Tuesday, December 30, 2014

मैं हूँ पानी

              मैं हूँ पानी

मैं औरों की प्यास बुझाता ,पर मन में तृष्णा अनजानी
                                                        मैं  हूँ  पानी
मधुर मिलन की आस संजोये , मैं कल कल कर ,बहता जाता
पर्वत , जंगल और चट्टानों से ,टकरा   निज    राह      बनाता
तेज प्रवाह ,कभी मंथर गति ,कभी सहम   कर धीरे  धीरे
कभी बाढ़ बन  उमड़ा  करता ,कभी बंधा मर्यादा   तीरे
कभी कूप में रहता सिमटा ,लहराता बन कभी सरोवर
मुझमे खारापन आ जाता ,जब बन जाता ,बड़ा समंदर
उड़ता बादल के पंखों पर,आस संजोये ,मधुर मिलन की
और फिर बरस बरस जाता हूँ,रिमझिम बूंदों में सावन की
तुम जब मिलती ,बाँह  पसारे ,मेरा मन प्रमुदित हो जाता
तुम शीतल प्रतिक्रिया देती,तो मैं बर्फ  बना जम जाता
कभी बहुत ऊष्मा तुम्हारी ,मुझे उड़ाती ,वाष्प बना कर
और विरह पीड़ा तड़फ़ाती ,अश्रुजल सा ,मुझे बहा कर
मैं तुम्हारा पागल प्रेमी ,या फिर प्यार भरी   नादानी
                                                     मैं  हूँ  पानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर्दी की दोपहरी

              सर्दी की दोपहरी

बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
          आओ चल कर  छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें  हम
और मूँज की खटिया पर हम,बिछा पुरानी  सतरंजी ,
               बैठें पाँव पसार प्रेम से ,छील मूंगफली  खाएं हम
लगा मसाला मूली खायें कुछ  अमरुद  इलाहाबादी ,
          थोड़ी गज़क रेवड़ी खालें ,कुछ प्यारी पट्टी तिल की
 बहुत दिनों के बाद खुले मे ,तन्हाई में बैठेंगे ,
आज न शिकवे और शिकायत ,बात सिर्फ होगी दिल की
बड़ा सर्द मौसम है मेरे तन पर बहुत खराश बड़ी ,
           ज़रा पीठ पर मेरे मालिश करना,तैल लगा देना
बदले में मैं ,मटर तुम्हारे ,सब छिलवा दूंगा लेकिन,
   गरम चाय के साथ पकोड़े ,मुझको गरम खिला देना
बहुत खुशनुमा है ये मौसम ,खुशियां आज बरसने दो ,
         मधुर रूप की धूप तुम्हारी में खुशियां सरसाएँ हम
बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
       आओ चल कर छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू '  

Friday, December 26, 2014

बीबी का मोटापा

         बीबी का मोटापा 
                     १
पत्नीजी पर ज़रा भी ,अगर मांस चढ़ जाय
तो पतिजी जब तब उसे,मोटी  कहे,चिढ़ाय
मोटी कहे चिढ़ाय ,दोष पत्नी का क्या है
शादी के ही बाद इस तरह बदन भरा है
बदन छरहरा था ,फूला पति के घर आकर
मोटा पति ने किया ,प्यार का डोज़ पिलाकर
                       २
पतिजी से पत्नी कहे ,दिखला थोड़ा क्रोध
खुद को भी देखो पिया,निकल आयी है तोंद
निकल आयी है तोंद ,हो रहे तुम भी भारी
थोड़ी सी मेहनत से  फूले  सांस तुम्हारी
'घोटू'बदन सासजी का भी क्या कुछ कम है
अपनी माँ को मोटा बोलो ,यदि जो दम है

घोटू 

मै केजरीवाल आया हूँ

      मै  केजरीवाल आया हूँ

सुनाने हाल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
नहीं धरने पे बैठूंगा,
छोड़ हड़ताल  आया हूँ
आदमी आम जो हूँ ,
आप का मैं चाहनेवाला ,
विदेशों में ,डिनर करवा,
बहुत सा माल लाया हूँ 
ढके ना कान मफलर से ,
सभी की अब सुनूंगा मैं ,
बताने आंकड़ों का ढेर सा,
मैं  जाल लाया हूँ
पड गयी थी 'जरी'काली,
जब एसिड टेस्ट से गुजरी ,
मगर अबके ,खरे सोने का ,
असली माल लाया हूँ
पिटारे में मेरे अबके ,
है वादे भी,इरादे भी,
पुराना राग ना अब मैं ,
सुरीली ताल लाया हूँ
समय के साथ मैंने भी ,
बदल डाला है अपने को,
विरोधी कहते मैं करने ,
यहाँ बवाल आया  हूँ
सुनाने हाल आया हूँ
मैं  केजरीवाल  आया हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जब तलक सांस रहती है

              जब तलक सांस रहती है

नहीं जिसको जो मिल पाता ,उसी की आस रहती है
ध्यान उस पर नहीं जाता ,जो हरदम पास रहती है
खेलना होता है  जब, फेंटे  जाते  ताश  के  पत्ते ,
वार्ना बस बंद डब्बे में, सिसकती  ताश रहती है
छोड़ कर घर का खाना ,होटलों में जो भटकते है ,
न जाने किस मसाले की, उन्हें तलाश   रहती है
छिपी घूंघट में जो रहती ,न उस पर ध्यान देतें है ,
ध्यान बस खींचती है वो,जो बन बिंदास रहती है
छुपा कर  रेत  में मुंह  सोचते,कोई न देखेगा ,
सुना है ये शुतुरमुर्गों की आदत ख़ास रहती है
जरूरी ये नहीं की हमेशा ,हर अश्क़ खारा हो,
खुशीके आंसूओं में भी,अजब मिठास रहती है
परेशां बेबसी में भी,लोग घुट घुट के जीते है,
फिरेंगे दिन हमारे भी ,ये मन में आस रहती है
ये काया पांच तत्वों की ,उन्ही में लीन  हो जाती,
आदमी ज़िंदा तब तक है ,जब तलक सांस रहती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

औरतें नाज़ुक बड़ी है

                  औरतें नाज़ुक बड़ी है

 उँगलियों के इशारों से, अगर जाय हो सब कुछ,
             व्यर्थ में ही करें मेंहनत ,भला किसको ,क्या पडी है
भृकुटी ऊंची और नीची ,काम सब देती करा है,
             वरना घर भर को हिलाती,लगा आंसू की  झड़ी  है
जो हमेशा दुम हिलाये,भोंकना जिसको न आये,
            इस तरह का पति पाकर ,हौंसले से ये बढ़ी   है
पकाती इसलिए खाना,स्वाद लगता है सुहाना,
          पति पकाता,स्वाद में कुछ,आ ही जाती गड़बड़ी है 
भले ही गलती कहो तुम ,या कि इसको प्यार कह दो,
          चढ़ाया सर पर है हमने ,इसलिए ये सर चढ़ी है
अदाओं से लुभाती है ,प्यार करके पटाती है,
          खुद न झुकती ,झुकाती है,औरतें नाज़ुक बड़ी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मै शून्य हूँ

             मै शून्य हूँ

भले शून्य हूँ मैं ,अकेला न अांकों ,
            करूँ दस गुणित मै ,तुम्हे ,संग तुम्हारे
चलोगे अगर साथ में हाथ लेकर ,
            बदल जाएंगे  जिंदगी के  नज़ारे
 घटाओगे मुझको या मुझ संग जुड़ोगे
            न तो तुम घटोगे ,नहीं तुम बढ़ोगे
मेरे संग गुणा का गुनाह तुम न करना ,
           नहीं तो कहीं के भी तुम ना रहोगे
चलो साथ मेरे ,मेरे हमसफ़र बन  ,
            बढ़ो आगे कंधे से कंधा  मिला कर,
बढ़ें दस गुने होंसले तब हमारे
            हम दुनिया को पूरी ,रखेंगे हिला कर
मुझे प्यार दे दो,ये उपहार दे दो ,
            नहीं बीच में कोई आये हमारे
भले शून्य हूँ मैं ,अकेला न समझो ,
          करू दस गुणित मै ,तुम्हे,संग तुम्हारे
रहो आगे तुम, मैं रहूँ पीछे पीछे ,
          अणु से अनुगामिनी तुम बना दो
बंधे सूत्र से इस तरह से रहे हम,
          तुम चाँद ,मैं चांदनी तुम बनादो
हमेशा ही ऊंचे रहो दंड से तुम,
         उडू एक कोने में,बन मैं पताका
समझ करके मुझको,चन्दन का टीका ,
         मस्तक पर अपने ,लगालो,जरासा
इतराऊँगी मैं जो संग पाउंगी मैं ,
         मेरा मान भी होगा संग संग तुम्हारे
भले शून्य हूँ मैं ,अकेला न आंको ,
          करूं दस गुणित मैं ,तुम्हे,संग तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

नए वर्ष का धन्यवादज्ञापन

         नए वर्ष का धन्यवादज्ञापन

पिछले बारह महीने मेरे ,कुछ इसी तरह से गुजर गए
कुछ नए दोस्त का साथ मिला,कुछ मीत पुराने बिछड़ गए
सुख दुःख आते जाते रहते ,मैं क्या बिसरूं ,क्या करू याद 
जिन जिनका भी सहयोग मिला ,सबको देता हूँ धन्यवाद
है धन्यवाद उनको जिनने ,जी भर कर मुझको दिया प्यार
मैं  आभारी  उनका  भी हूँ, पहनाये  जिनने  पुष्पहार
है धन्यवाद उस पत्थर का ,जिसकी ठोकर खा, मै संभला
पथ किया प्रदर्शन ,जीने की,सिखलाई  जिसने मुझे कला 
उन निंदक का भी धन्यवाद ,गलती मेरी बतलाते है
है धन्यवाद के पात्र ,प्रशंसक ,जो उत्साह बढ़ाते  है
अपनी सहचरी संगिनी का ,मैं सच्चे मन से आभारी
जिसने पग पग पर साथ दिया ,खुशियाँ बरसाई है सारी
जो देती आशीर्वाद सदा , मेरा उस माँ को धन्यवाद
मेरे जीवन में जो कुछ है ,ये माता का ही  है प्रसाद
सबके सहयोग ,शुभेच्छा से ,अच्छा बीता जो बरस गया
है यही अपेक्षा ,मिले प्यार,और अच्छा बीते बरस नया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, December 24, 2014

सर्दी

             सर्दी
क्या बताऊँ आपको इस बार सर्दी यूं पडी
याद में उनकी हमारे लगी आंसूं की  झड़ी
ना तो हमने पोंछे आंसूं,गीला ना दामन किया ,
मारे सर्दी अश्क जम कर ,बने मोती की लड़ी

घोटू

बुढ़ापा -शाश्वत सत्य

        बुढ़ापा -शाश्वत सत्य

मेरे मन में चाह हमेशा दिखूं जवां मै
और जवानी ढूँढा करता ,यहाँ वहां  मै
कभी केश करता काले ,खिजाब लगाके
शक्तिवर्धिनी कभी दवा की गोली  खा के
कभी फेशियल करवाता सलून में जाकर
नए नए फैशन से खुद को रखूँ सजा कर
और कभी परफ्यूम लगाता हूँ मै  मादक
करता हूँ जवान दिखने की कोशिश भरसक
जिम जाता हूँ ,फेट हटाने ,रहने को फिट
जिससे मेरी तरफ लड़कियां हो आकर्षित
पर किस्मत की बेरहमी करती है बेकल
जब कन्याएं,महिलायें कहती है 'अंकल'
लाख छिपाओ,उम्र न छिपती ,तथ्य यही है
मै बूढा हो गया ,शाश्वत सत्य  यही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये बीबियाँ

                ये बीबियाँ

पति भले ही स्वयं को है सांड के जैसा समझता ,
      पत्नी आगे गऊ जैसी ,आती उसमे सादगी  है
 पति को किस तरह से वो डांट कर के  रखा करती ,
      आइये तुमको बताते ,उसकी थोड़ी  बानगी है
पायलट की पत्नी अपने पति से ये बोलती है,
       देखो ज्यादा मत उड़ो तुम,जमीं तुमको दिखा दूंगी
और पत्नी 'डेंटिस्ट' की ,कहती पति से चुप रहो तुम,
             वर्ना जितने दांत तुम्हारे,सभी मै हिला   दूंगी 
प्रोफ़ेसर की प्रिया अपने पति को यह पढ़ाती है,
            उमर  भर ना भूल पाओगे ,सबक वो सिखाउंगी
और बीबी एक्टर की ,रोब पति पर डालती है ,
            भूलोगे नाटक सभी जब एक्टिंग मै  दिखाउंगी
सी ए की पत्नी पति से कहती है कि माय डीयर,
           मेरे ही हिसाब से ,रहना तुम्हे है जिंदगी  भर  
वरना तुम्हारा सभी हिसाब ऐसा बिगाड़ूगीं ,
           कि सभी 'बेलेंस शीटें 'तुम्हारी हो जाए गड़बड़
पत्नी ने इंजीनियर की ,समझाया अपने पति को,
          टकराना मुझसे नहीं तुम,पेंच ढीले सब करूंगी
'इंटेरियर डिजाइनर 'की प्रियतमा  उससे ये बोली
         मुझसे जो पंगा लिया ,एक्सटीरियर बिगाड़ दूंगी
नृत्य निर्देशक कुशल है  हुआ करती हर एक बीबी,
         जो पति को उँगलियों के इशारों पर है  नचाती 
उड़ा करते है हवा में ,घर के बाहर जो पतिगण ,
         घर में अच्छे अच्छे पति की,भी हवा है खिसक जाती

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
           

ना इधर के रहे ना उधर के रहे

       ना इधर के रहे ना उधर के रहे

उनने डाली नहीं ,घास हमको ज़रा ,
         चाह में जिनकी आहें हम भरते रहे
चाहते थे क़ि कैसे भी पट जाए वो,
          लाख कोशिश पटाने की करते रहे
उम्र यूं ही कटी ,वो मगर ना पटी ,
          घर की बीबी को 'निगलेक्ट 'करते रहे
ना घर के रहे हम,नहीं घाट  के ,
          ना इधर के रहे ,ना उधर के   रहे

घोटू  

Saturday, December 20, 2014

सितम-सर्दियों का

           सितम-सर्दियों का
                पांच चित्र
                       १
हो गए हालात है कुछ इस तरह के धूप के ,
कभी दिखलाती है चेहरा ,कभी दिखलाती नहीं
बहाना ले सरदी का ज्यों  ,कामवाली  बाइयां ,
या तो आती देर से है या कि फिर आती नहीं
                            २
मुंह छिपाते फिर रहे हैं,आजकल सूरज मियां ,
सर्दियों  में देख लो, वो भी बेकाबू  हो  गए
आते भी है देर से और जाते है जल्दी चले ,
लगता है सरकारी दफ्तर के वो बाबू  हो गए
                      ३
एक तरफ आशिक़ है बिस्तर ,नहीं हमको छोड़ता ,
एक तरफ माशूक़ रजाई ,हम पर है छाई  हुई
आपको हम क्या बताएं आप खुद ही समझ लो ,
इस तरह शामत हमारी ,सरदी  में आयी हुई
                            ४
होता था दीदार जी भर ,जिस्म का जिनके सदा,
तरसते है देखने को भी हम सूरत आपकी
ढक  लिया है इस तरह से ,तुमने अपने आपको,
नज़र आती सिर्फ आँखे, नोक केवल नाक की
                           ५
तेल ,घी जमने लगे है ,दही पर जमता नहीं ,
मारे ठिठुरन,हाथ पाँव जम के ठन्डे पड़ गए
पीते पीते चाय का प्याला बरफ  सा हो गया ,
सर्दियों के सितम देखो ,किस कदर है बढ़ गए   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, December 18, 2014

सर्दी -मौसम खानपान का

   सर्दी -मौसम खानपान का

हम सर्दी का मज़ा उठायें ,मौसम बड़ा सुहाना
बैठ धूप में अच्छा लगता,हमें मूंगफली खाना
गरम चाय की चुस्की लेना ,सबके मन को भाता
अगर साथ हो  गरम पकोड़े ,मज़ा चौगुना  आता
 कभी कभी मक्का की रोटी ,और सरसों का साग
तिल की पट्टी ,गज़क रेवड़ी ,इनका नहीं जबाब
गरम गरम रस भरी जलेबी और गुलाबजामुन
देख टपकती लार और मन होता अफ़लातून
खानपान का मौसम होता है मौसम सर्दी का
सोहन या बादाम का हलवा ,खाओ देशी घी का
कितना भी गरिष्ठ हो खाना ,सर्दी में सब पचता
आलू टिक्की की खुशबू से कोई नहीं बच सकता 
गरम पराठे मेथी के या मूली या कि मटर के
सर्दी में ही मिल पातें है ,क्यों न खाएं जी भर के
जिन्हे  फ़िकर अपने फ़ीगर की खाया करे सलाद
हम तो खाए गोंद  के लड्डू ,ले ले कर के स्वाद
प्रचुर विटामिन 'डी 'पाओगे और  निखरेगा  रूप    
मैं खाऊ गाजर का हलवा और तुम खाओ धूप

