्रिया -1
    ---------------
अजीब बेवकूफ आदमी है,
ना सोचता है,न विचारता है
मुझ जैसी हसीं लड़की को,
बहन जी पुकारता है
       २
मुझे बहनजी कहना मंहगा पड़  जाएगा
 जब टिकिट के लिए कंडक्टर आएगा
उसे पता लग जाएगा,कितनी स्मार्ट है बहना
जब मै कहूँगी भाई साहेब,
टिकिट के पैसे आप दे देना
         ३
बड़ा पागल लगता है
जो हर लड़की को बहन समझता है
           4
पूछूंगी भैया,जरा अपने घर का पता बताना
मुझे राखी बांधने तुम्हारे घर है आना
            ५
ए मिस्टर,क्या पड़ेगा तुमको बताना
लड़की पटाने का ये तरीका है पुराना
             ६
भरी बस में वो मुझे बहनजी कह कर पुकार गया
हाय राम,मेरा सारा सजना धजना बेकार गया
              ७
लल्लू,मुझे बहन जी मत समझना
बहनजी होगी  तेरी अम्मा
                ८
मै स्मार्ट और मॉडर्न लड़की हूँ
क्या मै तुम्हे बहनजी टाईप लगती हूँ?
                ९
बिलकुल बुद्धू है,बहनजी पुकारता है
क्या आजकल एसे भी कोई लाइन मारता है?
               १०
अगर सब लड़कियों को बहनजी बतलायेगा
तो फिर अपनी बीबी किसे बनाएगा?

(अभी तक उपरोक्त प्रतिक्रियाये ही मिली है

 अगर आप की कोई प्रतिक्रिया हो तो लिखें)
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

एक नजरिया यह भी

एक नजरिया यह भी
------------------------
जब से प्रधानमंत्री पद के लिए,राहुल गाँधी का नाम आया है
कुछ बढ़ बोले कोंग्रेसी नेताओं का मन कसमसाया है
कल का छोकरा प्रधान मंत्री बन जाएगा
हमारा सारा किया धरा मिटटी में मिल जाएगा
पी.एम की कुर्सी पर कब से गढ़ाए थे नज़र
पर अब लगता है,सपने जायेंगे बिखर
तभी से उल जलूल हरकतें करने लगे है
जिसके दंश अब कोंग्रेस को भी चुभने लगे है
करने लगे है बयानबाजी बेवकूफी भरी
जिससे रोज रोज होती है कोंग्रेस की किरकिरी
बहुत ही हो रही है इसकी छीछालेदर
क्या ये सब हो रहा है जान बूझ कर
अपने ही अपनों पर भीतरी घात कर रहे है
मदम जी,क्या आप ये सब समझ रहे है?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बडबोला

बडबोला
----------
बड़े मुंह से बड़ी बातें,चेहरा था तमतमाया
कुटिल सब बल लगा कर भी,झुका अन्ना को न पाया
सत्य आग्रह टूट जाए,जोर था पूरा लगाया
देख जनता का समर्थन,वो बिचारा बौखलाया
बड़ा बढ़ बोला बहुत है,हम सभी ये जानते है
कौन सत्ता का मुखौटा है सभी पहचानते है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

विदेशी हाथ

       विदेशी हाथ
      ----------------
देश में होने वाली हर गड़बड़ी का,
ठीकरा ,विदेशों के माथे फोड़ने वाले,
एक नेता से हमने पूछा,
आपकी पत्नी का पेट फूल रहा है,
क्या बात है?
उनने बिना सोचे समझे,
अपने चिरपरिचत अंदाज में कहा,
इसमें भी विदेशी हाथ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम को अब बदलाव चाहिए

हमको अब बदलाव चाहिए
काबिल और इमानदारों का,
करना हमें चुनाव चाहिए
लूटपाट के इस गिरोह का,
अब होना बिखराव चाहिए
रिश्वतखोरी और करप्शन,
में अब बस ठहराव चाहिए
भारत धन का स्विस बेंकों में,
होना बंद रिसाव चाहिए
नेताओं में देशप्रेम का,
जज्बा और लगाव चाहिए
मंहगाई की धूप प्रबल है,
हमको ठंडी छाँव चाहिए
आता,तेल,दाल,चांवल के,
होना सस्ते भाव चाहिए
दीन ,दलित,दुखिया जनता को ,
राहत के प्रस्ताव चाहिए
मिलजुल हल हो सभी समस्या,
अब ना ये टकराव चाहिए
हम को अब बदलाव चाहिए

