http://blogsmanch.blogspot.com/" target="_blank"> (ब्लॉगों का संकलक)" width="160" border="0" height="60" src="http://i1084.photobucket.com/albums/j413/mayankaircel/02.jpg" />
Thursday, December 14, 2017
Tuesday, December 12, 2017
Friday, December 8, 2017
MY DEAR BELOVED
Thursday, December 7, 2017
Friday, November 24, 2017
Tuesday, November 21, 2017
Monday, November 13, 2017
Monday, November 6, 2017
Wednesday, November 1, 2017
Saturday, October 28, 2017
Tuesday, October 24, 2017
Friday, October 20, 2017
छोड़ती खुशियों का फव्वारा तुम अनारों सा,,
हंसती तो फूलझड़ी जैसे फूल ज्यों झरते
हमने बीबी से कहा लगती तुम पटाखा हो ,
सामने आती हमारे ,जो सज संवर कर के
हमने तारीफ़ की,वो फट पडी पटाखे सी,
लगी कहने पटाखा मैं नहीं ,तुम हो डीयर
मेरे हलके से इशारे पे सारे रात और दिन,
काटते रहते हो,चकरी की तरह,तुम चक्कर
भरे बारूद से रहते हो ,झट से फट पड़ते,
ज़रा सी छूती मेरे प्यार की जो चिनगारी
लगा के आग,हमें छोड़, दूर भाग गयी,
हुई हालत हमारी ,वो ही पटाखे वाली
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
Saturday, October 14, 2017
Thursday, October 12, 2017
Wednesday, October 11, 2017
Sunday, October 8, 2017
Wednesday, September 27, 2017
Tuesday, September 26, 2017
Wednesday, September 20, 2017
Tuesday, September 19, 2017
Monday, September 11, 2017
Saturday, September 9, 2017
Thursday, September 7, 2017
Wednesday, September 6, 2017
Tuesday, September 5, 2017
Monday, September 4, 2017
बदलते रहते है मौसम,कभी गर्मी, कभी पतझड़ ,
किसी का भी समय हरदम ,एक जैसा नहीं रहता
कभी किसलय बने पत्ता ,साथ लहराता हवा के ,
सूख जाता कभी झड़ कर ,जुदाई का दर्द सहता
झड़े पतझड़ में जो पत्ते,पड़े देखो जो जमीं पर,
भूल कर भी नहीं चलना कभी भी उनको कुचल तुम
क्योंकि इन पत्तों ने ही तो,तुम्हे शीतल छाँव दी थी,
धूप की जब जब तपन से,परेशां थे हुए जल तुम
समय का ही फेर है ये,डाल से टूटे पड़े ये ,
नहीं तो एक दिन निराली,कभी इनकी शान रहती
नहीं पत्ता कोई हरदम ,डाल से रहता चिपक कर ,
सूख झड़ जाना हवा से ,है हरेक पत्ते की नियति
तुम्हारे माता पिता भी,इन्ही पत्तों की तरह है ,
बचाया हर मुसीबत से,हमेशा थी छाँव जिनकी
हो गए जो आज बूढ़े ,उम्र पतझड़ में गए झड़ ,
कर अनादर,कुचलना मत ,भावनाएं कभी इनकी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
badlte mausm
किसी का भी समय हरदम ,एक जैसा नहीं रहता
कभी किसलय बने पत्ता ,साथ लहराता हवा के ,
सूख जाता कभी झड़ कर ,जुदाई का दर्द सहता
झड़े पतझड़ में जो पत्ते,पड़े देखो जो जमीं पर,
भूल कर भी नहीं चलना कभी भी उनको कुचल तुम
क्योंकि इन पत्तों ने ही तो,तुम्हे शीतल छाँव दी थी,
धूप की जब जब तपन से,परेशां थे हुए जल तुम
समय का ही फेर है ये,डाल से टूटे पड़े ये ,
नहीं तो एक दिन निराली,कभी इनकी शान रहती
नहीं पत्ता कोई हरदम ,डाल से रहता चिपक कर ,
सूख झड़ जाना हवा से ,है हरेक पत्ते की नियति
तुम्हारे माता पिता भी,इन्ही पत्तों की तरह है ,
बचाया हर मुसीबत से,हमेशा थी छाँव जिनकी
हो गए जो आज बूढ़े ,उम्र पतझड़ में गए झड़ ,
कर अनादर,कुचलना मत ,भावनाएं कभी इनकी