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वक़्त काटना -बुढ़ापे में

    वक़्त काटना -बुढ़ापे में

किसी ने हमसे पूछा ऐसे
घोटूजी,आप भी तो अब हो गए हो,रिटायर  जैसे
अपना समय काटते  हो कैसे ?
हमने कहा,हम सुबह जल्दी उठ जाते है
घूमने जाते है
कुछ व्यायाम करते है और अपनी जर्जर होती हुई ,
शरीर की इमारत को, जल्दी टूटने से बचाते है
लौट कर फिर घर आना
बीबीजी के लिए चाय बनाना
फिर उन्हें उठाना ,
रोज यही दिनचर्या  चलती है
चाय हम इसलिए बनाते है क्योंकि,
हमारे हाथ की बनाई हुई चाय ,
हमारी बीबीजी को बहुत अच्छी लगती है
और सुबह सुबह ,इस प्यार भरे अंदाज से ,
होती है दिन की शुरुवात
जब चाय की चुस्कियां ,हम लेते है साथ साथ
फिर थोड़ा अखबार खंगालते है
रोज रोज चीर होती हुई मर्यादाओं का 
पतनशील होते हुए नेताओं का
धर्म के नाम पर लुटती हुई आस्थाओं का
भ्रष्ट आचरण करते हुए महात्माओं का
कच्चा चिट्ठा बांचते है
कभी दोपहरी में धूप में बैठ कर ,
पत्नी को मटर छिलाते रहते है
और बीच बीच में जब मटर के छोटे  छोटे ,
मीठे मीठे दाने निकलते है ,
खुद भी खाते है,उन्हें भी खिलाते रहते  है
कभी पास के ठेले पर जा गोलगप्पे खाते है
कभी फोन करके पीज़ा मंगाते है
बीच बीच में 'फेसबुक 'या 'व्हाट्सऐप'पर
कोई अच्छा जोक आता है तो पत्नी को सुनाते है
आपस में खुशियां बांटते है,
हँसते हँसाते है
कभी वो हमारे चेहरे की बढ़ती झुर्रियों को देख कर,
होती है परेशान
कभी हम ढूंढते है ,उसकी जादू भरी आँखों का,
खोया हुआ तिलिस्म और पुरानी शान
ये सच है आजकल हममे नहीं रही वो पुरानी कशिश
फिर भी बासी रोटियों पर,
कभी प्यार का अचार लगा कर
कभी दुलार का मुरब्बा फैला कर
नया स्वाद लाने की करते है कोशिश
न ऊधो का लेना है,न माधो का देना है
और भगवान की दया से पास में ,
काफी चना चबेना है
हम उसका और वो हमारा रखती है ख्याल
और भूल जाते है  जिंदगी के सब  बवाल
और जैसे जैसे उमर बढ़ रही है
चूँ चररमरर,चूँ चररमरर ,करती हुई ,
जिंदगी की भैंसागाड़ी ,मजे से चल रही है

मदन मोहन बाहेती' घोटू'
   

Wednesday, December 17, 2014

पाकिस्तानी आकाओं से

     पाकिस्तानी आकाओं से

दहशतगर्दी को शह देते ,पाल रहे हो नागों को,
        डस तुमको कब  लेंगे ,जिनको ,दूध पिलाया ,पता नहीं
चले हमें थे सबक सिखाने,ऐसा सबक मिला तुमको ,
         कितने मासूमो को तुमने ,बलि चढ़ाया ,  पता नहीं
अक्सर आग लगानेवाले ,खुद जलजल जाते,लपटों से ,
         कितनी माताओं का तुमने ,मन झुलसाया ,पता नहीं
अब छोडो ,नापाक इरादे ,नफरत त्यागो और बदलो ,
         दहशत गर्दो ने तुमको क्या,सबक सिखाया ,पता नहीं  
एटम बम पर मत इतराओ ,खतरे भरे खिलोने है ,
        तुम ही एटम ना बन जाओ,इन्हे चलाया ,पता नहीं
आतंकी गतिविधियाँ छोडो ,वरना  तुम पछताओगे ,
        कितनी बार तुम्हे समझाया,समझ न आया ,पता नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, December 16, 2014

माँ और बच्चे

       माँ और बच्चे

मैं रोज देखता सुबह सुबह ,
माँएं ,अन संवरी ,बासी सी
कंधे ,बच्चों का बस्ता ले ,
कुछ लेती हुई उबासी सी
कुछ मना रही वो कुछ खाले ,
कुछ मुंह में केला ठूंस रही
तुम ने रखली ना सब किताब,
कुछ होमवर्क का पूछ रही
अपनी माँ की ऊँगली थामे ,
अलसाया बच्चा रहा दौड़
है हॉर्न बजाती स्कूल बस ,
वो कहीं उसको जाय छोड़
भारी सा बस्ता उसे थमा,
वह उसे चढ़ाती  है बस पर
निश्चिन्त भाव से फिर वापस ,
वो घर लौटा करती हंस कर
दोपहरी में फिर जब बस के ,
आने का होता है टाइम
आकुल व्याकुल सी बच्चे का,
वो इन्तजार करती हर क्षण
बस से ज्यों ही उतरे बच्चा ,
ले लेती उसका  बेग थाम
स्कूल की सब बातें सुनती ,
चलती धीमे से बांह थाम
माँ और बच्चों की दिनचर्या ,
मैं देखा करता ,रोज रोज
अनजाने ही मेरे मन में,
उठने लग जाता एक सोच
बच्चों का बोझ उठा पाते ,
माँ बाप सिरफ़ बस तक केवल
पड़ता है बोझ उठाना खुद ,
ही बच्चों को है जीवन भर
अक्षम होंगे जब मात पिता ,
जब ऐसे भी दिन आयेंगे
बच्चे उतने अपनेपन से ,
क्या उनका बोझ उठायेंगे ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रिटायरमेंट के बाद-पति का नज़रिया

रिटायरमेंट के बाद-पति का नज़रिया

शिकायत उनको रहती थी ,
उन्हें टाइम न देते हम
अब तो टाइम ही टाइम है,
रिटायर हो गए है हम
अब तो चौबीस घंटे ही,
हम 'डिस्पोजल' पे उनके है
मगर ये बात भी तो ना ,
मुताबिक़ उनके मन के है
गयी है गड़बड़ा उनकी ,
सभी दिनचर्या है दिन की
हो गयी चिड़चिड़ी सी वो ,
हमेशा रहती है भिनकी
ये आदत थी कि ऑफिस में ,
चार छह चाय पीते थे
हुकुम में चपरासी हाज़िर ,
शान शौकत से जीते थे
आदतन मांग ली उनसे,
चाय दो चार दिन भर में
हुई मुश्किल उन्हें , होने ,
लग गया दर्द फिर सर में
न सोने को मिले दिन में,
न सखियों संग,सजे महफ़िल
हमाए पास ही दिन भर,
लगाएं कैसे अपना दिल
तरसती साथ को जो थी ,
लग गयी अब अघाने है
और हम पहले जैसे ही,
दीवाने थे,दीवाने है
है बच्चे अपने अपने घर,
अकेले घर में हम दोनों
कभी भी साथ ना इतने ,
थे जीवन भर में हम दोनों
न चिंता काम की कोई,
मौज,मौसम है फुरसत का
रिटायर हो के ही मिलता ,
मज़ा असली मोहब्बत का

घोटू

रिटायरमेंट पति का-नज़रिया पत्नी का

 रिटायरमेंट पति का-नज़रिया पत्नी का

हुये जब से रिटायर है ,
हमेशा रहते ये घर है
चैन अब दो मिनिट का भी,
नहीं हमको मयस्सर है
कभी कहते है ये लाओ
कभी कहते है वो लाओ
आज सर्दी का मौसम है,
पकोड़े तुम बना लाओ
नहीं जाते है ड्यूटी पर,
हुई मुश्किल हमारी है
सुबह से शाम सेवा में ,
लगी ड्यूटी हमारी है
नहीं होता है खुद से कुछ,
दिखाते रहते  नखरा  है 
क्यों इतनी गंदगी फैली ,
ये क्यों सामान बिखरा है
निठल्ले बैठे रहते है,
नहीं कुछ काम दिनभर है
बहुत ये शोर करते है ,
हुए खाली कनस्तर है
जरा सी बात पर भी ये ,
लड़ाई,जंग करते है
प्यार के मूड में आते ,
तो दिन भर तंग करते है
चले जाते थे जब दफ्तर
चैन से रहते थे दिन भर
नहीं थी बंदिशें कोई,
कभी शॉपिंग ,कभी पिक्चर
रिटायर ये हुए जब से ,
हमारी आयी आफत है
होगया काम दूना है,
मुसीबत ही मुसीबत है

घोटू

Monday, December 15, 2014

विदेश में बसी औलाद-माँ बाप की फ़रियाद

     विदेश में बसी औलाद-माँ बाप की फ़रियाद

भूले भटके याद कर लिया करो हमें ,
             बेटे! इतना बेगानापन ठीक नहीं
पता नहीं हम कभी अचानक ही यूं ही,
          चले जाएँ कब, छोड़ ये चमन, ठीक नहीं
तुम बैठे हो दूर विदेशी धरती पर ,
           तुम्हे ले गयी है माया ,भरमाने की 
मातृभूमि की धरती ,माटी,गलियारे,
            जोह रहे है  बाट तुम्हारे  आने की
ऐसे उलझे तुम विदेश के चक्कर में,
            अपने माँ और बाप,सभी को भूल गये
तुमको लेकर क्या क्या आशा थी मन में,
             इतने सपने  देखे, सभी फिजूल गये
यहीं बसा परिवार,सभी रिश्ते नाते,
              ये  तुम्हारा देश,तुम्हारी  धरती  है
आस लगाए बैठे है कब आओगे ,
             प्यासी आँखे ,राह निहारा  करती है
जहाँ पले  तुम ,खेले कूदे ,बड़े हुए,
              याद तुम्हे वो घर और आँगन करता है
तुम शायद ही समझ सकोगे कि कितना,
             याद तुम्हे व्याकुल होकर मन करता है
सोच रहे होगे 'इमोशनल फूल' हमें ,
              हाँ ,ये सच है ,हम में बहुत 'इमोशन' है
नहीं 'प्रेक्टिकल'हैं हम इतने अभी हुये ,
             प्यार मोहब्बत अभी यहाँ का 'फैशन'है
हमको तुम हर महीने भेज चन्द 'डॉलर',
             सोचा करते ,अपना फर्ज निभाते हो
भूले भटके ,बरस दो बरस में ही तुम ,
              शकल दिखाने  ,कभी कभी आ जाते हो
यही देखने कि हम अब तक ज़िंदा है,
               कितनी 'प्रॉपर्टी' है,कीमत  क्या  होगी
हरेक  चीज, पैसों से तोला करते हो ,
               तुम्हे प्यार करने की फुर्सत कब होगी
हम माँ बाप ,तुम्हारी चिंता करते है ,
                देते तुमको सदा दुआ ,सच्चे  मन से
जबकि तुमने सबसे ज्यादा दुखी किया ,
                  बन  निर्मोही,अपने   बेगानेपन  से
 फिर भी इन्तजार में तुम्हारे,आँखें,
                  लौट आओगे ,आस लगाए ,बैठी है
शायद तुमको भी सदबुद्धी आजाये ,
                  मन में यह विश्वास जगाये बैठी  है      
ऐसा ना हो ,इतजार करते आँखें,
                  रहे खुली की खुली ,लगे पथराने सी
मरने पर भी लेट बरफ की सिल्ली पर ,
                   करे प्रतीक्षा ,तुम्हारे आ जाने की
बहुत जलाया हमको तुमने जीवन भर,
                 अंतिम पल भी तुम्ही जलाने आओगे
बहुत बहाये आंसू हमने जीवन भर ,
                   तुम गंगा में अस्थि बहाने आओगे
सदा प्यार से अपने भूखा रखा हमें ,
                    आकर कुछ पंडित को भोज कराओगे
और बेच कर सभी विरासत पुरखों की,
                     शायद अपना अंतिम फर्ज ,निभाओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

Saturday, December 13, 2014

कोई है

            कोई है
मैं नहीं लिखता ,लिखाता कोई है
नींद से मुझको   जगाता  कोई  है
क्या भला मेरे लिए क्या है बुरा ,
रास्ता मुझको दिखाता कोई  है
कभी गर्मी,कभी सर्दी ,बारिशें ,
ऋतु में बदलाव लाता कोई है
हर एक ग्रह की अपनी अपनी चाल है,
मगर इनको भी  चलाता कोई है
कभी धुंवा ,लपट या चिंगारियां ,
अगन कुछ  ऐसी जलाता कोई है
डालते उसके गले में हार हम ,
जंग हमको पर जिताता  ,कोई है
कौन  है वो ,कैसा उसका  रूप है,
कभी भी ना ,नज़र आता कोई है
दुनिया के कण कण को देखो गौर से,
हर जगह हमको  दिखाता  कोई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वक़्त की बात

       वक़्त की बात

वक़्त किसको कब बना दे बादशाह ,
  धूल कब किसको चटा दे ,खेल मे
कल तलक थी जिसकी तूती बोलती ,
  आजकल वो सड़ रहे है   जेल में
खेलते थे करोड़ों में जो कभी ,
   आजकल वो हो गए कंगाल है
हजारों की भीड़ थी सत्संग में,
   कोठरी में जेल की बदहाल है
भोगते फल अपने कर्मो का सभी,
  जिंदगी की इसी रेलमपेल  में
कल तलक थी जिसकी तूती बोलती ,
आजकल वो सड़ रहे है जेल में

घोटू

पड़ी रिश्तों पर फफूंदी

     पड़ी रिश्तों  पर फफूंदी

जब से  मैंने खोलकर संदूक देखा ,
      पुरानी यादें सताने लग गयी है
 बंद बक्से में पड़े रिश्ते  पुराने ,
     महक सीलन की सी आने लग गयी है
फफूंदी सी रिश्तों पर लगने लगी है
    चलो इनको प्यार की कुछ धूप दे दे
पुराना अपनत्व फिर से लौट आये ,
     रूप उनको ,वक़्त के अनुरूप दे दें
दूध चूल्हे पर चढ़ा ,यदि ना हिलाओ,
   उफन, बाहर पतीले से निकल जाता
बिन हिलाये ,आग पर सब चढ़ा खाना ,
    चिपक जाता है तली से ,बिगड़ जाता
बंद रिश्ते बिगड़ जाते वक़्त के संग ,
    इसलिए है उनमे कुछ  हलचल  जरूरी
रहे चलता ,मिलना जुलना ,आना जाना ,
    तभी  नवजीवन मिले , हो  दूर  दूरी
चटपटापन भी जरूरी जिंदगी में ,
    मीठी बातों से सिरफ़  ना काम चलता
बनता है अचार कच्ची केरियों से ,
     मीठे आमों का नहीं  अचार  डलता
खट्टे मीठे रिश्तों को रख्खे मिला कर
दूध को ना उफनने दें ,हम हिला कर
इससे पहले क्षीण हो क्षतिग्रस्त रिश्ते ,
       आओ इनको हम नया एक रूप दे दें  
फफूंदी सी रिश्तो पर लगने लगी है,
        चलो इनको प्यार की कुछ धूप  दे दें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बदलाव

        बदलाव

फोन एंड्रॉइड का जबसे लगा उनके हाथ है ,    
 उसको ही सहलाते रहते ,हमको सहलाते नहीं
जबसे पड़ने लग गयी है सर्दियाँ ,वो आजकल,
         रजाई  से लिपटे रहते ,हमसे  लिपटाते नहीं
जब से टी वी घर में आया ,ऐसा कुछ आलम हुआ ,
बढ़ती ही जाती दिनोदिन ,हमसे उनकी बेरुखी,
   देखते रहते उसी को ,वो लगाकर टकटकी ,
  बस उसी से चिपके रहते ,हमको चिपकाते नहीं   

घोटू

वक़्त का मिजाज

           वक़्त का मिजाज

रात जब सोया था छिटकी चांदनी थी ,
 सवेरे जब उठा ,देखा कोहरा  है
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना दोहरा है

कौन सा पल कब बदल दे जिंदगानी ,
किसी को होता नहीं इसका पता है 
समय पर बस नहीं चलता है किसीका,
देखिए इंसान की क्या विवशता है
आसमां था साफ़ ,सूरज चमचमाता ,
कुछ पलों के बाद बादल से भरा है
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना  दोहरा है

इस तरह से बदल जाती भावनायें ,
कल तलक था प्यार ,अब नफरत भरी है
जिसे देखे बिन नहीं था चैन कल तक,
आज उसने ,नज़र अपनी फेर ली  है
कल तलक था रेशमी तन जो सलोना,
उम्र के संग हो गया वो खुरदुरा  है
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना  दोहरा है

कल तलक था दूध मीठे स्वादवाला ,
आज खट्टा पड़ गया है,फट गया है
एक जुट परिवार रहता था कभी जो,
कितने ही हिस्सों में अब वो बंट गया है
देखता है रोज ही ये सभी होते ,
वक़्त से इंसान फिर भी ना डरा  है   
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना दोहरा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, December 11, 2014