मदन मोहन बहेती'घोटू'

क्रांति बीज

      क्रांति बीज
       ------------
मुझे अपने पोते को देना था  उपहार
और कुछ खरीदने के लिए,गया मै बाज़ार
दुकानदार से पूछा,बच्चों के लिए कोई उपहार दिखलाइये
दुकानदार बोला कोई पुस्तक ले जाइये
क्योंकि पुस्तक ज्ञान का भण्डार होती है
सबसे अच्छा उपहार होती है
या फिर कोई खिलौना जैसे उड़ने वाला हेलिकोफ्टर
या रोबोट जो चलता है अपने पैरों पर
या फिर आप ले लीजिये चोकलेट
सभी बच्चों को अच्छी लगती है ये भेंट
तभी कुछ एसा दिखा,जिसे मैंने खरीद लिया,
बिना कुछ ज्यादा सोचे बिचारे
वह था एक तिरंगा झंडा,
और एक सफ़ेद टोपी,
जिस पर लिखा था 'मी हजारे'
मेरा उपहार पाकर मेरा पोता अति प्रसन्न है
और घर में गूँज रहा,
जय हिंद और वन्देमातरम् है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, August 18, 2011

अन्ना हजारे

अन्ना हजारे
--------------
       १
शांति दूत है,ये सपूत है,भारत माँ का बेटा अन्ना
राज घाट पर,हरी घांस पर,देव दूत सा बैठा अन्ना
            इतना साथ दिया जनता ने
            घुटने टेक दिए सत्ता  ने
भ्रष्टाचार मिटाने को अब,सत्याग्रह पर बैठा अन्ना
           2
अग्नि में इतनी शीतलता,पहले कभी नहीं देखी थी
एक चेतन में इतनी दृढ़ता,पहले  कभी नहीं देखी थी
उजले कपडे वालों की,कितनी काली करतूतें देखी,
श्वेत वसन में ये निर्मलता,पहले कभी नहीं देखी थी
मौन,शांत,गंभीर,अडिग और जो हरदम रहता चोकन्ना
है व्यक्तित्व करिश्माई जो, हम उसको कहते है अन्ना

मदन मोहन बहेती'घोटू'

Wednesday, August 17, 2011

टुकड़े टुकड़े जीवन

टुकड़े टुकड़े जीवन
--------------------
बंटा हुआ है ये जीवन टुकड़ों टुकड़ों में
हमें नींद भी आती है टुकड़ों टुकड़ों में
कुछ टुकड़े झपकी के ,कुछ टुकड़े खर्राटे
और कुछ टुकड़े,करवट बदल बदल कर काटे
कुछ टुकड़े खुशियों के, कुछ टुकड़े है गम के
कुछ टुकड़े बचपन के, कुछ टुकड़े यौवन के
प्यार हमारा बंटा हुआ है टुकड़े टुकड़े
कुछ बच्चों को,जीवनसाथी को कुछ टुकड़े
अगर बचा,माँ बाप जरा सा टुकड़ा पाते
हालांकि वो बच्चों पर जी जान लुटाते
देते डाल सिर्फ रोटी के बस दो टुकड़े
दिल के टुकड़े,कर देते है  दिल के  टुकड़े
यूं ही बुढ़ापा कटता है टुकड़ों टुकड़ों में
आंसू बन, बहते दुखड़े,टुकड़ों टुकड़ों में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

विद्रोह के स्वर

विद्रोह के स्वर
----------------
स्वर विद्रोह के अब,उभरने लगे है
जरा सी हो आहट, वो डरने लगे है 
करे कोई इनकी,जरा भी खिलाफत,
शिकंजा उसी पर, ये कसने लगे है
तारीफ़ में खुद की ,गाते कसीदे,
बुराई सुनी तो,भड़कने लगे है
 करे कोई अनशन या सत्याग्रही हो,
डंडे उसी पर बरसने  लगे है
हुई बुद्धि विपरीत,विनाश काले,
खुद ही जाल में अपने फंसने लगे है
किये झूंठे वादे और सपने दिखाए,
हकीकत ये 'वोटर',समझने लगे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