ऐसा भी होता है

       ऐसा भी होता है

एक लड़का ,साइकल पर सवार
पैदल घूम रहे थे एक बुजुर्गवार
लड़के ने उन्हें मार दी टक्कर
बुजुर्गवार  हो गए घायल
लड़के से पिता से जब की गयी शिकायत
उन्होंने  उत्तर ये दे दिया झट
हम क्या करें जनाब
ये तो जानते है आप
'BOYS WILL BE BOYS '
संयोग की बात
थोड़े ही दिनों बाद
उनकी लड़की को,
 पड़ोसी लड़के ने छेड़ दिया
शिकायत करने पर ,
लड़के के बाप ने दिया
वो ही टका सा जबाब
हमक्या करें जनाब
ये तो जानते ही है आप
'BOYS  WILL BE  BOYS '

घोटू

Tuesday, December 9, 2014

अपनी अपनी अर्जी

          अपनी अपनी अर्जी
                       १
       लड़की की अर्जी
प्रभु ऐसा पति दीजिये ,कृपा कीजिये आप
मनमोहन सिंह की तरह,सीधा और चुपचाप
सीधा और चुपचाप ,पास हो काफी पैसा
और कमाई में हो मुकेश अम्बानी जैसा
दीवाना मजनू  सा ,करे प्रेम से सेवा
और इशारों पर नाचे बन कर प्रभुदेवा
                      २
           लड़के की अर्जी
पत्नी ऐसी दिलाना,तुम हमको भगवान
ऐश्वर्या  सी  रूपसी ,सुंदरता  की  खान  
सुंदरता की खान ,रखे वो साफ़ सफाई
घर के सारे काम ,करे बन शांता बाई
कह 'घोटू'कवि ,पतिकी सेवा करे रोजाना
हो संजीव कपूर ,बनाने में वो खाना
                    ३
      लालाजी की अर्जी
लालाजी करने लगे ,मंदिर में अरदास
नहीं चाहिए आपसे ,भगवन कुछ भी ख़ास
नहीं चाहिए ख़ास ,देवता है जो  सारे
'एक एक रूपया दिलवा दो,इनसे म्हारे '
है छत्तीस करोड़ देवताओ  से   अर्जी
आठ आठ आने ही दिलवा दो,जो हो मर्जी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दास्ताने इश्क़

      दास्ताने इश्क़

जब कली से फूल बन कर ,हम खिले,तुम आ गए,    
    बन के भँवरे ,खुशबुएँ लेने को मंडराते रहे
सजा करके दिल के गुलदस्ते में हमको रख लिया ,
   पिरो कर  माला में  हमको ,गले लिपटाते  रहे
बेअदब और बेरहम हो ,नाम लेकर प्यार का ,
    दबाते हमको रहे तुम और तड़फ़ाते रहे
आपकी गुस्ताखियाँ कुछ ऐसी मन को भा गयी
  चाहता दिल,पेश यूं ही ,आप बस आते रहें

घोटू

तिल की बात-दिल की बात

        तिल की बात-दिल की बात

तिल तो  है आजाद ,बैठे ,कहीं भी जा जिस्म पर ,
            होठों पर जब बैठता है, कहते है  कातिल  इसे
गाल पर  जब बैठता, होती  निराली शान है ,
            फिर भी कितने लोग कहते, दिलजलों का दिल इसे
एक दिन हम भी लुटे थे ,इसी तिल के फेर में,
             तिल बड़ा ही तिलस्मी था ,हम पे जादू कर गया
गोरे गोरे गालों पर वो' ब्यूटी का स्पॉट' था ,
              दिल हमारा बावला हो ,उसी तिल पर मर गया
तूल कुछ ऐसी पकड़ ली,दीवानेपन  ने मेरे ,
               उनकी उल्फत ने हमारा  दिया ऐसा हाल कर
मेहरबाँ तिल यूं हुआ कि दिलरुबा वो बन गए ,
               उम्र भर नाचा  किये हम,उसी तिल की ताल पर 
दिल मिलाना छोड़ कर वो तिलमिलाने लग गए ,
                गुस्से में लगती हसीं ,जब गलती से हमने कहा
और तिल तिल जिंदगी भर ,यूं ही हम पिसते रहे,
                   हाल ये अब , इन तिलों में ,तैल ना बाकी  रहा   
दोस्तों अब क्या बताएं तुम को अपनी दास्ताँ ,
                   घुटते तिल तिल,हसीना कातिल से दिल हारे हुए
इसलिए ही जम के खाते ,तिल की पट्टी और गजक ,
                    लेते है गिन गिन के बदला ,तिल के हम  मारे हुए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, December 6, 2014

नींद क्यों आती नहीं

              नींद क्यों  आती नहीं       

आजकल क्या हो गया है रात भर ही ,
उचट जाती ,नींद क्यों आती नहीं है
कभी दायें,कभी बांयें ,करवटें भर
कभी तकिये को दबाता,बांह में भर
तड़फता रहता हूँ सारी रात भर ,पर,
भाग जाती,नींद क्यों आती नहीं है
उचट जाती ,नींद क्यों आती नहीं है
रात की सुनसान सी तन्हाइयों में
भावनाओं की दबी  गहराइयों में
कभी चादर ,कम्बलों,रजाइयों में ,
लिपट जाती,नींद क्यों  आती नहीं है
उचट जाती,नींद क्यों आती नहीं  है
न तो चिंता से ग्रसित ना कोई डर है
न हीं कोई बुरी या अच्छी खबर  है
कितने ही अनजान सपनो का सफर है
भटक जाती ,नींद क्यों आती नहीं है
उचट जाती,नींद क्यों आती नहीं है
फेर मे ननयान्वे के   रहा फंस कर
रह न पाया ,जिंदगी भर स्वार्थ तज कर
कुटिलता की जटिलता में बस उलझ कर
छटपटाती ,नींद क्यों आती नहीं है
उचट जाती ,नींद क्यों आती नहीं है

मदन मोहन बाहेती''घोटू'


Friday, December 5, 2014

निवेदन - पत्नी से

    निवेदन  - पत्नी से

प्रियतमे !
बड़ी जलन होती है हमें
बैठती हो जब तुम टी वी से सटी
देखती हो उसे लगा टकटकी
बड़ी निष्ठां और नियम से
बड़े चाव और सच्चे  मन से
तल्लीन होकर हर पल
देखती हो टीवी के सीरियल
तब लगता है कि काश
आप आकर हमारे भी पास
करें हम पर नज़रें इनायत
और उस समय का बस दस प्रतिशत
भी हमारे लिए निकाल कर दें
तो सचमुच  हमें निहाल कर दें
सीरियल की तरह  हम में उलझ कर
चिपक कर बैठें ,हमें टीवी समझ कर
हमारी नज़रों से   नज़रें मिलाये
कभी कभी प्यार से मुस्करायें
सच हम धन्य हो जाएंगे
अगले एपिसोड तक ,आपके गुण गाएंगे
वैसे भी हम में और टीवी में एक कॉमन बात है
दोनों का ही रिमोट ,आपके हाथ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मोदी,पटेल और विलय

         मोदी,पटेल और विलय
             घोटू के छक्के
                      १
आये है गुजरात से, मोदी और  पटेल
दोनों माहिर खेलते ,राजनीति का खेल   
राजनीति का खेल ,खिलाड़ी दोनों पक्के
छुड़ा दिये ,अच्छे अच्छों के इन ने छक्के
एक  ने रजवाड़ों  की सत्ता   दूर  हटा  दी
और  एक  ने  कांग्रेस को  धूल    चटा  दी
                        २
जब आजादी मिली थी ,गया ब्रिटिश साम्राज्य
बंटा    हुआ   था   देश , थे,  छोटे  छोटे   राज्य
छोटे  छोटे   राज्य ,सभी  का विलय   कराया
और पटेल  ने  कैसे  भारत  संघ     बनाया
बिखरे थे  समाजवादी भी  कितने  दल में
विलय  कराया इन  सबका ,मोदी के ङर ने 

घोटू

Tuesday, December 2, 2014

आशिक़ की उल्फत

              आशिक़ की उल्फत

इतनी ज्यादा महोब्बत ,करता मेरा मेहबूब है
निभाने का आशिक़ी  ,उसका तरीका  खूब है
इतना ज्यादा दीवाना वो ख्याल रखता है मेरा
रोक डाला निकलने का ,रस्ता ही उसने  मेरा
चाहता है ,साथ उसके रहूँ  ,हरदम , हर  घड़ी
जब भी घर निकलूं, गुजरूं ,हो के ,मै उसकी  गली

घोटू

Monday, December 1, 2014

औरते और डेंटिस्ट

       औरते और डेंटिस्ट

औरतों  को  दाँतवाले  डाक्टर जी के  यहाँ ,
करना पड़ता सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना
इससे ज्यादा और क्या तकलीफ हो सकती उन्हें ,
     मुंह भी खुल्ला रखो और बोलना भी है मना

घोटू

Sunday, November 30, 2014

       किस्मत अपनी अपनी

हम को कब मालूम होता ,किसी की बेटी कोई,
   पल रही है किसी के घर बन के उसकी लाड़ली
एक दिन बन जाएगी तुम्हारी जीवनसंगिनी ,
        और तुम्हारे वास्ते वो घर में कोई के पली
हर एक घर पे ये लिखा है,कौन इसमें रहेगा ,
        हर एक फल पर ये लिखा है कौन इसको खायेगा
कौनसा फल पेड़ से गिर जाएगा तूफ़ान में,
        मुरब्बा किसका बनेगा,कौन सा सड़  जाएगा
लिख दिया है विधाता  ने,सभी कुछ तक़दीर में ,
          बुरा,अच्छा,सुख और दुःख जो भोगना इंसान ने
इसलिए हम कर्म बस ,अपना सदा करते रहें,
         फल हमें क्या मिलेगा ,सब लिख रखा भगवान ने

घोटू  

अक्स

          अक्स

 कुछ दिनों अक्सों से अपने ,मैंने की थी  दोस्ती ,
       बांटता अपने ग़मों को ,आईने से लिपट कर
देख मुझको गमजदा ,ग़मगीन होते अक्स थे  ,
       अक्स भी आंसू बहाते ,मुझको रोता देख कर
अक्स मेरे चिर परिचित ,दोस्त  लगने लगे थे ,
मेरे ही मन के मुताबिक़ ,रहता उनका रूप था,
कोइ से भी आईने को देख कर लगता था ये ,
         अक्स  हँसते और रोते ,थे मेरा  रुख  देख कर 
कल भरे तालाब में ,मैं था किसी को ढूढ़ता ,
टकटकी मुझ पर लगाए ,मेरा ही चेहरा दिखा ,
पर न जाने ,अँधेरे में ,गुम किधर वो हो गया ,
         मुश्किलों में अक्स जाते है अकेला छोड़ कर
जैसे कि साया भी भरता दोस्ती का दम सदा,
साथ आता रोशनी के और जाता है चला ,
अच्छे दिन में साथ देते ,अक्स भरमाते हमें ,
             छोड़ते हमको अकेला,अँधेरे में,रात भर 
कांच के घर में खड़ा था,हर तरफ था आइना ,
अक्स देखे ,लगा लगने ,मेरे कितने दोस्त है,
वक़्त की एक कंकरी से ,टूटे सारे  आईने ,
       अकेले ही करना पड़ता ,सबको जीवन का सफर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीभ और दांत

           जीभ और दांत

जीभ ,दांतों की हमेशा सबसे अच्छी दोस्त है ,
            दांत रखते है दबा कर ,फिर भी हंसती ,बोलती
चबाते है दांत सबको ,पर बचाते जीभ को,
           घिरी रहती दांतों  से है ,हर तरफ  पर डोलती      
दांत होते सख्त है और जीभ होती है नरम,
           मगर इनकी दोस्ती का निराला   अंदाज  है
जो भी मिलता खाने को,उसको चबाते दांत है,
           और अपनी दोस्त  जिव्हा को वो देतें स्वाद है
दांत में क्या फंस गया है ,दांत भी ना जानते ,
           सच्ची हमदम जीभ होती ,उस को लग जाता पता
धीरे धीरे घूमफिर कर ,ढूंढ लेती है  उसे,
            लेती है दम  ,वो किसी भी तरह  से उसको हटा    

घोटू

मतलब के यार

        मतलब के यार

सर्दियों में दोस्ती की ,गर्मियों में छोड़ दी ,
समझ हमको रखा है,कम्बल, रजाई की तरह
जब तलक मतलब रहा तुम काम मे लेते रहे ,
फेंक हमको दिया टूटी चारपाई  की तरह
इससे अच्छा ,छतरी होते,काम आते साल भर,
लोग हमको रखा करते सदा अपने साथ  में
दोस्ती उनसे निभाते ,हाथ उनका थामकर ,
धूप गर्मी से बचाते, पानी से  बरसात में

घोटू

सूट और बनियान

           सूट और बनियान

बड़ा गर्वित ,हज़ारों का सूट था कपबोर्ड में ,
               हेंगर मे लटकता ,मन में बड़ा अभिमान था
और नीचे, अलमारी के एक कोने में पड़ा,
               साफ़सुथरा और धुला सा ,सूती एक बनियान था  
सूट ने भोंहे  सिकोड़ी ,देख कर बनियान को ,
                  सामने मेरे खड़े ,क्या तुम्हारी औकात   है 
हंस कहा बनियान ने तुम काम आते चंद दिन ,
                  और मालिक संग मेरा ,रात दिन का साथ है

घोटू

आज कल

                   आज कल

हो गया है आजकल कुछ इस तरह का सिलसिला
              छोटे छोटे खेमो  में ,बंटने लगा  है काफिला
जी रहा हर कोई अपनी जिंदगी निज ढंग से ,
     क्या करें शिकवा किसी से ,और किसी से क्या गिला  
अहमियत परिवार , रिश्तों की भुलाती जा रही,
             आत्मकेंद्रित हो रही है आजकल की  पीढ़ियाँ  
इस तरह से कमाने का छारहा सबमे जूनून,
                जुटें है दिनरात चढ़ने तरक्की की सीढ़ियां
पहले कुछ करने की धुन में खपते है दिन रात सब,
              बाद में फिर सोचते है,करे शादी,घर बसा
और उस पर नौकरीपेशा ही बीबी चाहिए ,
              बदलने यूं लग गया है जिंदगी का फलसफा
थके हारे मियां बीबी,आते है जब तब कभी,
              फोन से खाना मंगाया,खा लिया और सो गए
सुबह फिर उठ कर के भागें ,अपने अपने काम पर,
                  सिर्फ सन्डे वाले ही अब पति पत्नी हो गए     
गए वो दिन जब बना पकवान ,सजधज शाम को,
            पत्नियां ,पति की प्रतीक्षा ,किया करती प्यार से
पति आते,करते गपशप,चाय पीते चाव से,
            रात को खाना खिलाती थी ,पका ,मनुहार से
आजकल बिलकुल मशिनी हो गयी है जिंदगी ,
             किसी के भी पास ,कोई के लिए ना वक़्त है
बहन,भाई,बाप,माँ,ये सभी रिश्ते व्यर्थ है ,
              मैं हूँ और मुनिया मेरी ,परिवार इतना फ़क़्त है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 28, 2014

          व्यायाम केंद्र

त्याग कर के नींद अपनी ,भाग आते ,जाग कर ,
                   लाख  हमको आये आलस ,मगर रुकते हम  नहीं
अच्छी सेहत का है लालच ,स्वास्थ्य की दीवानगी,
                   आपकी ये व्हिसिल ,रणभेरी से कोई कम नहीं
चाहे गर्मी ,चाहे सर्दी या चाहे बरसात हो ,
                    रोक सकता है हमें अब कोई  मौसम   नहीं  
करते वर्जिश ,खिलखिलाते और बजाते तालियां,
                     बूढ़े है तो क्या हुआ ,हम भी किसी से कम नहीं     

घोटू

खड़े खड़े

               खड़े खड़े

हमें है याद स्कूलमे,शैतानी जब भी करते थे,
              सज़ा अक्सर ही पाते थे,बेंच पर हम खड़े होकर
गए कॉलेज तो तकते थे,लड़कियों को खड़े होकर,
              नया ये शौक पाला  था ,जवानी में बड़े होकर
हुस्न कोई अगर हमको ,कहीं भी है नज़र आता ,
              अदब से हम खड़े होकर ,सराहा करते ,ब्यूटी है
ट्रेन लोकल में या बस में,सफर  करते खड़े होकर ,
              खड़े साहब के आगे हो ,निभाया करते ड्यूटी  है
मुसीबत लाख आये पर ,तान सीना खड़े रहते ,
               बहुत है होंसला जिनमे,उन्हें सब मर्द कहते है
किसी की भी मुसीबत में,खड़े हो साथ देते है ,
               दयालू लोग वो  होते, उन्हें  हमदर्द   कहते  है
बनो नेता ,करो मेहनत ,इलेक्शन में खड़े  होकर,
              जीत कर पांच वर्षों तक ,बैठ सकते हो कुर्सी पर
बड़े एफिशिएंट कहलाते ,तरक्की है सदा पाते ,
               काम  घंटों का मिनटों में,जो निपटाते खड़े रह कर
खड़े हो जिंदगी की जंग को है  जीतना पड़ता ,
               आदमी रहता है सोता ,अगर यूं ही पड़ा  होता      
खड़े होना सज़ा भी है,खड़े होना मज़ा भी है,
                जागता आदमी है जब ,तभी है वो खड़ा होता
इशारे उनकी ऊँगली के ,और हम नाचे खड़े होकर ,
                  जवानी में खड़े होकर ,बहुत की उनकी खिदमत है
आजकल तो ठीक से भी,खड़े हम हो नहीं पाते ,
                    बुढ़ापा ऐसा आया है,  हो गयी पतली हालत है