डुगडुगी राजा

डुगडुगी  राजा
-------------
जब से लोगों ने दिखाए थे काले झंडे
तब से कुछ दिन तक पड़े थे ये ठन्डे
पर टी वी पर आने की लालसा इतनी प्रबल है
करने लग गए फिर से बातें अनर्गल  है
जब भी कोई विद्रोह का स्वर उठाता है
तो इनका कुनबा ,उसकी चार पुश्तों की,
जन्मपत्री खंगालने में जुट जाता है
काजल के टीके को भी,काला दाग  कह कर के,
डुगडुगी बजायेंगे
अपने गिरेबान में तो ,झाँक कर के तो देखे,
खुद को पूरा काला पायेगे
वोह तो गनीमत है की आजकल,
हाय कमांड ने लगा दिया प्रतिबन्ध है
और इनकी जुबान बंद है
वर्ना ये फिर बकवास करते कुछ ऐसे
'अन्ना के नाम में ही अन्न है,
फिर वो भूख हड़ताल पर कैसे '?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



Tuesday, August 16, 2011

बूढा होता प्रजातंत्र

बूढा होता प्रजातंत्र
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चौसठ साल का प्रजातंत्र
और साठ का  जनतंत्र
दोनों की ही उमर सठिया गयी है
और सहारे के लिए,हाथों में,लाठियां आ गयी है
मगर कुछ नेताओं ने,
सत्ता को बना लिया अपनी बपौती है
इसलिए लाठी,जो सहारे के लिए होती है
उसका उपयोग,हथियारों की तरह करवाने लगे है
और विरोधियों पर लाठियां भंजवाने लगे है
विद्रोह की आहट से भी इतना डरते है
की रात के दो बजे,सोती हुई महिलाओं पर,
लाठियां चलवाने लगते है
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे है
कुर्सी पर ही चिपक कर ,रहने के मंसूबें है
पर बूढ़े है,इसलिए आँखे कमजोर हो गयी लगती है
इसलिए विद्रोह की आग भी नहीं दिखती है
सत्ता के मद में पगलाये हुए है
शतुरमुर्ग की तरह,रेत में मुंह छुपाये हुए है
जनता की लाठी जब चलेगी
तो वो इनको उखाड़ फेंकेगी
फिर भी ये लाठियां चला रहे है
सत्ता न छिन जाये,घबरा रहें है
जनता त्रस्त है
पर अच्छे दिनों की आशा में आश्वस्त है
आज पंद्रह अगस्त है
  
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

हम हजारे के समर्थक

हम हजारे के समर्थक
--------------------------
हम हजारे के समर्थक,और हम जैसे हजारों
छेड़ होगा आसमां में,  एक पत्थर तो उछालो
         हुई मद में चूर सत्ता
         चला सत्याग्रही जत्था
ना रुकेंगे,ना झुकेंगे,भले लाठी हमें मारो
हम हजारे के समर्थक,और हम जैसे हजारों
          भले लगते अल्प है हम
           मगर दृढ़ संकल्प है हम
सरफरोशी की तमन्ना,जेल बार देंगे  हजारों
हम हजारे के समर्थक,और हम जैसे हजारों
           और अब विद्रोह के स्वर
           हो रहे है मुखर,प्रतिपल
दमन के दम पर न ये,सैलाब थम पायेगा यारों
हम हजारे के समर्थक,और हम जैसे हजारों

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, August 15, 2011

कौन हो तुम ?