मदन  मोहन बाहेती'घोटू'     

जिंदगी -दिन ब दिन

              जिंदगी -दिन ब दिन 

हरेक दिन कम हो रहा है ,जिंदगी का एक दिन
एक दिन  फिर आएगा वो,,हम न होंगे  एक दिन
हँसते रोते ,हमने यूं ही, काट दी ,ये  जिंदगी ,
साथ में थोड़े तुम्हारे ,और कुछ तुम्हारे  बिन
मस्तियों  में गुजारा करते थे हमतो अपने दिन ,
क्षीण होते जारहे है ,आजकल हम दिन बदिन
हरेक दिन बस इस तरह का चला करता सिलसिला ,
कोई दिन होता है अच्छा,कोई होता  बुरा दिन
हुए थे जिस रोज पैदा ,मनाते है हम जशन ,
श्राद्ध बच्चे  मनाएंगे, साल में फिर एक दिन

घोटू

कबूतर कथा

                       कबूतर कथा

एक कबूतर गर न उड़ता ,हाथ से मेहरुन्निसा के ,
            प्यार की एक दास्ताँ का ,फिर नहीं आगाज होता
संगेमरमर का तराशा और बेहद खूबसूरत,
            प्यार की प्यारी निशानी ,ताज भी ना आज होता
शरण में आये कबूतर को बचा राजा शिवि ने ,
             बाज को निज मांस देकर ,धर्म था  अपना निभाया
एक कबूतर वहां भी था,जहाँ बर्फानी गुफा में ,
               पार्वती जी को शिवा ने,अमर गाथा को सुनाया
न तो उड़ते अधिक  ऊंचे ,ना किसी को छेड़ते है,
                दाना जो भी उन्हे मिलता ,उसे खाकर दिन बिताते 
न तो कांव कांव करते ,और ना ज्यादा चहकते ,
                  पंछी मध्यम वर्ग के  ये बस 'गुटर गूं 'किये जाते
जब न टेलीफोन होते ,तो तड़फते प्रेमियों के ,
                गर कबूतर नहीं होते ,तो संदेशे  कौन  लाते 
 बहुत सीधे और सादे,काम से निज काम रखते ,
                 इसलिए ही तो कबूतर ,दूत शांति के कहाते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


                       कबूतर कथा

एक कबूतर गर न उड़ता ,हाथ से मेहरुन्निसा के ,
            प्यार की एक दास्ताँ का ,फिर नहीं आगाज होता
संगेमरमर का तराशा और बेहद खूबसूरत,
            प्यार की प्यारी निशानी ,ताज भी ना आज होता
शरण में आये कबूतर को बचा राजा शिवि ने ,
             बाज को निज मांस देकर ,धर्म था  अपना निभाया
एक कबूतर वहां भी था,जहाँ बर्फानी गुफा में ,
               पार्वती जी को शिवा ने,अमर गाथा को सुनाया
न तो उड़ते अधिक  ऊंचे ,ना किसी को छेड़ते है,
                दाना जो भी उन्हे मिलता ,उसे खाकर दिन बिताते 
न तो कांव कांव करते ,और ना ज्यादा चहकते ,
                  पंछी मध्यम वर्ग के  ये बस 'गुटर गूं 'किये जाते
जब न टेलीफोन होते ,तो तड़फते प्रेमियों के ,
                गर कबूतर नहीं होते ,तो संदेशे  कौन  लाते 
 बहुत सीधे और सादे,काम से निज काम रखते ,
                 इसलिए ही तो कबूतर ,दूत शांति के कहाते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, November 24, 2014

बुढ़ापे में-पत्नी के कितने ही रूप

   बुढ़ापे में-पत्नी के कितने ही रूप

उम्र के इस मोड़  पर
सभी बच्चों ने बसा लिया है अपना घर,
हमें तन्हा छोड़ कर
मैं और मेरी पत्नी,दोनों अकेले है ,
पर मिलजुल कर वक़्त काटते है
अपनी अपनी पीड़ाएँ ,आपस में बांटते है
कई बार ऐसे भी मौके आते है
मुझे अपने परिवार के लोग,
अपनी पत्नी में नज़र आते है
जैसे फुर्सत में कभी कभी ,
जब वो मेरे बालों को सहलाती है
मुझे बचपन में,मेरे बालों को सहलाकर ,
कहानी  सुनाती हुई 'दादी' नज़र आती है
और जब वो मेरी पसंद का खाना बना,
बड़ी मनुहार कर ,मुझे प्यार से खिलाती है
उसमे,मुझे  मेरी 'माँ'की छवि नज़र आती है
जब कभी बड़े हक़ से ,
छोटी छोटी चीजों के लिए जिद करती है
मुझे अपनी 'बेटी' सी लगती है
और जब नाज़ और नखरे दिखा कर लुभाती है
तब मुझे वो मेरी पत्नी नज़र आती है
कई बार मुझे लगता है कि इसी तरह ,
हम एक दूसरे में,अपना बिछुड़ा परिवार  ढूंढते है
 बस इसी तरह ,खरामा ,खरामा ,
 बूढ़ापे  के दिन कटते  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, November 23, 2014

जन्मदिन- अंदाज़ अपना अपना

    जन्मदिन- अंदाज़ अपना अपना

एक 'माया'मनाया करती थी अपना जन्मदिन,
                   हजारों के हजारों नोटों की माला पहन कर
एक 'मुलायम'ने मनाया ,बड़ी शौकत शान से ,
                     मंगाई लन्दन से बग्घी ,जुलुस निकला बैठ कर
केक लंबा पिचहत्तर फिट,मंगाया ,काटा ,गया ,
                    लोहियावादी मुखौटा,राजसी  अंदाज था
किन्तु 'मोदी'ने मनाया ,सादगी से जन्म दिन,
                    बिना आडम्बर किये और माँ का आशीर्वाद पा

घोटू 

Thursday, November 20, 2014

निमंत्रण

           निमंत्रण

दे गए मुझको निमंत्रण ,स्वप्न थे कल रात आ के
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी कामना   से
तुम्हारे स्वर्णिम बदन पर ,कल सुबह हल्दी चढ़ेगी
चन्द्र मुख यूं ही सुहाना  ,चमक और ज्यादा बढ़ेगी
तारिका की चुनरी में ,सज संवर तुम आओगी  तो,
यूं ही तो मैं  बावरा हूँ , धड़कने  मेरी   बढ़ेगी
देख कर सौंदर्य अनुपम ,गिर न जाऊं डगमगा के
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी कामना से
शाम मैं घोड़ी चढूंगा,आऊंगा  बारात लेकर
डाल वरमाला  गले में ,बांध लोगी तुम उमर भर
मान हम साक्षी अगन को ,सात फेरे ,साथ लेंगे ,
सात वचनों को में बंधेंगे ,निभाने को जिंदगी भर
तृप्ती कितनी पाउँगा में ,सहचरी  तुमको बना के 
कल मेरे अरमान की शादी तुम्हारी   कामना से

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आम का वृक्ष -उमर का असर

          आम का वृक्ष -उमर का असर

आम का वृक्ष,
जो कल तक ,
दिया करता था मीठे फल
अब छाँव देता है केवल
इसलिए उपेक्षित है आजकल
भले ही अब भी ,
उस पर कोकिल कुहकती है
पंछी कलरव करते है,
शीतल हवाएँ बहती है
पर,अब तो बस केवल
पूजा और शुभ अवसरों पर ,
कुछ पत्ते बंदनवार बना कर ,
लटका  दिये जाते है
जो उसकी उपस्तिथि  अहसास आते है
उसके अहसानो का कर्ज ,
इस तरह चुकाया जाता  है
कि उसकी सूखी लकड़ी को,
हवन में जलाया जाता है
फल नहीं देने  फल ,
उसे इस तरह मिल रहा  है 
आम का वृक्ष ,
अब बूढ़ा जो हो रहा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन संध्या

       जीवन संध्या

बड़ी बड़ी बुलंद इमारतें भी ,
शाम के धुंधलके में ,
नज़र  नहीं आती है
अस्तित्व होते हुए भी ,
 गुम  हो जाती है
ऐसा ही होता है,
जब जीवन की संध्या आती है

घोटू

बदलाव -बढ़ती उमर का

            बदलाव -बढ़ती  उमर का

पेट कल भी भरा करता था इसी से ,
                पेट भरती  आजकल  भी तो यही है
फर्क ये है कल गरम फुलका नरम थी,
                आजकल ये डबल रोटी   हो गयी  है
साथ जिसके जागते थे रात भर हम ,
                  जगाती  है हमें अब भी ,रात भर वो
तब जगा  करते थे मस्ती मौज में हम,
                 नहीं सोने देती है अब खांस कर वो
पहले सहला ,लगा देते आग तन में,
                 हाथ नाजुक ,कमल पंखुड़ी से नरम जो
हो गए है आजकल वो खुरदुरे से ,
                 अब भी राहत देते है खुजला   बदन को
था  ज़माना प्रेम से हमको खिलाती ,
                  कभी रसगुल्ला ,जलेबी या मिठाई
आजकल  मिठाई पर पाबंदियां है ,
                  देती सुबहो शाम है हम को दवाई  
रोकती हमको पुरानी हरकतों से ,
                   कहती ब्लडप्रेशर  तुम्हारा बढ़ न जाये
जोश होता हिरण ,रहते मन मसोसे ,
                    बुढ़ापे ने हमको क्या क्या  दिन दिखाये

मदन मोहन बाहेती''घोटू'

Monday, November 17, 2014

तुम्हारे हाथों में

              तुम्हारे हाथों में

जो हाथ पकाते जब खाना ,तो गजब स्वाद भर जाता है
छू लेती जिन्हे हरी मेंहदी ,तो लाल रंग   रच जाता   है
जिन हाथों का कर पाणिग्रहण ,रिश्ता बंधता जीवन भर का
जिन हाथों की ही फुर्ती से ,चलता है काम सभी घर का
जो हाथ प्रेम से सहला कर ,पति मन में प्रेम जगाते है
जिन हाथों के ही बाहुपाश में ,दो प्रेमी बंध  जाते है
जिन हाथों में आ पैसा भी ,बहती गंगा बन जाता है
बस एक इशारा जिनका सब पतियों को खूब नचाता है
जिन हाथों में बेलन आता ,तो रोटी बना खिलाता है
गुस्से में पर वो ही बेलन ,हथियार बड़ा बन जाता है
रोता बच्चा खुश हो जाता है आकर के जिन हाथों में
अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में
 
मदन मोहन  बाहेती'घोटू'

Sunday, November 16, 2014

            कर्णधारों से

कितने ही ताले लगवा लो ,दरवाजे तुम बंद  करवा लो
सीमाओं पर तुम कितने ही ,काँटेवाले  तार लगालो 
लेकिन जब तक मुस्तैदी से,अगर चौकसी नहीं बढ़ेगी
तब तक इन दहशतगर्दों की ,आवाजाही  नहीं रुकेगी
ताले चोरी नहीं रोकते ,     उलटे चोरी करवाते है
जब सूनापन सा दिखता है,चोर दिवार  फांद आते है
कोई चौकीदार अकेला ,चोरी नहीं रोक पाता   है
हमें जागरूक वो करता है ,चोर तभी तो घबराता है
आमंत्रित कर रहे चोर को ,दरवाजे पर लटका ताला
किन्तु सुरक्षा के चक्कर में ,तुमने क्या निर्णय ले डाला
काश्मीर में बढ़ा सुरक्षा ,राजस्थानी सीमा सूनी
दुश्मन को आवाजाही की ,छूट मिला करती है दूनी
इससे ज्यादा बेहतर ये है ,बढे चौकसी और निगरानी
खुली रखें सब अपनी आँखें ,तभी सुरक्षित घर के प्राणी
 सीमा पर प्रहरी बढ़वाओ, अच्छा बंदोबस्त रहेगा
हो सतर्क हर एक नागरिक,तभी सुरक्षित देश रहेगा
कम जाते है चोर जहाँ पर ,चहल पहल रहती रौनक है
सीमा पर बढ़ जाए सजगता ,सबसे ज्यादा आवश्यक है
हमें सुरक्षा घरवालों की ,करना है देख भाल जरूरी 
बूढ़े,बच्चे ,महिलाओं की  ,दिक्कत का भी ख्याल जरूरी
लेकिन जब तक चौकीदारी और सुरक्षा ना सुधरेगी 
दरवाजे बंद करवाने से ,दहशतगर्दी  नहीं  रुकेगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 14, 2014

शिकायत-तकिये की

         शिकायत-तकिये की

एक तकिये ने अपनी मालकिन से की ये शिकायत ,
              अकेले छोड़ कर के  साहब को जब आप जाते है
आप तो चैन से मइके में जाकर मौज करते है,
                इधर दो रात मे ही निकल मेरे प्राण   जाते है
बदल जाता है मेरा हुलिया ,हालत बिगड़ती है,
                 मौन सहता हूँ सब कुछ ,बोल भी तो मैं नहीं  सकता,
कभी टेढ़ा ,कभी सीधा,कभी ऐसे ,कभी वैसे,
                  बड़ी बेरहमी से साहब जी, मुझको दबाते है

घोटू 

जाती बहार के फल

        जाती बहार के फल

खिलता है तो लगता है सुहाना और महकता ,
                मौसम में  हर एक फूल पर चढ़ता शबाब है
अनुभव की बात आपको लेकिन हम बताएं ,
                  गुलकंद बन ,अधिक मज़ा देता  गुलाब है
मौसम में तो मिलते थे हमें रोज ही खाने ,
                  अब मुश्किलों से मिलते है,वो भी कभी कभी,
खाकर के देखो आम तुम जाती बहार के ,
                    पड़ जाते नरम,स्वाद में पर लाजबाब है

घोटू

बढ़तीं उमर की रईसी

          बढ़तीं उमर की रईसी

हम हो गए रईस है इस बढ़ती उमर में,
         सर पर है चांदी और कुछ सोने के दांत है
किडनी में,गॉलब्लेडर में ,स्टोन कीमती,
         शक्कर का पूरा कारखाना ,अपने साथ है
अम्बानी के तो गैस के कुवें समुद्र में ,
         हम तो बनाते गैस खुद ही ,दिन और रात है
है पास में इतना बड़ा अनुभव का खजाना ,
         जिसको कि बांटा करते है हम ,खुल्ले हाथ है    

घोटू

पूजा और प्रसाद

         पूजा और प्रसाद

बाद शादी के पडी बस ये ही आदत
किया करते रोज पत्नी की इबादत
और खाने मिल रहे पकवान तर है
चैन से ये जिंदगी होती बसर  है
नहीं पत्थर की प्रतिमा पूजते हम
हुस्न की जीवित प्रतिमा पूजते हम
पूर्ण श्रध्दा ,आस्था की  भावना से
सर नमाते,प्रेम की हम  कामना से
देवी के श्रृंगार हित नव वसन  लाते
स्वर्ण आभूषणो से उसको सजाते
प्रेम की भर भावना और जोश तन में
रतजगा भी किया करते ,कीर्तन में
आरती में लीन  होते,लगन से हम
भोग का परशाद पाते है तभी हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर्दी जुकाम

           सर्दी  जुकाम

गमन आगमन पवन किया करती जिस पथ पर ,
                   उस पथ से अब बहती  गंगा जमुना  धारा
दबी पवन उद्वेलित होकर बड़े कोप से ,
                  छूट   तोप की तरह  ,गूंजा देती घर सारा
शीत  हो रही व्याप्त  और मौसम सिहरन  का ,
                  चली गयी है ऊष्मा फिर भी तप्त  बदन है
नहीं समझ में आता है क्या मुझे हुआ है ,
                   बैचैनी सी छाई ,तन में भारी पन  है
मुश्किल होती ,श्वासोच्छ्वास  मुझे  करने में ,
                   और चैन से सोना आज हराम होगया
अम्मा बोली,घुमा फिरा कर बातें मत कर ,
                  काढ़ा पी ले,तुझको सिर्फ  जुकाम होगया

घोटू

वक़्त वक़्त की बात

            वक़्त वक़्त की बात

रहता किसी  का  वक़्त  कभी  एक सा नहीं
किस्मत बदलती सबकी जब आता समय सही
रहती  है  दबी  ,आठ माह ,बक्से  के अंदर
मौसम में सर्दियों के जब  आती है निकल कर
तो प्यार सबका कितना फिर पाती रजाइयां
कितने  हसीन  जिस्मो  पर, छाती रजाइयां
हम भी रजाई की तरह ,अरमान   दबाये
बैठे है इन्तजार में  कि  अच्छे  दिन आएं
किस्मत हमारी ,हम पे भी हो  जाये मेहरबाँ
हमको भी अपनी बाहों में भर लेगी  दिलरुबां

घोटू

नाम का क्या काम

            घोटू के छक्के          
           नाम का क्या काम
                       १
'सर 'सर'कह कर जूनियर ,सर पर हमें चढाय
और अफसर ,सर नेम से,केवल  हमें  बुलाय 
केवल  हमें  बुलाय ,कहे 'लल्लाजी '  भौजी
बीबी काम  चलाय हमें कह 'ऐ  जी' ओ  जी'
बच्चे कहते 'पापा 'और  'मुन्ना'  माताजी
और 'साहब जादे 'कहते  है हमें   पिता जी
                        २
लम्बे चौड़े नाम का ,फैशन अब गुमनाम
'शार्ट फॉर्म 'के नाम से ,अब चलता है काम
अब चलता है काम ,हमारे इनिशियल से
 कोई  हमें जानता सिरफ़  फ्लेट  नंबर से
कह 'घोटू' कविराय ,कहे कन्याये 'अंकल'
चेहरा,नाम 'फेस बुक' पर ही दिखता केवल

घोटू

Wednesday, November 12, 2014

स्वच्छता अभियान

           स्वच्छता अभियान

तेरे मन में ,मेरे मन में,सबके मन में मैल ,
                              निकाले उसको  कैसे ?
लालच,स्वार्थ ,घृणा ,हिंसा का कचरा  फैला
                               बुहारे    उसको  कैसे ?
चला स्वच्छ अभियान ,हाथ में झाड़ू लेकर
 हटा  गंदगी, होगे  गाँव,सड़क ,सब सुन्दर
इधर उधर बिखरा कचरा तो बुहर  जाएगा
लीप पोत  कर ,रंग घरों का निखर जाएगा
किन्तु स्वच्छता तन संग, मन की आवश्यक है ,
                                       सँवारे  उसको कैसे?
तेरे मन में,मेरे मन में  ,सबके मन में  मैल ,
                                        निकाले उसको कैसे?
कलुषित हुए विचार,मनो पर मैल  चढ़ रहा
दिन दिन बेईमानी ,भ्रष्टाचार  बढ़  रहा
भुला दिए आदर्श,संस्कृति ,संस्कार  के
नित्य उजागर काण्ड हो रहे व्यभिचार के
चिंदी चिंदी बिखर रही है ,अबलाओं  की लाज,
                                 संभाले उसको कैसे ?
मेरे मन में,तेरे मन में,सबके  मन में मैल  ,
                                  निकाले उसको कैसे?

मदन मोहन बाहेती''घोटू'

Wednesday, November 5, 2014

मेंहदी

                   मेंहदी

हरे पत्ते थे  झाडी  के,  खड़े  थे  यूं  ही जंगल में
मगर किस्मत गयी उनकी ,बदल बस एक ही पल में
हुए कुर्बान पिस कर के ,हुस्न का साथ जब पाया
हाथ में उनके जब आये ,रंग किस्मत का पलटाया
हो गया लाल रंग उनका , समां  कर तन में गौरी के
छोड़ दी छाप कुछ ऐसी  ,बस गए मन में गौरी के
सुहागन सज गयी प्यारी ,पिया ने  हाथ जब  चूमा
प्यार कुछ ऐसा गरमाया ,चढ़ गया  रंग दिन दूना
नहीं इतना सिरफ़ केवल,जोर किस्मत ने फिर मारा
चढ़ा कर सर पे गौरी ने ,सजाया रूप निज प्यारा
रंग लिए केश सब अपने ,चमक जुल्फों में यूं आयी
छटा बालों की यूं निखरी ,सभी के मन को वो भायी
चिन्ह सुहाग का तब से ,बतायी जाती  मेंहदी है
तीज,त्योंहार,शादी में ,लगाई जाती मेंहदी  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, November 4, 2014

इलाज बतलाइये

         इलाज बतलाइये

किसी चीज को अगर चलाना ,लुब्रिकेंट लगाते है
इससे वो अच्छी चलती है,ऐसा लोग बताते  है
खुश्की की खुजली चलती है,जब जब सर्दी आती है
लुब्रिकेंट लगा देने से ,लेकिन कुछ  थम जाती  है
उल्टा चक्कर,परेशान पर ,मैं  खुश्की की खुजली से
कोई यदि उपचार बता दे ,धन्यवाद  दूंगा  जी से

घोटू

धरम-करम

          धरम-करम

धर्म के नाम पर केवल,हजारों खर्च कर देंगे
मगर भूखे गरीबों को,चवन्नी तक नहीं देंगे
मोक्ष की कामना या लालसा ले स्वर्ग की मन में,
तीर्थ और देव दर्शन में ,बिता सारी उमर देंगे
पुजारी पंडितों ने बुन रखे है जाल कुछ ऐसे ,
बनाये उस शिकंजे में ,फंसा हम अपना सर देंगे
पेट भूखे का भर दो गर ,मदद निर्धन की करदो गर
तहे दिल से दुआएं वो ,तुम्हे सारी  उमर  देंगे
मगर पाखंडियों के फेर  में जो रहोगे  उलझे ,
पता ना कल को क्या होगा ,बुरा वो आज कर देंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शोर या रौनक

             शोर या रौनक

डालों पर पंछी बैठे हो ,और नहीं हो कुछ कलरव
सन्नाटा छाया हो तरु पर ,नहीं कभी भी यह संभव
चार औरतें यदि मिल बैठे ,और छाई हो चुप्पी सी
वैसे ये तो नामुमकिन है ,क्या हो सकता  ऐसा भी
मंदिर में घंटा ध्वनी ना हो,और नहीं संकीर्तन हो
मन भक्तों का नहीं लगेगा ,न ही रुचेगा  भगवन को
बच्चे वाले घर में ना हो,शोर शराबा ,चहल पहल
ऐसे घर में मुश्किल होता ,हमें बिताना ,पल,दो पल
बीबी की हरदम की बक बक ,हमको बड़ा सुहाती है
इसी बहाने घर में  थोड़ी ,   रौनक तो हो जाती  है
बच्चे और बीबी  की बातें ,रौनक है,मत शोर कहो
है जीवन का ये सच्चा सुख ,सुन आनंद विभोर रहो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नव कविता

          नव कविता

मैंने  उनकी  सुंदरता  पर
चार पंक्तियाँ लिख दी केवल
उनने मुझे दे दिया उत्तर
एक प्यारा सा चुम्बन देकर
मेरी कलम सख्त,मसि काली
उनके होंठ नरम और लाली
मैंने शब्दों में उलझाया
उनने  जुल्फों में उलझाया
मेरी भाषा अलंकार की
उनकी भाषा शुद्ध प्यार की
मेरे शब्द पड़  गए बौने
जब उनके नाजुक होठों ने
मन का सारा प्यार घोल कर
मेरे कागज़ से कपोल पर
अपनी सुन्दर,प्यारी लिपी में
बड़े प्यार से, धीमे ,धीमे
ऐसा सुन्दर कुछ लिख डाला
जिसने किया  मुझे मतवाला
सिर्फ लेखनी की छुवन ने
उनकी मदमाती चितवन ने
ऐसी कविता मुझे सुना  दी
मेरे तन में आग लगा दी
दीवाना होकर पागल मैं
कलम छोड़ कर प्रत्युत्तर में
उनकी अपनी ही शैली में
प्यारी,मनहर,अलबेली में
उनकी ही भाषा में सुन्दर
उनके तन पर ,उनके मन पर
जगह जहाँ भी पायी खाली
मैंने नव कविता लिख डाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, November 2, 2014

सर्दी का आगाज

           सर्दी का आगाज

कल नारियल के तैल की शीशी में ,हिमकण से दिखलाये
कल दादी ने रात को ओढ़ने को ,कम्बल थे निकलाये
कल.अल्पवस्त्रा ललनाएँ ,वस्त्र से आवृत  नज़र आयी
कल सवेरे सवेरे ,कुनकुनी  सी धूप थी मन को भाई 
कल ठन्डे पानी से नहाने पर ,सिहरन सी आने लगी थी
कल से  पूरे बदन में कुछ खुश्की  सी  छाने लगी थी
कल पंछी अपने अपने  नीड़ों में कुछ जल्दी जा रहे थे
कल बिजली के पंखे के तीनो  ही पंख नज़र आ रहे थे
कल रात थोड़ी लम्बी और दिन लगा  ठिगना  था
कल हमारे बदन से भी हुआ गायब  सब पसीना  था
कल सुबह कुछ कोहरा था , बदन  ठिठुराने लगा है 
ऐसा लगता है कि अब सर्दी का मौसम आने लगा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, November 1, 2014

मिज़ाज़ -मौसम का

             मिज़ाज़ -मौसम का

बदलने लग गया है इस तरह मिज़ाज़ मौसम का,
कभी सर्दी में गर्मी है कभी बरसात रहती है
हवा के रुख का बिलकुल भी ,नहीं अबतो पता चलता ,
कभी थमकर के रह जाती ,कभी तेजी से बहती है
बदलने लग गयी है ऐसे ही इंसान की फितरत ,
भरोसा क्या करे,किस पर ,पता ना कब दगा दे दे ,
भुला बैठा है सब रिश्ते ,पड़ा है पीछे  पैसों के ,
करोड़ों की कमाई की ,हमेशा  हाय रहती  है
कमाने की इसी धुन में ,हजारों गलतियां करता ,
भुला देता धरम ईमान और सच्चाई का रास्ता ,
पड़ा  नन्यानवे  के  फेर में रहता भटकता  है,
उसे अच्छे बुरे की भी ,नहीं पहचान  रहती   है
इमारत की अगर बुनियाद ही कमजोर हो और फिर,
मिला दो आप सीमेंट में,जरुरत से अधिक रेती ,
बिल्डिंगें इस तरह की अधिक दिन तक टिक नहीं पाती  ,
जरा सा झटका लगता तो,बड़ी जल्दी से ढहती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तकिया-प्यार की दीवार

        तकिया-प्यार की दीवार

बिस्तरे पर पड़ा रहता ,यूं ही आँखें मीच मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी,तकिया हमारे बीच में
 
नरम और चिकना ,मुलायम,सुहाना अनमोल था
बाहों में कितना दबालो ,नहीं कुछ भी बोलता
कभी था सर का सिरहाना ,देता सुख की नींद था
और विरह के पलों में जो  तुम्हारे  मानिंद  था
नियंत्रित वो आजकल, कर रहा अपना प्यार है
बीच  में  मेरे तुम्हारे ,बन  गया  दीवार  है
बीच में संयम का दरिया हम न करते पार ,पर
बदलते रहते है करवट,तुम इधर और मैं उधर
चाहता हूँ पार करना ,रोज ये दहलीज   मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी ,तकिया हमारे बीच में
एक इसके साथ ही थे ,रात भर हम जागते
एक इसके सामने ही ,लाज थे हम त्यागते
एक ये ही साक्षी है  अपने मिलन,उन्माद का 
एक ये ही था सहारा ,सुख,शयन का,रात का
आजकल संयम शिखर सा ,बीच में है ये खड़ा
मौन मैं भी,मौन तुम भी ,मौन ये भी है पड़ा
मन बहलता आजकल बस दूर से ही देख कर
इधर मै प्यासा  तरसता ,तड़फती हो तुम उधर
देख ये बाधा मिलन की बहुत जाता खीज मै
नींद क्या खाक आएगी  ,तकिया हमारे बीच में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेल

                        मेल
इस दुनिया में बहुत से लोग ऐसे भी खिलाड़ी है ,
          दिलों से खेलना जिनके लिए एक खेल होता है
बहुत इतराते है कुछ तिल ,जो उनके गाल पर बैठे ,
         मगर ये तिल ,नहीं वो तिल कि जिनमे तैल होता है
परीक्षा प्यार की हर एक को ही देनी पड़ती है ,
         नतीजा जब निकलता   पास ,कोई फ़ैल होता है
यूं मिलना जुलना तो किसी से कब भी हो सकता,
         नहीं हो मैल जब मन में ,तो मन का मेल   होता है

घोटू

कम्बल

            कम्बल

मुश्किल से ही मिल पाता  है ,
            जो सुख हमको केवल,कुछ पल
उस सुख से लाभान्वित होते ,
                  रहते हो तुम,रात रात भर 
बड़े प्यार से छाये रहते
                  हो गौरी के तन के ऊपर
लोग तुम्हे कहते  है कम्बल ,
                   पर तुममे सबसे ज्यादा  बल

घोटू

पहली तारीख

             
                    
                   पहली तारीख
 
पहली तारीख की रही ना,पहली वाली बात अब,
          नगद नोटों में मिला करती थी हमको सेलरी
एक दिन तो समझते थे ,हम भी खुद को बादशाह,
            जब कि  नोटों से हमारी ,जेब रहती थी भरी 
करती थी बीबी प्रतीक्षा,बना अच्छा नाश्ता ,
            बच्चों की फरमाइशों का दौर आता था नया
जब से तनख्वाह बैंक में होने लगी है ट्रांसफर ,
            वो करारे नोट गिनने का का सुहाना थ्रिल गया

घोटू

Thursday, October 30, 2014

रिश्ते ऊपर से बन आते है

      रिश्ते ऊपर से बन आते है

एक अनजान औरत ,
एक अनजान आदमी की,
बन जाती  है  सच्ची दोस्त और हमसफ़र
और उसके संग ,  जाता है बंध ,
एक इस तरह का बंधन ,
जिसे निभाया जाता है सारी उमर भर
ये नियति है या भाग्य का लेखा ,
जो एक अनजान,अनदेखा ,
दुनिया में सबसे ज्यादा प्यारा  लगने लगता है
क्या ये बंधन वरमालाये पहनाने से,
या कुछ कसमे खाने से ,
या अग्नी के सात फेरे लगा लेने  से बनता है
एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण ,
अपना सब कुछ अर्पण
चंद रस्मो रिवाजों से ही नहीं होता है
हम ये जानते है
इसलिए ये बात नहीं मानते है ,
जब लोग कहते,शादी एक समझौता है
कोई कहीं का  रहनेवाला 
कोई कहीं की रहनेवाली पर,
अपना सब कुछ  ऐसे ही नहीं लुटाता  है
,इसलिए हम मानते है,
पति और पत्नी का रिश्ता
ऊपर वाले के यहाँ से ही बन कर आता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शादी या दीवाली

             शादी या दीवाली

लटकती बिल्डिंगों पर जगमगाती ,इस तरह लड़ियाँ ,
            सजाया जैसे हो चेहरा ,किसी दूल्हे के चेहरे पर
खिल रहे फूल अरमानो के जैसे फुलझड़ी ,झड़ती,
            फटाखे फूटते मन में ,मिलन के ख्वाब रहरह कर
दिये से टिमटिमाते है ,कई सपने निगाहों में ,
             घड़ी वो आएगी कब जब करेंगे  लक्ष्मी  पूजन ,
भले ही बात ये मालूम है हमको,उन्हें,सबको,
             दिवाली चार दिन की,बाद में फिर रोज का चक्कर

घोटू 

कार का पुराना मॉडल

        कार का पुराना मॉडल

हमारी कार का मॉडल,पुराना  हो गया है पर ,
          अभी बकरार इंजिन का ,वही जलवा पुराना है
अभी भी स्टीयरिंग में और गियर में जान है वो ही ,
          वही रफ़्तार है कायम ,सफर वो ही सुहाना  है
ये दीगर बात है कि शॉक अब्सोर्बर पड़े ढीले,
            और टायर भी थोड़े घिस गए है इतना चल चल के ,
समय के साथ थोड़ा रंग भी है पड गया फीका, 
            फसें हम  प्यार में उसके ,वही गाडी चलाना   है           

घोटू

देशी विदेशी पकवान

            देशी विदेशी पकवान

होते है कुछ लोग पीज़ा की तरह ,
                     बेस में तो होते सादा ब्रेड से
किन्तु ऊपर से परत है चीज की ,
                 और भांति भांति के टॉपिंग सजे
और  कुछ होते परांठे आलू के,
                   देशी घी में नीचे से ऊपर सिके
भरा दिल में है मसाला चटपटा ,
                  स्वाद प्यारा और करारे भी दिखे
वैसे ही कुछ लोग पेस्ट्री की तरह ,
                   क्रीम से रहते है बस केवल ढके
कुछ है रसगुल्ले जलेबी की तरह ,
                     रहते पूरे  पूरे ही रस से  पटे
 देखलो देशी विदेशी फ़ूड में ,
                     फर्क रहता स्वाद में है किस क़दर
विदेशी में है दिखावा ऊपरी ,
                     और देशी प्यार से है तर बतर

घोटू

Monday, October 27, 2014

हुस्नवाले

    हुस्नवाले

नज़र उठाते ,तो सबको कर देते घायल
नज़र झुकाते तो हामी का देते सिग्नल
हुस्नवालों ने भी ये कैसी अदा पायी है
मन में तो'हाँ' है ,मुंह पर मनाही  है
बड़ा अजीब होता हसीनो का है ये चलन
कत्ल भी करते है,चेहरे पे नहीं लाते शिकन 
नजाकत और जलवे बेमिसाल होते है
ये हुस्नवाले भी सचमुच कमाल होते है 
घोटू

कुछ हम भी खुश हो लेते है

        कुछ हम भी खुश हो लेते है

जीवन माला में मोती सा ,उनका प्यार पिरो लेते है
कुछ उनको खुश कर देते है,कुछ हम भी खुश हो लेते है
वो कैसी भी हो कह देते ,बेहद आप खूबसूरत  हो
हंसती हो तो फूल खिलाती,तुम सुंदरता की मूरत हो
तारीफ़ करके, उनके मन में ,बीज प्यार  बो लेते  है
कुछ उनको खुश कर देते है, कुछ हम भी खुश हो लेते है
उनकी कार्य दक्षता के हम,सब के आगे गुण  गाते है
वो कैसा भी पका खिलाये ,हम तारीफ़ करके खाते है
उनके प्रेमपात्र बन कर हम ,उनका प्यार संजो लेते है
कुछ उनको खुश कर देते है,कुछ हम भी खुश हो लेते है
 आप बांटते जितनी खुशियां,बदले में दूनी मिलती है 
लेनदेन के इसी चलन से ,जीवन की बगिया खिलती है 
उनको मीठी नींद सुला कर,हम भी थोड़ा सो लेते है
कुछ उनको खुश कर देते है ,कुछ हम भी खुश हो लेते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम पटाखे