     कौन हो तुम
    --------------
देख तुमको मै चमत्कृत
हुए दिल के तार झंकृत
रूप सुन्दर परी सा धर
आई अम्बर से उतर कर
चन्द्र सा मुख,तुम सजीली
तुम्हारी चितवन नशीली
भंगिमाएं मन लुभाती
तुम सुरा सी मदमदाती
मोहिनी , सुन्दर बड़ी हो
स्वर्ण की जैसे छड़ी हो
देख कर सौन्दर्य प्यारा
हुआ पागल मन हमारा
रूप का तुम हो खजाना
ह्रदय चाहे तुम्हे पाना
खोल कर सब द्वार मन के
तुम्हारे संग मधुमिलन के
स्वप्न प्यारे ,सजाता ,मै
क्योंकि लगता विधाता ने,
तुम्हे फुर्सत से गढा है
निखर कर यौवन चढ़ा है
और ना अब तुम सताओ
कौन हो तुम,अब बताओ ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

भ्रम

     भ्रम
     ------
भ्रमर  को भ्रम था कली को प्यार उससे,
                   मगर कलिका सोचती थी भ्रमर काला
जिंदगी में मिले साथी कोई सुन्दर,
                   चाह थी यह और भ्रमर को त्याग डाला
और पवन संग रही भिरती,डोलती, वह,
                     मिलन के सपने सजाये, बड़ी आतुर
और आवारा पवन सब खुशबू चुरा कर,
                     मौज लेकर जवानी की हो गया फुर
और अब वह सोच कर के यह दुखी है,
                      पवन से तो भ्रमर ही ज्यादा भला था
दिये उसने कई चुम्बन के मधुर क्षण,
                     भले काला और थोडा मनचला था
 भ्रमर भ्रम में था की वो कलिका भ्रमित थी,
                     चाह में रंग रूप के उलझी  रही वो
क्योंकि काला था रसिक प्रेमी भ्रमर वो,

                       त्याग कर के अब बहुत पछता रही वो
देख कर रंग रूप केवल बाहरी तुम,
                        अहम निर्णय जिन्दगी  के नहीं लेना
कई प्रेमी मिलेंगे,रस चूस लेंगे,
                         मगर सच्चे प्यार को ठुकरा न देना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


  

Saturday, August 13, 2011

हम पुलिस है

हम पुलिस है
---------------
जब थे वो सत्ता में
हम थे उनकी सुरक्षा में
उन्हें सेल्यूट ठोकते थे
उनके इशारों पर डोलते थे
पर जब परिस्तिथियाँ बदली
सत्ता उनके हाथों से निकली
और वो विपक्ष में है
पर हम तो सत्ता के पक्ष में है
और जब वो करते है प्रदर्शन
सत्ताधारियो के इशारे पर हम
उन पर लाठियां भांजते है
जब की हम जानते है
भविष्य के बारे में क्या कह सकते है
वो कल फिर सत्ता में आ सकते है
पर हमारी तो ये ही मुसीबत है
कि हम कुर्सी के सेवक है
आज जिन्हें लाठी मार कर पड़ता है रोकना
कल उन्ही को पड़ सकता है सलाम ठोकना
कई बार सत्ता के इशारे पर
अपने ज़मीर के भी विरुद्ध जाकर
सभी मर्यादाओं को,अलग ताक पर रख कर
सो रही औरते और संतों पर
रात के दो बजे भी लाठियां मारी है
क्या करें नौकरी की ये लाचारी है
कभी अपने आप पर भी ये मन कुढ़ता है
नौकरी में क्या क्या करना पड़ता है
अपनी ही हरकतों से आ गए अजीज है
 हमारे मन को कचोटती यही टीस है
जी हाँ ,हम पुलिस  है

मदन मोहन बहेती 'घोटू' 

Friday, August 12, 2011

बदलाव

  बदलाव
  ---------
          देख कर के परिस्तिथियाँ
           ग्रह और नक्षत्र, तिथियाँ
हवाओं का रुख समझ कर,सोच पड़ता है बदलना
सीख अब मैंने लिया है,समय के अनुसार चलना
 जिंदगी भर जूझता ही रहा दुनिया के चलन से
बाँध कर खुद को रखा था,संस्कारों की कसम से
रहूँ पथ पर अडिग अपने,बहुत चाहा,बहुत रोका
मगर इस जीवन सफ़र में,मिला मुझको बहुत धोका
          स्वजनों ने भी न छोड़ा
          बहुत तोडा और मरोड़ा
हार कर के पड़ा मुझको,वक्त  के अनुसार ढलना
सीख अब मैंने लिया है,समय के अनुसार चलना
ये नहीं है की हमेशा  ही मिली है हार मुझको
अगर सों दुश्मन हुए तो,मिला दस का प्यार मुझको
विफलता के दंश झेले, सफलता भी पास आयी
बहुत से तूफ़ान आये, नाव मेरी डगमगायी
            और जालिम जमाने की
            नाव मेरी डुबाने   की
बहुत कोशिश की मगर था,भंवर से मुझको निकलना
सीख अब मैंने लिया है,समय के अनुसार  चलना
हर तरफ बस है प्रदूषण,गन्दगी  सब ओर  फैली
सिर्फ गंगा ही नहीं अब ,हो रही  हर नदी मैली
स्वयं राजा ,सिपाही तक,लूट में हर एक लगा है
भले अपने या पराये, दे रहे सारे दगा  है
              लडूं इनसे ,बहुत चाहा
              बहुत तडफा,छटपटाया
मुश्किलें ही मुश्किलें थी,पड़ा गिर गिर के संभालना
सीख अब मैंने लिया है,समय के अनुसार चलना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


बुढ़ापे की थाली

बुढ़ापे की थाली
------------------
आज थाली में कड़क सब,मुलायम कोई नहीं है
खांखरे ही खांखरे है, थेपला  कोई नहीं है
मुंह छालों से भरा है,दांत भी सब हिल रहे है,
खा सकूँ मै तृप्त हो कर,कोई रसगुल्ला नहीं है
चब नहीं पाएगी मुझसे,है कड़क ये दाल बाटी,
आज भोजन में परोसा,चूरमा  कोई नहीं है
लुभा तो मुझको रहे है,करारे घी के परांठे,
पर नहीं खा पाउँगा मै, क्या नरम दलिया नहीं है
समोसा सुन्दर बहुत है,कुरमुरी सी है पकोड़ी,
पिघल मुंह में जा पिघलती,कुल्फियां कोई नहीं है
स्वाद के थे  दीवाने अब,देख कर ही तृप्त होते,
बुढ़ापे में सिवा इसके,रास्ता कोई नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, August 11, 2011

बीज हूँ मै

बीज हूँ मै
------------
अंकुरित,फिर पल्लवित फिर फलित होती चीज हूँ मै
                                                               बीज हूँ मै
हूँ सृजन का मूल मै ही ,विकसता हूँ मै प्रति पल
जगत का ये चक्र सारा,चलित है बस मुझी के बल
वृक्ष हूँ मै,पत्तियां हूँ,मंजरी हूँ और फल भी
मै कली हूँ,पुष्प भी हूँ,प्रफुल्लित हूँ आज,कल भी
मनुज हो चाहे पशु हो,सभी का उद्भव मुझी से
पंछियों की चहचाहट और मधुर कलरव  मुझी से
धरा ने जब धरा मुझको,तो हुआ प्रजनन मुझी से
आज सब हलचल जगत की,चल अचल जीवन मुझीसे
 सूक्ष्म  हूँ मै अति लघु पर,दीर्घता मुझमे छुपी है
नज़र आता एक हूँ पर बहुलता मुझमे छुपी है
मै अणु हूँ,समाहित मुझमे अणु विस्फोट शक्ति
बीज रूपित सुरक्षित थी,प्रलय के उपरान्त सृष्टि
आज विकसित जगत के प्रासाद की दहलीज हूँ मै
                                                    बीज हूँ मै

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, August 10, 2011

जीवन दर्शन

जीवन दर्शन
---------------
मै का मय है बड़ा नशीला,
             सर पर चढ़ बोला करता है
अहंकार का मूल यही है,
               सबको बढबोला करता है
होता जब कोई मदांध है,
                 तो आने लगती सड़ांध है
पूर्ण विकस कर जब इतराता,
                  होने लगता क्षीण चाँद है
जब तक पानी बंधा बाँध से,
                  बिजली और उर्जा देता है
बाँध तोड़ बहता गरूर से,
                  तहस नहस सब कर देता है
,कितने ही बन जाओ बड़े तुम,
                   मर्यादा में रहना सीखो
अहंकार को मत छूने दो,
                    मंथर गति से बहना सीखो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