        हम पटाखे

हम पटाखे ,हमारा अस्तित्व क्या ,
           जब तलक बारूद,  तब तक जान है
कोई चकरी की तरह है नाचता ,
           कोई उड़ कर छू रहा आसमान है
कोई रह जाता है होकर फुस सिरफ ,
           जिसमे दम है वो है बम सा फूटता
फूल कोई फुलझड़ी से खिलाता,
           कोई है अनार  बन  कर  छूटता
पटाखे ,इंसान में एक फर्क है ,
            आग से आता पटाखा   रंग में
और इन्सां रंग दिखाता उम्र भर ,
              आग में होता समर्पित  अंत में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

कॉंग्रेस की दीवाली

   कॉंग्रेस की दीवाली

झड़ी झड़ी सी फुलझड़ी ,लगे सोनिया मेम
राहुल बम फुस हो गया,ऐसा बिगड़ा  गेम
ऐसा बिगड़ा गेम ,दिवाली ये दुखदायी
महाराष्ट्र और हरियाणा में नाक कटाई
यूं ही ज्यों त्यों हार ,कहाँ त्योंहार मनाये
कांग्रेस का ग्रेस गया,मुंह किसे दिखाए

घोटू

फूटे हुए पटाखे हम है

                  फूटे हुए पटाखे हम है

सूखी  लकड़ी मात्र नहीं हैं,हम खुशबू वाले चन्दन है
जहाँ  रासलीला होती थी,वही पुराना  वृन्दावन है
कभी कृष्ण ने जिसे उठाया था अपनी चिट्टी ऊँगली पे,
नहीं रहे हम अब वो पर्वत,अब गोबर  के गोवर्धन है
हरे भरे और खट्टे मीठे , अनुभव वाली कई सब्जियां ,
मिला जुला कर गया पकाया ,अन्नकूट वाला भोजन है
बुझते हुए दीयों के जैसी ,अब आँखों में चमक बची है,
जब तक थोड़ा तेल बचा है,बस तब तक ही हम रोशन है
ना तो मन में जोश बचा है,ना बारूद  भरा है तन में,
जली हुई हम फूलझड़ी है,फूटे हुए पटाखे,बम  है

घोटू

Tuesday, October 21, 2014

अपनेवाले

            अपनेवाले

अपने वाले ही बस अपने वाले होते
जो सुखदुख में संगसंग तपनेवाले होते
हर मुश्किल में खुद बढ़ आगे आया करते
हरेक काम मे अपना हाथ बटायां करते
सभी समस्याओं को जो सुलझाया करते
निज जी जान लगा कर खपने वाले होते
अपने वाले तो बस अपने वाले होते
'हाय ,हेल्लो 'के दोस्त प्रीत मुँहदेखी करते
अच्छे दिन में बातें मौज मज़े की करते
पर जब जरुरत पड़ती ,हाथ खींच लेते है,
साथी वो तो बस है सपने वाले   होते
अपने वाले तो बस अपने वाले होते
कुछ रिश्ते ऐसे होते, बस बन जाते है
ये तब होता जब मन से मिल मन जाते है
नहीं जरूरी है हो रिश्ता सिर्फ खून का ,
कई प्यार की माला जपने वाले होते
अपने वाले तो बस अपने वाले  होते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पटाखा तुम भी-पटाखा हम भी

             पटाखा तुम भी-पटाखा हम भी

छोड़ती खुशियों का फव्वारा तुम अनारों सा,,
              हंसती तो फूलझड़ी जैसे फूल ज्यों झरते
हमने बीबी से कहा लगती तुम पटाखा हो ,
             सामने आती हमारे ,जो सज संवर कर के
हमने तारीफ़ की,वो फट पडी पटाखे सी,
            लगी कहने  पटाखा मैं  नहीं ,तुम हो डीयर
मेरे हलके से इशारे पे सारे रात और दिन,
           काटते रहते हो,चकरी  की तरह,तुम चक्कर 
भरे बारूद से रहते हो ,झट से फट पड़ते,
           ज़रा सी छूती  मेरे प्यार की जो चिनगारी
लगा के आग,हमें छोड़, दूर भाग गयी,
            हुई  हालत हमारी ,वो ही  पटाखे वाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, October 20, 2014

वो बात अब न रही

             वो बात अब न रही

जी तो करता है मेरा ,ये भी करू,वो भी करू,
         मगर मैं क्या करूं ,ये उम्र साथ अब न रही
न तो हम में ही रहा जोश वो जवानी का,
           तुम्हारे जलवों में वैसी बात अब न रही 
फ़ाख़्ता मारते थे जब मियां ,वो दिन न रहे,
           सितारे तोड़ के लाने की उमर बीत गयी,
अब तो अखरोट भी हम तोड़ नहीं पाते है,
          रंगीले दिन और सुहानी वो रात अब न रही
ज़माना वो भी था जब हम पतंग उड़ाते थे,
          माशुका  हाथ में चरखी ले ढील देती  थी,
 हम खुद ही हो गए है इस कदर ढीले ,
           वक़्त की डोर भी तो अपने हाथ अब न रही
बहुत ही चौके और छक्के जड़े  जवानी में ,
            समय के आगे मगर हुए 'कैच आउट'हम
अब तो हम 'पेवेलियन'छोड़ कर जाने वाले ,
           हमारे  बल्ले में वो करामात अब न  रही
कभी डंका हमारे नाम का भी बजता था,
         हमारी आरती भी लोग उतारा करते ,
ज़माना करता नमस्कार चमत्कारों को ,
        हमारे जादू में भी वैसी बात अब न रही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

विदेशी हूर-स्वाद भरपूर

           विदेशी हूर-स्वाद भरपूर

'पीज़ा'की तरह चीजी है चेहरा ये तुम्हारा ,
             टॉपिंग बदल के  कितने ही मन को हो लुभा रही
ज्यूसी हो 'पास्ते'की तरह नास्ते में तुम,
           'बर्गर'की तरह टेस्ट  में हो हम को भा रही
हो 'ग्रिल्ड सेन्डविच'सी  ताज़ी,गरम गरम ,
                 स्वादिष्ट और हेंडी तुम 'फ्रेंच फ्राई'सी
लगती विदेशी हूर सी भरपूर स्वाद में ,
            'क्रीमी'हो 'पेस्ट्री की तरह ,मुझ पे छारही

घोटू

ब्यूटी चाइनीज-कितनी लजीज

  ब्यूटी चाइनीज-कितनी लजीज

लगती हो 'मंचूरियन 'जैसी,सॉफ्ट सॉफ्ट  तुम ,
               नूडल की तरह लटक रहे सर के बाल है    
नाइस सा प्यार स्वाद'फ्राइड राईस'की तरह,
               'स्प्रिंग रोल 'की तरह   तू  बेमिसाल  है
हो कभी 'चॉप्सी'की तरह लगती कुरमुरी ,
              'चिली पनीर' की तरह का   टेस्ट है कभी ,
तू है लजीज ,चाइनीज फ़ूड की तरह,
              'चिल्ली पोटेटो' की तरह  जलवा कमाल है

घोटू

Saturday, October 18, 2014

ऑरेन्ज काउंटी का नया 'स्पा'

     ऑरेन्ज काउंटी का नया 'स्पा'
                        १ 
पत्नी जी स्पा गयी,लाई रूप निखार
पतझड़ वाले पेड़ पर,आयी नयी बहार
आयी नयी बहार,बाल रंगवाये काले
'कर्लिंग कर्लिंग'प्यारे लेटेस्ट फैशनवाले
'घोटू'खुश है किस्मत उनपर हुई मेहरबां
पेंसठ की बीबी ,पेंतीस सी ' लगे है जवां
                        २
देखा कायाकल्प ये ,उनका निखरा रंग
फिर से दिखें जवान हम,मन में उठी उमंग
मन में उठी उमंग,जोश कुछ ऐसा आया
'स्पा'जा हमने 'पेडी मेनी क्योर'कराया
करा 'फेशियल 'मुंह की रंगत ,हुई सुहानी
और 'बॉडी मसाज'लाई फिर नयी जवानी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

Friday, October 17, 2014

दक्षिण भारतीय व्यंजन और हुस्न

         दक्षिण भारतीय व्यंजन और हुस्न

सुन्दर है प्यारा  चेहरा ,जैसे हो 'उत्तप्पम'
           'रस्सम 'के जैसी चटपटी ,'साम्भर 'सी स्वाद हो
'डोसे 'की तरह पूरी मसाले से भरी हो,
             'उपमा' हो कभी  और  कभी 'दही भात ' हो
'इडली'से नरम गाल ,जिनमे 'मेदूबड़े 'से,
             पड़ते है डिम्पल ,हंसती ,लगती  लाजबाब हो
हो 'केसरी हलवे'सी मीठी और रस भरी,
              जाने बहार  तुम  किसी  भूखे  का  ख्वाब हो

घोटू 

हुस्न या मिठाई की दूकान

          हुस्न या मिठाई की दूकान


सुन्दर तिकोनी नाक ज्यों  बर्फी बादाम की,
                  हो  टेढ़ीमेढ़ी  जलेबी या जैसे इमरती
है गाल भी गुलाबजामुन जैसे रसीले ,
                 रबड़ी के लच्छों की तरह बात तुम करती     
तन में भरे है  जैसे लड्डू मोतीचूर के,
                  मीठा है बड़ा स्वाद ,हर एक अंग तुम्हारा ,
लगता है तुम मिठाई की पूरी दूकान हो,
                   रसगुल्ले की तरह पूरी रस से टपकती

घोटू

हुस्न-चौके का

          हुस्न-चौके का

जुल्फों में काली ,उनका गोरा चेहरा लगे ,
          जैसे तवे पे सिक रही हो गर्म रोटियां
सुन्दर तिकोनी नाक लगती जैसे समोसा , 
      आँखें मटर सी ,जैसे करती ,मटरगश्तियां
सुन्दर से मुख पे खिलखिलाती उनकी ये हंसी ,
     अरहर की दाल में हो ज्यों छोंका लगा दिया
देखा जो उनका हुस्न ,हमें भूख लग गयी ,
         चौके में उनके रूप ने ,चौंका  हमें दिया

घोटू

शुभ मुहूर्त

                 शुभ मुहूर्त

पत्नीजी बड़े प्यार से तैयार कल हुई,
       देकर के पप्पी प्यार से,हमको दिया चौंका
बोली कि टी वी ,पेपरों में आ रही खबर ,
         संगम हुआ है आज बड़ा शुभ ही ग्रहों का
मुस्काके बड़े प्यार से फिर हमसे वो बोली ,
       ज्वेलर के यहाँ चलके मुझे गहने दिला दो ,
सोना खरीदा  आज  तो तक़दीर  खुलेगी,
        बरसों के बाद आया करता ऐसा है मौका

घोटू

Thursday, October 16, 2014

           मेरी अभिलाषा

खुदा  की बस इतनी रहमत चाहिए 
सबको आपस में मोहब्बत चाहिए
हमको केवल इतनी दौलत चाहिए
रहने को घर  और एक छत चाहिए 
तन को ढकने वस्त्र बस दो चाहिए
सोने को खटिया या बिस्तर चाहिए
जिंदगी के इस सफर को काटने ,
एक सच्चा हमसफ़र  पर चाहिए
पेट भरने चार रोटी है बहुत ,
नहीं हमको हलवा पूरी चाहिए
और कुछ सुविधा मिले या ना मिले,
घर में शौचालय  जरूरी  चाहिए
अगर घर में जो रहेगी स्वच्छता ,
अच्छी तंदुरुस्ती और सेहत आएगी
अच्छा तन मन जो रहेगा ,हमेशा,
जिंदगानी ख़ुशी से  भर   जाएगी

Wednesday, October 15, 2014

प्यार की परिणीति

          प्यार की परिणीति

होता है बेचैन ये मन,और तन अंगार है
ऐसा ही होता है कुछ कुछ ,जिसे  प्यार है
औरजब होता मिलन तो होश कुछ रहता नहीं ,
क्या मोहब्बत इश्क़ का ,होता यूं ही इजहार है
इंतजारी ,बेकरारी से है जिसकी करते हम,
चंद लम्हों में ही मन कर ,रहता वो त्योंहार है
कुछ ही पल में जाती है बुझ ,तन की वो सारी अगन,
जो  सुलगाता  जिगर में  , आपका दीदार है
पस्त  होकर तुम पड़े हो,पस्त होकर हम पड़े,
और बिखर कर रह गया सब साजऔर श्रृंगार है

घोटू

अपने जब होते बेगाने

               अपने जब होते बेगाने

पहले तुम जितने अपने थे ,अबतुम उतने ही बेगाने हो
और जान कर भी ये सब कुछ,बनते बिलकुल अनजाने हो
बन कर नन्हे फूल खिले थे,महके थे तुम जब आँगन में
तुमको लेकर,जाने क्या क्या ,सपने देखे थे इस मन ने
पाल,पोसा और संवारा ,हरदम रख कर ख्याल तुम्हारा
 सोचा था जब जरुरत होगी ,तब तुम दोगे  ,हमें सहारा
पर बचपन में ही तो केवल,बात हमारी तुम माने हो
पहले तुम जितने अपने  थे,अब उतने ही बेगाने हो
साथ समय के,बड़े चाव से,घर तुम्हारा,गया बसाया
करी तुम्हारी शादी उस संग,मीत  तुम्हारे मन जो भाया
लेकिन दिन दिन ,दूर हुए तुम,होनी ने वो  चक्र चलाया
एक रिश्ते में ,ऐसे उलझे ,बाकी रिश्तों को बिसराया
प्यार सदा हम बरसाते है,तुम रहते ,भृकुटी  ताने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो
कभी नहीं सोचा था हमने,कि तुम इतने बदल जाओगे
अगर सफलता पा जाओगे ,तो तुम  इतना इतराओगे
मत भूलो,जो तुम हो  उसमे,बहुत हमारा योगदान है
मात  पिता की आशीषों से ,ही बच्चे  बनते महान है
नहीं समझ में हमको आता ,जाने क्या मन में ठाने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो
तुम्हारी मति  हुई भ्रष्ट है,हम खुश रहते,तुम्हे कष्ट है
या तुम हुए गर्व से अंधे ,या विवेक हो गया नष्ट है
लेकिन तुम दिल के टुकड़े हो ,बदल गए  ,दुर्भाग्य हमारा
सदा सुखी,खुश रहो,फलो और फूलो,आशीर्वाद हमारा
समय तुम्हे सद् बुद्धि  देगा ,नियति को कब पहचाने हो
पहले तुम जितने अपने थे,अब उतने ही बेगाने हो

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

चाँद- सूरज

             चाँद- सूरज

आसमां में चमकते है ,सूर्य भी और चाँद भी ,
     रोशनी दोनों में है,फिर भी जुदा कुछ बात है
एक में ऊष्मा भरी है ,एक है शीतल बहुत ,
     एक जग को जगाता ,एक जगाता जज्बात है
जगत का यह चक्र इनकी ही बदौलत चल रहा ,
जल बरसता ,अन्न पकते और पलती जिंदगी ,
एक तन को तपाता है ,एक शीत का भण्डार है
     एक लाता सुहाने दिन,एक मिलन की रात है
सूर्य में भण्डार ऊर्जा का विपुल है इसलिए,
चाँद उससे मांग लेता ,उधारी में रोशनी,
चाँद भी है अजब दानी,उधारी का माल सब ,
बाँट ,करता रोशनी की रात भर बरसात है
दोनों की आशिक़ मिज़ाजी ,हर तरफ मशहूर है
खिड़कियों से हमेशा ये सबके घर में झांकते ,
एक रहता किरण के संग ,एक के संग चांदनी ,
एक आता निशा के संग ,एक उषा साथ  है
 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कैसे कह दूँ ?

        कैसे कह दूँ ?

माना दोस्त नहीं तुम मेरे ,पर दुश्मन भी कैसे कह दूँ
दो मीठी बातें करने को,मै अपनापन  कैसे  कह दूँ
तुम हमको अच्छे लगते हो,हम भी तुमको अच्छे लगते
जब भी नज़रें टकराती है,मन मे है झांझर से बजते 
लेकिन ये बस आकर्षण है ,ये तो कोई प्रेम नहीं है ,
सबके ही मन को भाते है ,जब बगिया में फूल महकते
हर एक गली और चौबारे को निज आँगन कैसे कह दूँ
माना दोस्त नहीं तुम मेरे ,पर दुश्मन भी कैसे कह दूँ
मेरे पीछे पड़े हुए तुम,क्यों हो  पागल दीवाने से
यूं सम्बन्ध नहीं बनते है ,केवल मिलने ,मुस्काने से
लेख लिख रखा है नियती ने ,कौन ,कहाँ,कब ,किसका होगा,
हो पाता  है पूर्ण समर्पण ,उस बंधन में  बंध  जाने   से
एक किसी भी अनजाने को,अपना प्रियतम कैसे कह दूँ
माना दोस्त नहीं तुम मेरे,पर दुश्मन भी कैसे कह दूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शाम आ रही है

            शाम आ रही है

दिन ढल रहा है और शाम आ रही है,
तभी साये अब लम्बे होने लगे  है
बदलती ही करवट ,जहाँ यादें रहती ,
सलवट भरे वो बिछौने   लगे है
बुझने को होता दिया जब है कोई,
सभी कहते है वो भभकता बहुत है,
हमें लगता है शायद ये ही वजह है ,
कि हम और रोमांटिक होने लगे है
चेहरे पे झुर्री है,आँखों में  जाले ,
नहीं दम बचा,हसरतें पर बड़ी है
इसी आस में कुछ निकल आये मख्खन,
मथी  छाछ,फिर से बिलोने लगे है 
बड़े चाव से वृक्ष रोपा था हमने ,
बुढ़ापे में खाने को फल देगा मीठे ,
फल लग रहे हैं,मगर खा न पाते ,
उमर के सितम ऐसे होने लगे है
बहुत व्यस्त अपनी गृहस्थी में बच्चे,
सुखी है सभी अपनी मस्ती में बच्चे ,
समझते हमें फालतू बोझ लेकिन,
जमाने के डर से ,वो ढोने लगे है
सूरज किरण संग कभी खेलते थे ,
अभी संध्या संग है और रजनी बुलाती ,
कहते है नींद ,मौत की  है सहेली ,
बड़ी देर उसके संग ,सोने लगे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, October 12, 2014

प्यार की परिक्षा -मेंहदी

            प्यार की परिक्षा -मेंहदी
अबकी बार
करवाचौथ पर पत्नी ने लगाईं गुहार
सुनोजी!कम होता जा रहा है आपका प्यार
हमने कहा, क्या बात करती हो मेडम
हमारा प्यार बढ़ रहा है ,नहीं होरहा है कम
हर साल टरका  देते थे ,साडी दिला कर
 अबके से हीरे की अंगूठी दी है लाकर
पत्नी बोली ये तो ठीक है ,पर ऐसा है कहा जाता
पति जितना प्यार करता है ,
उतना गहरा  मेंहदी का रंग है आता
पर अबकी बार ,मेंहदी का रंग  कम  आया है
कहीं आपने कोई दूसरा चक्कर तो नहीं चलाया है
हम ने सर पीट लिया और सोचा ,
औरतें होती है कितनी होशियार
साल में तीन चार बार ,जब आते है त्योंहार
हाथों में लगवाती मेंहदी है
और इस तरह पति की परीक्षा लेती है
परचा कोई लिखता है,देता है कोई एक्ज़ाम
और पास फ़ैल का , पति पर लगता है इल्जाम
वैसे भी   जो  उम्र भर पत्नी से  डरे
अब मेंहदी ना रचे तो बेचारा पति क्या करे ?

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, October 10, 2014

जमना-जमाना

         जमना-जमाना

जो जमता है पानी तो बनता बरफ  है ,
पिघल कर के जाता वो फिर पानी बन है
कोई बात  जंचती ,नहीं गर है दिल को,
'जमा ही नहीं मामला'कहते हम है
जमा करते पैसा हम बैंकों में क्योंकि,
हमें पड़ती जरुरत,वो फिर काम आता
जमाने को रूतबा ये सारा ज़माना ,
है कैसे ही,कितने ही ,चक्कर चलाता
कभी रंग अपना जमाता है कोई,
यारों की जब वो है महफ़िल जमाता
शादीशुदा आदमी इस जहाँ में ,
है होता ससुर सासजी  का जामाता
हरेक इन्सां ,बचपन में होता सरल है,
तरल दूध जैसा ,सरस,शुद्ध,पावन
दही की तरह पर है जमने वो लगता ,
जवानी का उसमे जब लगता है जावन
बड़े काम का और ठहरा हुआ सा,
मथो मठ्ठा बनता,कभी बनता मख्खन
कभी चटपटा चाट बन कर के होता,
कभी स्वाद देता,कढ़ी ,रायता बन
जमा बर्फ फिर से पिघल  बनता पानी,
जमा दूध ,फिर दूध, कभी बन न पाता
जमा,जमगया ,वीर पुरुषों के जैसा ,
कदम अपने वापस कभी ना हटाता 

मदन  मोहन बाहेती'घोटू'

करवा चौथ पर

             करवा चौथ पर

मद भरा मृदु गीत हो तुम,सुहाना संगीत हो तुम
प्रियतमे तुम प्रीत मेरी और जीवन गीत हो तुम
बंधा जब बंधन सुहाना ,लिए मुझ संग सात फेरे
वचन था सुख ,दुःख सभी में  ,रहोगी तुम साथ मेरे
पर समझ में नहीं आता ,जमाने की रीत क्या है
मै सलामत रहूँ ,तुमने ,आज दिन भर व्रत रखा है
खूब मै ,खाऊँ पियूं और दिवस भर निर्जल रहो तुम
कुछ न  खाओ ,इसलिए कि  ,उम्र मेरी रहे अक्षुण
तुम्हारे इस कठिन व्रत से ,कौन सुख मुझको मिलेगा
कमल मुख कुम्हला गया तो ,मुझे क्या अच्छा लगेगा
पारिवारिक रीत ,रस्मे , मगर पड़ती  है  निभानी
रचा मेहंदी ,सज संवर के ,रूप की तुम बनी रानी
बड़ा मनभावन ,सुहाना ,रूप धर ,मुझको रिझाती
शिथिल तन,दीवार व्रत की ,मगर है मुझको सताती
प्रेम की लौ लगी मन में ,समर्पण , चाहत बहुत है
एक व्रत जो ले रखा है ,बस वही पतिव्रत  बहुत है
चन्द्र का कब उदय होगा ,चन्द्रमुखी तुम खड़ी उत्सुक
व्रत नहीं क्यों पूर्ण करती ,आईने में देख निज  मुख
रूप का अनुपम खजाना ,और मन की मीत  हो तुम
प्रियतमे तुम प्रीत मेरी और जीवन गीत  हो  तुम
 
       मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Wednesday, October 8, 2014

फलों की चाट

      फलों की चाट

कच्चे आम हरे होते है ,पक जाते तो होते पीले
खट्टे और सख्त होते है,पकते, होते नरम,रसीले
सारा खट्टापन खो जाता ,पकने पर आता मिठास है
छाजाती मनभावन खुशबू,और आजाता मधुर स्वाद है 
होते पुरुष ,फलों के जैसे ,बदला करते ,साथ उमर के
खट्टे भी है,मीठे भी है ,सुख देते सबको जी भर के
किन्तु औरतें ,मिर्ची जैसी ,इनको नहीं बदलना आता
रंग बदलता,साथ उमर के,किन्तु चरपरापन ना जाता
होती है जब ,हरी छरहरी,पकती  होती सुर्ख लाल है
रंग बदले पर तीखी रहती ,नहीं बदलती ,मगर झाल है
जितनी पतली और छरहरी ,उतनी अधिक चरपरी होती
ज्यों ज्यों  मोटी होती जाती,त्यों त्यों तीखापन है खोती
लोंगा मिर्ची आग लगाती ,मन भाती शिमला मिर्ची है
काली,लाल,हरी,पीली हो ,लेकिन मिर्ची तो मिर्ची  है
दुबली और छरहरी औरतें ,होती तीखी,नखरेवाली
जैसे जैसे होती मोटी ,वैसे वैसे  होती  'जॉली'
फल से पुरुष,औरतें मिर्ची ,फिर भी रहते साथ साथ है
तभी चटपटा ,चाट सरीखा, जीवन होता ,बड़ा स्वाद है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तरक्की

              तरक्की

आँखों में सपने उमड़ने लगे है
अब लोग आगे भी बढ़ने लगे है
कदम चार चल के ही जाते थे थक जो,
वो अब पर्वतों पे भी ,चढ़ने लगे है
छोटे से गावों और कस्बों के बच्चे ,
अब 'आई आई टी' में पढ़ने  लगे है
रखा रिक्शेवालों ने ,मोबाइल नंबर ,
वो भी अब तो 'मार्केटिंग' करने लगे है
कल काम पर हम न आएंगे मेडम,
महरी के  मेसेज   मिलने लगे है
वो आया था कल ,ले मिठाई का डब्बा ,
पड़ोसी से रिश्ते ,सुधरने  लगे है
दिखी जब से नेता के हाथों में झाड़ू ,
सड़कों से पत्ते खुद उड़ने लगे है
आएंगे दिन अच्छे ,लगता है ऐसा ,
समय से अब दफ्तर जो खुलने लगे है

घोटू

शादी के दस्तूर

   शादी के दस्तूर

शादी के संस्कार में ,
होते है जितने भी दस्तूर
हर एक की ,कुछ न कुछ ,
अहमियत होती है जरूर
जैसे सगाई में अंगूंठी का पहनाना
लड़का ,लड़की की ऊँगली में ,
अंगूठी पहना कर कहता है ,
देख मुझे ऊँगली पर मत नचाना
और लड़की ,लड़के को अंगूठी पहना कर,
 कहती है ,मै कुछ भी करूं ,
तुम मेरी तरफ ऊँगली मत उठाना
शादी के पहले ,दूल्हे दुल्हन को ,
हल्दी चढ़ाई  जाती है
इसमें शरीर के चार पांच स्थानो पर,
तैल  में मिली ,हल्दी लगाईं जाती है
और इस तरह उन्हें किया जाता है  आगाह
बहुत ज्यादा खुश मत हो,करके ब्याह
क्योंकि शादीके बाद ,
किचनमे करना पडेगा काम 
और तेल और हल्दी के लगेंगे दाग तमाम
शादी के समय ,दूल्हे की सुरक्षा का ,
पूरा ध्यान भी है रखा जाता
और इसी चक्कर में दूल्हे का चेहरा ,
पहना कर सेहरा है ढका जाता
ये इस डर से,कि कहीं पहचान न  ले ,
उसकी वो सारी गर्ल फ्रेंड्स ,
जिनसे उसने किया था शादी का वादा 
फिर उसे घोड़ी पर बिठाया जाता है
एक बार फिर सोच समझ कर ,
भागने का मौका दिया   जाता है
कहीं दूल्हा भाग न जाए ,इस डर से,
दुल्हन की सहेलियां भी घबराती है
इसीलिये ,दूल्हे के जूते छुपाती है
और शादी के समय ,जब सात फेरे
है लगाए जाते
शुरू शुरू में दूल्हा रहता है आगे
पर बाद में दुल्हन ही लीड करती है
शादी के बाद भी ,शुरू मे थोड़े दिन,
दूल्हे का रौब चलता है ,
पर बाद में सारी उमर पत्नी की ही चलती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

सुहागरात

           सुहागरात

आपने था किया,हमसे वादा डियर ,
         दिल में अपने रखोगे,सजा उम्र भर
बड़े अरमान से,तुमको मिलने को हम ,
           बैठे थे सेज पर ,हम बड़े सज ,संवर
आप आये भरे जोश,मदहोश से,
            हो रहे थे दीवाने ,बड़े बेसबर
मेरे कपडे सभी ,कर दिए बेकदर ,
            एक फेंका इधर,एक फेंका उधर
मेरा सजना,संवरना बस यूं ही गया,
          तुमने देखा भी ना,ये भी क्या बात है
दो घड़ी बैठ कर,प्यार से बोलते ,
           करते बातें ,ये पहली मुलाक़ात है 
हंस वो बोले यही,तुम हो इतनी हंसीं ,
            आज काबू में मेंरे , न जज्बात है
तुमको दिल में सजाने ,उम्र है पडी ,
           जानेमन,आज अपनी सुहागरात है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खेल जिंदगी का

         खेल जिंदगी का

ये दुनिया है मैदान एक खेल का ,
            खेलते खेल अपना ,खिलाड़ी कई
कोई फुटबाल,टेनिस ,क्रिकेट खेलता ,
             रेस में कोई पीछे,अगाडी   कई
कोई के मन लगन कि करे गोल वो,
             दौड़ता रहता पीछे है वो बाल के
जीतना चाहता है कोई गेम को,
              गेंद दूजे के पाले में बस डाल के
कोई बॉलिंग करे, कोई बेटिंग करे ,
              कोई चौका तो छक्का लगाए कोई
कोई हो 'हिट विकेट ''एल बी डब्ल्यू 'कोई ,
              तो कभी 'कैच आउट'हो जाए कोई
हाथ में ,पैर में ,गार्ड कितने ही हो,
               कोई बचता नहीं ,गेंद की मार से 
अंपायर खुदा की जब ऊँगली उठे ,
             आदमी होता आउट है संसार से    

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कभी कृष्ण चन्दर ,कभी तुम नरेन्दर

           कभी कृष्ण चन्दर ,कभी तुम नरेन्दर

कभी फूंकते शंख ,हो तुम समर में,
          कभी हांकते रथ हो तुम सारथी बन
कभी ज्ञान गीता का अर्जुन को देते ,
           चलाते सुदर्शन ,बड़े महारथी बन
जहाँ जाते रंग जाते ,वैसे ही रंग में ,
            बजाते हो ढोलक,कभी बांसुरी तुम
कभी काटते सर ,शिशुपाल का तुम,
           कभी शांत कपिला ,कभी केहरी तुम
कभी द्वारिका में ,कभी इंद्रप्रस्थ में ,
          जहाँ भी हो जाते ,तुम छा जाते सब पर
हरा कौरवों को,जिताते हो  पांडव ,
           बड़े राजनीति  के   पंडित  धुरन्दर   
कभी कंसहन्ता ,तो रणछोड़ भी तुम,
            तुम्हे आती है सारी ,सोलह   कलाएं
कभी कृष्ण चन्दर ,कभी तुम नरेंदर ,
             बड़ी आस तुमसे है सब ही लगाए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, October 2, 2014

सचमुच तुम कितने पागल हो ?

       सचमुच तुम कितने पागल हो ?

बेटा हो या बेटी ,उनमे ,काहे को रखते  अंतर हो 
                       सचमुच तुम कितने  पागल  हो
यही सोच कर बेटा होगा ,वंश बढ़ाएगा तुम्हारा
और बुढ़ापे में तुम्हारे ,देगा तुमको ,बड़ा सहारा
अंधे मातपिता को कांवड़ में ले जाए तीर्थ कराने
ब्रह्माजी ने बंद कर दिए ,है अब ऐसे पुत्र  बनाने
पैदा राम नहीं होते अब ,जो कि निभाने वचन पिता के
राज त्याग,चौदह वर्षों तक,खाक   जंगलों की जो फांके
इस कलयुग में तो सबने ही ,भुला दिए संस्कार पुराने
उनसे मत उम्मीद करो कुछ,हुई 'प्रेक्टिकल 'है संताने
तुम जितना भी,जो कुछ उन हित ,करते ये कर्तव्य तुम्हारा
प्रतिकार में वृद्धाश्रम ही ,देगा शायद ,तुम्हे सहारा
संस्कृति और संस्कारों में ,बहुत बढ़ गया पॉल्यूशन है
केवल अपने ही बारे में ,सोचा करता अब हर जन है
बेटी भले परायी होती,पर उसमे होता अपनापन
ख्याल बुढ़ापे में रखती है ,प्यार लुटाती सारा जीवन
फिर भी तुम बेटी के बदले ,बेटा हो,  देते यह  बल हो
इस पॉल्यूशन के युग मे भी,शुद्ध ढूढ़ते  गंगाजल हो
                               सचमुच तुम कितने  पागल हो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

आँखें

           आँखें

आँखें ,सबसे बड़ा दिया उपहार प्रभु का,
       चमका करती ,सूरज चंदा सी ,चेहरे पर
भेद बताती ,सुन्दर और असुंदर का ये,
        ज्योतिपुंज सी राह दिखाती है जीवन भर
दो आँखे ,मानव तन की शोभा होती है ,
         हमको जो ये सारी दुनिया दिखलाती है
पर इनकी तासीर बड़ी उल्टी होती है,
        खोई खोई जग कहता , जब मिल जाती है
हो जाता है प्यार,लड़ा करती जब आँखें,
         जब ये झुकती ,मतलब हामी भर देती है
थोड़ी तिरछी हो जाती,बिजलियाँ गिराती ,
         और दुखी होती , आंसूं  ढलका देती है
काला मुख होने पर है बदनामी होती,
        इन पर कालिख लगती ,ये होती कजरारी
कोई मृगनयनी है कोई मीनाक्षी है,
       चंचल,चपल और सुन्दर ये लगती  प्यारी
होती जिसकी एक आँख समदर्शी होता ,
       लोगबाग उसको काणा भी कह देते है
अगर किसी के साथ छेड़खानी करनी है ,
      एक आँख बंद करते ,आँख मार देते है
कोई बारीक काम सुई में धागा पोना ,
       या कि लक्ष्य भेदन करने को तीर चलाना
इनमे एक आँख बंद करके ही देखा जाता ,
      हो पाता  संभव तब ही  ये सब  हो पाना
दो आँखें तो सब की ही मन भावन होती,
       खुले तीसरी आँख ,कोप बरसाती भारी
शिवशंकर त्रिनेत्र ,खोलते नयन तीसरा ,
       होते है जब कुपित,कहाते प्रलयंकारी
और ये ही आँखें जब होती चार किसी से ,
        इसको कहते प्यार हुआ,जब टकराती है
चार आँखें हो जाने का चक्कर है प्यारा ,
          पर इससे ,आँखों की निंदिया उड़ जाती है
ये होती है बंद मगर देखा करती है ,
             सोयी आँखों से सपने देखा करते हम      
तन का यह अंग ,सबसे ज्यादा मूल्यवान है,
              पलकें है तैनात,सुरक्षा करती   हरदम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ना इधर के रहे -ना उधर के रहे