घर का खाना

घर का खाना
----------------
पकवानों को देख बहुत मन ललचाता है
थाली में पर घर का खाना ही आता है
अच्छा लगने लगता जो खाते रोजाना
सबको अच्छा लगता अपने घर का खाना
लेकिन कभी कभी मन हो जाता है बेकाबू
जब पड़ोस के चौके से आती है खुशबू
कभी कभी होटल जाने को भी जी करता
पेट मगर घर की रोटी से ही है भरता
वैसे ही, सूखी लकड़ी हो या हो हथिनी
सबको अच्छी लगती अपनी अपनी पत्नी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बनो हजारे

बनो हजारे
-------------
तुमने ये संसार रचा है,सच बतलाना मुझको भगवन
एक अनार में इतने दाने, कैसे सजा सजा भरते तुम
कितने मीठे और रसीले,एक एक मोती से सुन्दर
मिल कर गले एक दूजे से,पास पास रहते है अन्दर
कैसे गेदे के पुष्पों में ,कई पंखुडियां खुशबू वाली
एक दूजे से बंध कर रहती,और महकती है मतवाली
क्यों गुलाब की कई पंखुडियां,एक साथ मिल कर खिलती है
कितनी सुन्दर शोभित होती,और कितनी खुशबू मिलती है
ये सब रचनाएँ तुम्हारी,रूप संगठित जिनका निखरा
मानव भी तुम्हारी रचना,फिर क्यों रहता बिखरा,बिखरा?
क्यों ना वो अनार दानो सा,एक दूजे के संग रह पाता
बाँध हजारों पंखुड़ी संग में,खिला हजारे सा बन जाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, August 8, 2011

विरहन की रात

विरहन की रात
------------------
व्योम से आई उतर कर चांदनी,
दिया मुझको गुदगुदी करके जगा
नींद उचटी इस तरह आई नहीं,
करवटें लेती रही मै, सकपका
और उसपर बादलों से झांक कर,
चाँद भी शैतान सा तकता रहा
इधर मै थी शरम से पानी हुई,
उधर वह निर्लज्ज सा हँसता रहा
और उस पर निगोड़ी पागल हवा,
उड़ा आँचल को, सताती ही रही 
इन सभी की छेड़खानी रात भर,
याद तुम्हारी दिलाती ही रही
छटपटाती ,कसमसाती ही रही,
सोच करके कई बातें अटपटी
क्या बताऊँ तुम्हे प्रियतम तुम बिना,
रात मेरी विरह की कैसी कटी

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Sunday, August 7, 2011

दास्ताने लालू

दास्ताने लालू
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उनकी बकवास भी लोगों को भली लगती थी
उनकी  भैंसें भी  हरे नोट चरा  करती  थी
भीड़ रहती थी लगी,घर पर सदा भक्तों की
ये  तो है बात रंगीले,   सुनहरे वक्तों  की
बोलती रहती थी तूती बिहार में जिनकी
बड़ी बिगाड़ दी हालत है हार ने इनकी
नाव जो डूबी,संग छोड़ा साथ वालों ने
आया जो वक्त बुरा, छोड़ दिया सालों ने
अब तो तन्हाई में बस वक्त गुजारा करते
गए वो दिन जब मियां,फाख्ता मारा करते
खाते है बैठके बीबी के संग लिट्टी,आलू
सबकी होती है यही नियति,है हम सब लालू




मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

पूरण पूरी

पूरण पूरी
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पूरी होती तो पूरी है,फिर भी मगर अधूरी है
क्योंकि दिल होता है खाली,दो परतों में दूरी है
पर जब भर जाता मिठास का,पूरण इस खाली दिल में,
तब होती सम्पूर्ण और कहलाती पूरण पूरी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मै तो नीर भरी बदली हूँ