          ना इधर के रहे -ना उधर के रहे

ना तो उस दौर के और न इस दौर के ,
             बन गए दरमियानी कोई चीज हम
ना फलक पर चढ़े,ना जमीं पर रहे ,
            रह गए बस लटकते ही अधबीच हम
ना तो भूखे ही है,ना भरा पेट है ,
            बीच खाने के थाली  को क्यों छोड़ दें,
ना इधर के रहे ,ना उधर के रहे ,
           उम्र की ऐसी आ पहुंचे ,दहलीज हम 
जिस्म कहता है अब हम जवां ना रहे,
            कोई बूढा कहे ,दिल ये ना मानता ,
जब जवां लड़कियां हमको अंकल कहे ,
            दिल में होती चुभन,जाते है खीझ हम
ना तो काले ही है ,ना सफ़ेद ही हुए ,
            बाल सर पर हमारे बने खिचड़ी ,
उम्र का फर्क ये , हमको मिलने न दे ,
           रह गए एक दूजे पे ,बस रीझ हम
ना तो दिन ही ढला,ना हुई रात है ,
          शाम की है ये बेला ,बड़ी खुशनुमा ,
है बड़ा ही रूमानी ,सुहाना समां ,
          प्रेम के रस में जाते है अब भीज हम
ना तो नौसिखिया ही है ,ना रिटायर हुए,
          है तजुर्बा भरा ,तन  मे ताक़त भी है,
कोई कितना भी आजमा ,हमें देख ले,
          पायेगा ये बड़े काम की चीज  हम
दिल में जज्बा जवानी का कायम अभी,
           बात दीगर है अब जल्दी थक जाते हम ,
है बुलंदी पे अब भी मगर हौसला ,
            अब करें क्या ,बताओ ना तुम,'प्लीज 'हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आँख मेरी लड़ गयी है

           आँख मेरी लड़ गयी है 

आँख में तुम इस तरह से बस गयी हो,
     सपनो को भी जगह कम पड़ने लगी है
इसलिए तो आजकल गाहे ब गाहे,
         नींद मेरी अचानक उड़ने  लगी  है 
इश्क़ में हालात ऐसे हो गए है ,
      जिधर भी मै देखता हूँ तुम्ही तुम हो,
खुदा जाने होगी तुम कितनी नशीली ,
        देख कर जब खुमारी  चढ़ने लगी है
जबसे तुमसे आँख मेरी लड़ गयी है,
       नज़र तिरछी इस तरह से गढ गयी है,
दिल में मेरे कुछ न कुछ होने लगा है,
         मिलन की संभावना बढ़ने लगी  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

स्वच्छ भारत अभियान

             स्वच्छ भारत अभियान

किया आरम्भ गांधी ने ,जो आंदोलन सफाई का ,
         उसे मोदी नरेन्दर ने ,किया चालू दोबारा  है
स्वच्छ भारत हमारा हो ,यही बस लक्ष्य है मन में,
        स्वयं हाथों में ले झाड़ू ,सभी कचरा बुहारा है
लोग कांग्रेस के कहते,हमारा 'हाथ'है इसमें ,
       और 'आप' पार्टी  कहती ,ये 'झाड़ू'तो हमारा है
सफाई अन्य सरकारों ने भी की है देश की लेकिन ,
       खजाना साफ़ भारत का,कर दिया साफ़ ,सारा है
'घोटू '

Monday, September 29, 2014

           तुम्हारे हाथों में
जिन हाथो को हाथों में ले ,होता शादी का संस्कार
जो हाथ पौंछते है आंसू ,और बरसाते है मधुर प्यार
जिन हाथों में रोता बच्चा भी आ किलकारी है भरता 
जिन हाथों में बेलन हो तो,पति बेचारा ,सहमा,डरता
साक्षात रूप अन्नपूर्णा का ,जब घुसे रसोई के अंदर
जिन हाथों में झाड़ू आता ,सारा कचरा होता बाहर
 जो हाथ डांडिया जब लेते , राधा सा रास रचाते है
जब बन जाते है बाहुपाश ,पत्थर को भी पिघलाते है
जिन हाथों में है बागडोर,पूरे घरबार गृहस्थी  की
जो अगर प्यार से सहलाते ,मन में छा जाती मस्ती सी
खा पका हुआ जिनका खाना ,जी करता उन्हें चूम लें  हम
उंगली के एक इशारे पर ,जिसके सब नाच रहे हरदम
जो हमें नचाते ,प्यार जता कर ,अपनी मीठी बातों में
अब सौंप दिया इस जीवन का ,सब भार बस उन्ही हाथों में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             घोटू के पद

घोटू ,जब हम प्यार जतावत
आई लव यू ,आई लव यू कह कर ,उनको अपने पास बुलावत
पहले वो ना करत,पास फिर आवत ,  पर   थोड़ी  शरमावत
कोऊ कहीं   देख ना लेहै  ,कह कर फिर  पीछे   हट  जावत
देखत बंद द्वार की कुण्डी ,हमरी  बाहन  में भर  जावत
नव आभूषण और साड़ी का,पिछला वादा ,याद दिलावत
प्यार दिखा उन मधुर क्षणन में ,अपनी सब मांगें मनवावत
पूर्ण रूप तब होइ समर्पित ,एक दूसरे में खो जावत
'घोटू' इन्ही मधुर क्रीड़ाओं को  जगवाले  प्रेम  बतावत

घोटू
     
     हम मेट्रिक  फ़ैल ही अच्छे
न तो है हम पढ़े लिख्खे ,नहीं कुछ पास है डिगरी
मगर हम यार यारों के,दोस्त है दोस्त के जिगरी
हमारे वस्त्र मत देखो , बड़ी है सादगी  हम में
हमारी भावना देखो  ,बड़ी है  ताजगी  हम में
भरे है हम मोहब्बत से ,और दिल के है हम सच्चे
पढ़े लिख्खों से तुम जैसे ,हम मेट्रिक फ़ैल  ही अच्छे
पूजते माँ पिता को है ,देवता मान जीवन में
बुजुर्गों के लिये  श्रद्धा ,आज भी सच्ची  है मन में
दिखावे और आडम्बर से हम दूरस्थ रहते है
दाल और रोटी खाकर भी ,हमेशा मस्त रहते है
वचन के पक्के, देते ना किसी को कोई भी गच्चे
पढ़े लिख्खों से तुम जैसे ,हम मेट्रिक फ़ैल ही अच्छे
पुराने रस्म और रिवाज ,हम पूरे निभाते है
कोई मेहमान आता है  ,उसे पलकों बिठाते है
थामते हाथ है उसका  ,जिसे जरूरत सहारे की
 न जिम्मेदारी कोई भी ,कभी हमने  किनारे  की
आज की दुनियादारी में ,भले ही थोड़े है  कच्चे
पढ़े लिख्खे तुम जैसों से,हम मेट्रिक फ़ैल ही अच्छे

मदन मोहन बाहेती' घोटू'
             घोटू के पद

समय बड़ा बलवान
नहीं समय के आगे कुछ भी,कर सकता इन्सान
कल तक वीसा देने में भी,था  जिसको  इन्कार
अगवानी कर रहा अमरीका उसकी बांह पसार
मोदी मय न्यूयॉर्क होगया इतना बरसा प्यार
अब वाशिंगटन में ओबामा ,करता है इन्तजार
कल तक चाय बेचने वाला ,बना देश की शान
समय बड़ा बलवान
कल तक पूरे तमिलनाडु पर था जिसका राज
चार साल की सजा पा गयी सत्ता को मोहताज
गलत ढंग से बहुत कमाया ,कुछ ना आया काम
उस पर लगा बड़ा जुर्माना और नाम हुआ बदनाम
राजमहल की रानी थी जो,हुई  जेल मेहमान  
समय बड़ा बलवान
'घोटू '

Friday, September 26, 2014

महाराष्ट्र के महत्वकांक्षी

       महाराष्ट्र के महत्वकांक्षी

महत्वकांक्षाओं को ,
अगर दबाया  नहीं जाए  थोड़ा 
तो बन  जाती है,
 जीवन की राह का रोड़ा
रेस में दौड़ना चाह रहा था,
तांगे वाले का घोडा
और इसी चक्कर में ,
उसने ,उससे  गठबंधन तोडा
अक्सर  इस तरह के ,
कई  वाकये नज़र आते है
लोग न इधर के रहते है,
न उधर के हो पाते है
पूरी  पाने की चाह  में,
अपनी आधी  भी  गमाते है
चौबेजी ,छब्बे बनने के चक्कर में ,
दुबे बन कर रह जाते है
घोटू '

महाराष्ट्र का महाभारत

         महाराष्ट्र का महाभारत

                      १
एक तरफ तो पहुँच गया है,यान हमारा मंगल में
एक तरफ हम उलझ रहे हैं,महाराष्ट्र के दंगल में
पदलिप्सा ,अच्छे अच्छों की,मति भ्रस्ट कर देती है ,
और बिचारे फंस जाते है,विपदाओं के  जंगल में
                          २    
एक तरफ बेटा कहता है,पापाजी सी एम  बनो,
          और दूसरी तरफ  भाई ही बढ़ कर राह रोकता है
साथ पुराने साथी का है जिस दिन से हमने छोड़ा,
         अब तो जिसको मिलता मौका ,आकर हमें टोकता है
 जब भी महत्वकांक्षाएं ,होती है हावी हक़ीक़त पर,
         लेते लोग इस तरह निर्णय ,सुन कर हरेक चौंकता है
एकलव्य के तीर हमेशा ,उसका मुंह  बंद कर देते,
          जरुरत से ज्यादा बेमौके,जब भी कोई भोंकता है 
 'घोटू '

Thursday, September 25, 2014

आशिक़ की आरजू

          आशिक़ की आरजू

रात को आते हो अक्सर,ख्वाबगाह में मेरी ,
        एक झलक अपनी दिखाते ,और जाते हो चले
हमने बोला,छोड़ दो यूं ,आना जाना ख्वाब में ,
        बहुत है हमको सताते ,इस तरह के सिलसिले
ये भी कोई बात है ,जब बंद आँखें हमारी ,
       तब ही मिल पाता हमें है,आपका दीदार  है
खोलते है  आँख जब हम  ,नज़र तुम आते नहीं,
             बीच में मेरे तुम्हारे ,पलक की दीवार है
ना तो तुमको छू सकें ना भर सकें आगोश में,
        दूर मुझसे इतने रहते, नज़र आते पास हो      
भला ये भी इश्क़ करने का तरीका है कोई,
              उड़ा देते नींद मेरी,बढ़ा देते प्यास हो
इसतरह से आओ अब वापस कभी ना जा सको,
            रूबरू अहसास तुम्हारा करूं  मैं  रात दिन
अब तो शिद्दत हो गयी है,तुम्हारे इन्तजार की,
           आओ ना आजाओ बस  अब ,मन लगे ना आप बिन

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सीताफल

सीताफल

बाहर से कितनी आँखे पर बंधे हुए हम ,
बहुमुखी प्रतिभा वाला है यक्तित्व हमारा
हरेक आँख का अपना गूदा ,अपनी गुठली ,
किन्तु साथ है,तब ही है अस्तित्व हमारा
भीतर से हम मीठे है ,स्वादिष्ट ,रसीले,
बाहर हरे भरे ,आकर्षक दिखलाते है
सीताजी जैसे नाजुक हम सीताफल है,
भरी शराफत,तभी शरीफा कहलाते है
सीताफल जैसा ही भारत देश हमारा ,
अलग अलग है धर्म,आस्था अलग अलग है
किन्तु साथ में बंधे हुए है ,इक दूजे से,
मीठे और शरीफ ,चाहता सारा जग है
घोटू

सीताफल     बाहर से कितनी आँखे पर बंधे हुए हम ,   बहुमुखी प्रतिभा वाला है यक्तित्व  हमारा   हरेक आँख का अपना गूदा ,अपनी गुठली ,  किन्तु साथ है,तब ही है अस्तित्व हमारा   भीतर से हम मीठे है ,स्वादिष्ट ,रसीले,  बाहर हरे भरे ,आकर्षक दिखलाते है   सीताजी जैसे नाजुक हम सीताफल है,  भरी शराफत,तभी शरीफा कहलाते है   सीताफल जैसा ही भारत देश हमारा ,  अलग अलग है धर्म,आस्था अलग अलग है   किन्तु साथ में बंधे हुए है ,इक दूजे से,  मीठे और शरीफ ,चाहता सारा   जग है   घोटू
सीताफल
बाहर से कितनी आँखे पर बंधे हुए हम ,
बहुमुखी प्रतिभा वाला है यक्तित्व हमारा
हरेक आँख का अपना गूदा ,अपनी गुठली ,
किन्तु साथ है,तब ही है अस्तित्व हमारा
भीतर से हम मीठे है ,स्वादिष्ट ,रसीले,
बाहर हरे भरे ,आकर्षक दिखलाते है
सीताजी जैसे नाजुक हम सीताफल है,
भरी शराफत,तभी शरीफा कहलाते है
सीताफल जैसा ही भारत देश हमारा ,
अलग अलग है धर्म,आस्था अलग अलग है
किन्तु साथ में बंधे हुए है ,इक दूजे से,
मीठे और शरीफ ,चाहता सारा जग है
घोटू

Wednesday, September 24, 2014

              कमजोरी (A )
बहुत दिन में वो मिले ,हमने कहा,तुम हे कहाँ,
        लग रहे बीमार से ,मुख पर उदासी  छा गयी
न बोला कुछ दिनों को ,गए हम 'थाईलैंड' थे,
        'थाइराइड' से वहां  पर ,कमजोरी है आ गयी

                    राज-मस्ती का (A )
मस्तियाँ मन में हिलोरें ले रही है ,
                  प्यार का सागर उछालें भर रहा है
न बसंती रुत न सावन का महीना ,
                  आज मन इतना प्रमुदित क्यों हुआ है
तड़फता है आज को ये मन मिलन को,
                  पिय मिलान का आज मन में जलजला है
ओह!अब समझे ,पजामे में हमारे , 
                  उनके पेटीकोट का नाड़ा डला है
      
घोटू            

   
             
          शरारती कविता (A )

एक दिन उनकी ब्रा का हुक ,मेरे बनियान से बोला ,
               कहा ,होते बड़े ही बेरहम ये हुस्नवाले है
सुबह से शाम तक हम करते है मेहनत कुली जैसे,
        बोझ उनकी जवानी का ,सदा रहते संभाले है
कभी उनके उभारों को,ढलकने हम नहीं देते ,
       तभी जलवा जवानी का,लोग  सब देख लेते  है
नज़र है सबकी ललचाती ,उन्हें पाने को है लेकिन,
      मिलन की घड़ियों में हमको,खोल कर फेंक देते है
गुफ्तगू ,सुन रहा था उनके पेटीकोट का नाड़ा ,
       कहा भैया है जो भी तुम,बड़े तक़दीरवाले  हो
सदा चिपके तो रहते हो,बदन पे उनके नाजुक से ,
       तरसते लोग छूने को ,और तुम रहते सम्भाले हो
हमारी ओर देखो क्या ,तुम्हे बदमाश दिखते हम,
      हमें जो बाँध कर के सारा दिन ही है रखा  जाता
कमर के नीचे या ऊपर ,न जाने की इजाजत है,
      मिलन में,खोल कर के फेंक हमको है दिया जाता 
रात दिन करते पहरेदारी उनकी लाज की हम है ,
       बुरी नज़रों से दुनिया की ,उन्हें महफूज है  रखते
 भला दुनिया में हम से बढ़,कौन सा होगा  बदकिस्मत,
      मज़ा ले लेती है दुनिया ,मगर हम छू नहीं सकते

घोटू
    

Tuesday, September 23, 2014

ऊधौ ,जाओ तुम्हे हम जाने

          घोटू के पद
  ऊधौ ,जाओ तुम्हे हम जाने

ऊधौ (उद्धव),जाओ तुम्हे हम जाने
कान्हा दूत ,बने आये थे,देने ज्ञान,हमें समझाने
अब मथुरा के सिंहासन के , लगे तुम्हे हैं,सपने आने
हठ के कारण,गति कंस की,तुमभी जानो,हम भी जाने
रोटी हित  जब ,लड़े बिल्लियाँ,बन्दर पाये ,रोटी खाने
आधी छोड़,धाये  पूरी को,मुश्किल हो आधी भी पाने
छब्बे बनने के चक्कर में,चौबेजी ,दुब्बे रह जाने
पुत्र प्रेम में ,गयी सोनिया,तुमहु लगे ,वो ही पथ जाने
सत्ता भूत उतार न पांयें ,कोई तांत्रिक और सयाने
'घोटू' समझदार, रहता है ,गठबंधन में ,बंधे पुराने

घोटू