मै तो नीर भरी बदली हूँ
सचमुच मै कितनी पगली हूँ
मदद ताप की ले सूरज से
नीर चुराती मै सागर से
और छुपा अपने आँचल में
भटका करती इधर उधर मै
क्योंकि सिपाही नीलाम्बर के
मुझे  देखते चोरी  करते
और हवायें पीछे पड़ती
बिजली की तलवार कड़कती
और हवाओं के दबाब में
सभी चुराया हुआ माल मै
धरती पर बरसा देती हूँ
पाक साफ़ दामन करती हूँ
नीर चुराया मेरा सब पर
जब गिरता सूखी धरती पर
लोगों के चेहरे हर्षाते
नाले ,नदियाँ सब भर जाते
हरी भरी धरती  मुस्काती
खेतों में फसलें लहराती
मेरा मन हो जाता विव्हल
यदि यह है चोरी का प्रतिफल
चोरी करना  भी स्वीकार्य है
सचमुच ये तो पुण्य कार्य है
इसीलिये मै ना डरती हूँ
बार बार चोरी करती हूँ
ना बदलूंगी,ना बदली हूँ
मै तो नीर भरी  बदली हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, August 6, 2011

केग रिपोर्ट

राजा गए ,गए कलमाडी,जेल सभी को हो ली
अब तिहार में जा पहुंचेगी, जाने किस की डोली
          कामनवेल्थ गेम का खेला
          सबने खाया,खुल कर खेला
जिसने जब भी मौका पाया,भरली अपनी झोली
अब तिहार में जा पहुंचेगी, जाने किसकी डोली
        खर्च एक के बदले दस कर
         खूब देश को लूटा जी  भर
 लेकिन केग रिपोर्ट ने आकर,पोल सभी की खोली
अब तिहार में जा पहुंचेगी,जाने किसकी  डोली
        दाड़ी खुजा कहे मनमोहन
        पाक साफ़ है मेरा दामन
सब  आदेश मिले ऊपर से,मैंने बस हाँ  बोली
अब तिहार में जा पहुंचेगी,जाने किसकी डोली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
                   

सौवां शतक बनाओगे कब?

सचिन जोश में आओगे कब?
सौवाँ  शतक बनाओगे  कब?
 आस लगाये बैठे है हम,
मन सब का हर्षाओगे कब?
एजबेस्टन  में घन न बरसे,
बस बरसे तो रन ही बरसे
चौके बरसे,छक्के बरसे,
वो विकेट लेने को तरसे
ये जलवा दिखलाओगे  कब?
सौवां शतक बनाओगे कब?
ये मत भूलो,अंग्रेजों ने,
हमपर राज किया बरसों तक
बहुत सताया,इसका बदला,
बल्ले के बल से ले लो अब
कीर्ति ध्वजा फहराओगे कब?
सौवां शतक बनाओगे  कब?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Friday, August 5, 2011

काले रंग की बात निराली होती है

भरी नीर से बदली काली होती है
काले रंग की बात निराली होती है
रूपगर्विता होती है गोरी बीबी,
सीधीसादी काली घरवाली होती है
काले बालों से नारी मुख की शोभा  है,
सुन्दर आँखें काली कजरारी होती है
गोरे मुख पर काला तिल शोभा देता,
रोम रोम काली रुआंली  होती है
धर  अवतार धरा पर जब प्रभु आते है,
छवि सलोनी श्यामल काली होती है
काले कान्हा,कई गोपियाँ दीवानी,
कृष्ण दीवानी राधा प्यारी होती है
मजबूती का द्योतक है काला लोहा,
सदा अडिग चट्टानें काली होती है
गहरा जल काला गंभीर सदा दिखता,
काली मूंछे भी मर्दोंवाली होती है
करती है बरसात लक्ष्मी जब धन की,
काली मावस रात दिवाली होती है
काला रंग उष्मा का शोषण करता है,
काले की तासीर निराली होती है
उजले दिन में काम काम आराम नहीं,
चैन दिलाती रातें काली होती है
बाद रात के भोर उजाली होती है
काले रंग की बात निराली होती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, August 4, 2011

ये सरकार अगर गिरती है

ये सरकार अगर गिरती है
गिरना ही इसकी नियति है
कुछ मंत्री थे,गिरे हुए है
अब मुश्किल में घिरे हुए है
कुछ आरोपों के घेरे में
साख बचाने के फेरे में
कुछ सत्ता के मद में अंधे
कुछ के गिरेबान है गंदे
कुछ गरूर से होकर पागल
दिखा रहे है अपना सब बल
कोई खिलाडी है पहुंचे,पर
खेती को क्रिकेट समझ कर
जनता के संग खेल रहे है
महंगाई हम झेल रहे है
जनता त्रस्त,भ्रष्ट है नेता
सेवक नहीं,बने विक्रेता
जनता करती त्राहि,त्राहि
सुरसा सी बढती मंहगाई
उधर बजाते अपना बाजा
भोंपू बने डुगडुगी राजा
इस भ्रष्टाचारी दलदल के
छींटे पड़े हुए है सबपे
इनके नेता मगर,मौन है
जनता की सुन रहा कौन है
बातें करते गोलमोल है
प्रजातंत्र का ये मखौल है
कोंग्रेस का ग्रेस गया सब
सबको है कुसी से मतलब
लेकिन अब जनता जागी है
लगे गूंजने स्वर बागी है
जनता जान गयी गलती है
ये सरकार अगर गिरती है
गिरना ही इसकी नियति है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैंने तुमसे जो भी माँगा,

मैंने तुमसे जो भी माँगा,
तुमने दूना कर दे डाला
अपनेपन से और समर्पण,
से मेरा संसार सवांरा
मैंने माँगा तुसे चुम्बन
तुमने मुझे दिया आलिंगन
मैंने पकड़ी एक बांह थी,
तुमने बाहुपाश दे डाला
मैंने चाहा प्यार मिलन का
तुमने देकर सुख जीवन का
फूल खिला मेरे आँगन को,
तुमने खुशबू से भर डाला
जब से आई परेशानियाँ
आगे बढ़ कर साथ है दिया
बन कर सच्चा जीवनसाथी,
गिरते गिरते मुझे  संभाला
मैंने तुमसे जो भी माँगा,
तुमने दूना  कर दे डाला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मेरी प्यारी प्यारी बेटी

मेरी प्यारी प्यारी बेटी
मुझको सदा प्यार है देती
जबसे आई है जीवन में
फूल खिले मेरे आँगन में
चहका  करती थी घर भर में
सबको दोस्त बनाती पल में
मेरे सुख में सबसे आगे
मरे दुःख में सबसे आगे
खुश होती,हंसती,मुस्काती
दुःख होता आंसू ढलकाती
चेहरा आइना सा बन के
सारे भाव दिखाता मन के
मिलनसार,प्यारी,निश्छल है
जीवन को जीती हर पल है
उसके एक नहीं,दो दो घर
एक ससुराल,एक है पीहर
दो दो मम्मी,दो दो पापा
अंतर रखती नहीं जरासा
तालमेल सबसे बैठा कर
दोनों घर में खुशियाँ दी भर
बेटे बदले,करके शादी
लेकिन बदल न पाती
हुई परायी,पर अपनापन
महकाया है मेरा जीवन
मेरे जीवन की उपलब्धी
मेरी प्यारी प्यारी बेटी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

आज घिरे है फिर से बादल,

आज घिरे है फिर से बादल,शायद बारिश हो सकती है
एसा जब जब भी होता है,आशाएं मन में जगती है
लेकिन कितनी बार हवाएं,भटका देती है बादल को,
अपने साथ बहा ले जाती,कुछ दीवानी सी  लगती है
श्यामल श्यामल,मनहर बादल,जब छाते है आसमान में,
कब बरसेंगे,प्यास बुझाने,आस लगा,धरती  तकती है
लेकिन बादल आवारा से,थोडा बरस,दूर जा भगते,
कुछ बूंदों से,बरस बरस की,लेकिन प्यास नहीं बुझती है
फिर से आयेंगे,फिर फिर के,और बरसेंगे फिर जी भर के,
पिया मिलन की आस संजोये,धरती विरहन सी लगती है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

शाख और पत्ते

शाख और पत्ते
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पत्ते रहते अगर शाख के संग जुड़े है
तेज धूप हो,फिर  भी रहते हरे भरे है
मगर शाख से टूट,अलग हो यदि गिर जाते
तो कुम्हलाते और सूख अस्तित्व गवांते
सदा शाख संग जुड़ रहने में हित तुम्हारा
क्योकि वृक्ष की नस नस में है जीवनधारा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, August 1, 2011

,गुठलियाँ

सफलता है आम का रस ,गुठलियाँ है जूझना
आम का असली मज़ा है,गुठलियों को चूसना
  घोटू